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Updated: 18 जुलाई, 2022 02:51 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने उपराष्ट्रपति चुनाव में अलग स्टैंड लिया है. राष्ट्रपति चुनाव में उद्धव ठाकरे एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में वो विपक्ष के साथ ही बने रहेंगे. उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार तय करने को लेकर बुलायी गयी बैठक में शिवसेना की तरफ से संजय राउत मौजूद थे.

ऐसा लगता है कि द्रौपदी मुर्मू के मुंबई दौरे में कोई संपर्क न किये जाने को उद्धव ठाकरे ने बीजेपी की तरफ से फाइनल मैसेज मान लिया है. द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) और उद्धव ठाकरे की मुलाकात की संभावनाओं को लेकर संजय राउत का कहना रहा, 'हमने मातोश्री आने के लिए उन्हें समर्थन नहीं दिया है... ये राजनीतिक समर्थन नहीं है, बल्कि ये आदिवासी समुदायों के प्रति हमारी भावनाओं को दर्शाता है.' संजय राउत याद दिलाया कि पहले भी बीजेपी के साथ एनडीए में रहते हुए शिवसेना ने 2007 में प्रतिभा पाटिल और 2012 में प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था.

ढाई साल तक उद्धव ठाकरे बीजेपी से दो-दो हाथ जरूर करते रहे, बीच बीच में सरकार गिराने की चुनौती देते हुए ललकारते भी रहे, लेकिन कभी ये उम्मीद नहीं टूटी कि गाढ़े वक्त में बीजेपी नेतृत्व साथ छोड़ देगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि 2019 में उद्धव ठाकरे के पलटी मार कर बीजेपी की परवाह न करने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कभी ऐसा वैसा एहसास होने नहीं दिया. तब भी नहीं जब जून, 2021 में उद्धव ठाकरे मिलने गये थे - और तब भी नहीं जब सरकार जाने से ठीक पहले प्रधानमंत्री के महाराष्ट्र दौरे में नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी. ऐसा हमेशा नहीं होता कि तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं. मोदी और उद्धव ठाकरे की मुलाकात की तस्वीरें देख तो ऐसा ही संदेश दे रही हैं.

उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बुलायी गयी बैठक के बाद संजय राउत का ये कहना कि इस चुनाव में सारे विपक्षी दल एक साथ हैं, ये समझने के लिए ठीक है कि उद्धव ठाकरे ने थक हार कर विपक्ष के साथ ही बने रहने का मन बना लिया है - लेकिन पूरे विपक्ष के एक साथ बने रहने के संजय राउत के दावे पर संदेह हो रहा है.

कैसे समझें कि उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष साथ है

राष्ट्रपति चुनाव की ही तरह उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भी विपक्षी दलों से संपर्क करने का जिम्मा कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को ही मिला हुआ था, लेकिन पहले की तरह ममता बनर्जी मीटिंग में मौजूद नहीं थीं.

sharad pawar, uddhav thackeray, narendra modiउद्धव ठाकरे का आखिरी ठिकाना अब विपक्ष ही है क्योंकि बीजेपी ने दरवाजे पूरी तरह बंद कर लिये हैं

विपक्ष की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ साथ कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अलावा सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी. राजा और बिनय बिस्वम, समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव और डीएमके नेता टीआर बालू और तिरुची शिवा और MDMK नेता वायको भी शामिल हुए - यहां तक कि टीआरएस की तरफ से के. केशव राव भी पहुंचे थे.

हैरानी तो तब हुई जब कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा को विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाये जाने की घोषणा करते हुए एनसीपी ने शरद पवार ने कहा, 'हमने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात करने की कोशिश की लेकिन वो व्यस्त थीं.'

अब ये बात सुन कर भला ताज्जुब न हो तो क्या हो? विपक्ष की इतनी महत्वपूर्ण बैठक होती है. मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश को छोड़ दीजिये, शरद पवार खुद मीटिंग में मौजूद रहते हैं - और ममता बनर्जी इस कदर व्यस्त होती हैं कि शरद पवार से संपर्क तक नहीं हो पाता. आपको याद होगा ममता बनर्जी की तरफ से भी ऐसा ही बताया गया था जब पश्चिम बंगाल चुनावों के बाद वो पहली बार दिल्ली आयी थीं. तब शरद पवार भी दिल्ली में ही थे लेकिन दोनों की मुलाकात नहीं हो पायी थी.

ममता बनर्जी का ये रवैया इसलिए भी अचरज भरा है कि क्योंकि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को बीजेपी के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने के ठीक एक दिन बाद विपक्ष की तरफ से भी अपने उम्मीदवार की घोषणा की जाती है.

ममता बनर्जी और जगदीप धनखड़ में कभी पटरी नहीं बैठी और तृणमूल कांग्रेस नेता तो कई बार राज्यपाल को वापस बुला लेने की मांग भी कर चुकी थीं - क्या ममता बनर्जी नहीं चाहती थीं कि जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष किसी को उम्मीदवार बनाये या फिर वो किसी और को उम्मीदवार बनाना चाहती थीं?

शरद पवार ने ये भी बताया कि ममता बनर्जी की तरह भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी संपर्क नहीं हो सका, लेकिन लगे हाथ उम्मीद भी जतायी कि जैसे केजरीवाल ने यशवंत सिन्हा का सपोर्ट किया है, ठीक वैसे ही मार्गरेट अल्वा के समर्थन की भी घोषणा करेंगे.

क्या शरद पवार को ममता बनर्जी को लेकर भी अरविंद केजरीवाल की तरह ही मार्गरेट अल्वा के समर्थन की घोषणा किये जाने का भरोसा है?

