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Updated: 17 दिसम्बर, 2022 12:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) का लेटेस्ट रोल ऊपर