उद्धव ठाकरे के पास कोई विकल्प नहीं बचा है

ममता बनर्जी के मन में क्या चल रहा है, हो सकता है शरद पवार को भी फिलहाल ये समझने में मुश्किल हो रही हो. लेकिन उद्धव ठाकरे पूरी तरह सरेंडर कर चुके हैं ये बात शरद पवार अच्छी तरह जानते हैं - और ये भी जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल का यशवंत सिन्हा के बाद मार्गरेट अल्वा का समर्थन करना भी विपक्ष के साथ बने रहने की गारंटी नहीं है.

अरविंद केजरीवाल ने जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेवड़ी कल्चर पॉलिटिक्स वाले बयान पर रिएक्ट किया है, साफ है कि आम आदमी पार्टी का लंबा दांव खेलने का इरादा बन चुका है. अरविंद केजरीवाल ने ये तो कह ही दिया है कि वो दिन भी आएगा जब पूरे देश को वो मुफ्त शिक्षा और इलाज मुहैया कराएंगे.

जैसे उद्धव ठाकरे को लेकर साफ हो चुका है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है, बिलकुल वैसे ही ममता बनर्जी को लेकर लगने लगा है कि तृणमूल कांग्रेस नेता किसी और ही ऑप्शन की तलाश के बारे में सोच रही हैं.

उद्धव ठाकरे के लिए बीजेपी ने क्यों बंद कर लिए दरवाजे: उद्धव ठाकरे और बीजेपी नेतृत्व के रिश्ते के ताबूत में आखिरी कील ठोके जाने के किस्से भी धीरे धीरे सामने आने लगे हैं. मालूम होता है कि उद्धव ठाकरे को कतई उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी उनकी कारगुजारियों की वजह से ही बदले की आग में धधक रही है.

उद्धव ठाकरे की आंख तब खुली जब संपर्क करने पर बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने साफ साफ बोल दिया कि बात हाथ से काफी दूर निकल चुकी है. ये वाकया तभी का है जब 21 जून को एकनाथ शिंदे कुछ विधायकों के साथ मुंबई से सूरत रवाना हुए थे. बाद में जब वो सूरत से गुवाहाटी चले गये तो शिवसेना विधायकों में 'तू चल मैं आता हूं' का खेल शुरू हो गया.

बताते हैं कि तभी एक पूर्व मंत्री के जरिये उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस से संपर्क किया. सूत्रों के हवाले से अब आयी जानकारी के पता चलता है कि उद्धव ठातरे और देवेंद्र फडणवीस में बात भी हुई थी, लेकिन बीजेपी नेता ने हाथ खड़े कर दिये.

निराशा हाथ लगने के बाद उद्धव ठाकरे के संपर्क के बीजेपी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से बात करने की सलाह दी. उद्धव ठाकरे ने ठीक वैसा ही किया लेकिन दोनों में से किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया.

इसे उद्धव ठाकरे के पुराने रुख से जोड़ कर देखा जा रहा है. कहा जाता है कि 2019 में महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी नेतृत्व की तरफ से भी ऐसे ही संपर्क करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन तब उद्धव ठाकरे ने भी जवाब नहीं दिया था. फिर तो बदला पूरा हुआ समझा जाना चाहिये.

1. उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने के छह महीने पूरे होने वाले थे और किसी भी सदन का सदस्य न होने के चलते कुर्सी खतरे में नजर आ रही थी. फिर अप्रैल, 2020 में उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया. पूरी बात बतायी तो सुन कर मोदी बोले, ठीक है देखते हैं. बाद की प्रक्रिया तो लंबी रही लेकिन नतीजा यही हुआ कि राज्यपाल के कहने पर चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव कराये और काम हो गया.

2. करीब साल भर बाद जून, 2021 में उद्धव ठाकरे ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी. करीब 45 मिनट की मुलाकात के बाद जब कयास लगने शुरू हुए तो संजय राउत की तरफ से कहा गया, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है.'

बाद में उद्धव ठाकरे के मुंह से भी ऐसा ही सुनने को मिला था, 'मैं ईमानदारी से सोचता हूं कि राजनीति में बहुत कड़वाहट नहीं होनी चाहिये... हम सभी लोगों का ताल्लुक इसी धरती से है... ऐसे में हमें यह सोचना चाहिये कि अहंकार मन में रखे बिना कैसे राज्य की भलाई के लिए हम लोग अपना योगदान दे सकते हैं.'

3. करीब तीन महीने बाद सितंबर, 2021 औरंगाबाद में एक सरकारी कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे के भाषण की शुरुआत ने सबको चौंका दिया था क्योंकि उन्होंने बीजेपी को भविष्य का सहयोगी बता डाला था.

उद्धव ठाकरे ने अपना भाषण शुरू करते हुए कहा, 'मेरे मौजूदा... पूर्व और अगर हम साथ आते हैं तो फिर भविष्य के सहयोगी...' - और ये कहते हुए वो पीछे मुड़ कर देखे जहां रेल राज्य मंत्री राव साहेब दानवे बैठे हुए थे.

अफसोस बीजेपी नेतृत्व बहुत पहले ही तय कर चुका था कि शिवसेना को तो वो सहयोगी बनाये रखेंगे, लेकिन उद्धव ठाकरे कभी सहयोगी नहीं रहेंगे. उद्धव ठाकरे को ये बात काफी देर से समझ में आयी और तब तक काफी देर हो चुकी थी, लिहाजा अब एक ही विकल्प बचा है कि वो विपक्षी खेमे का हिस्सा बने रहें और हो सके तो पुराने रिमोट की बैटरी बदल कर फिर से शरद पवार के हवाले कर दें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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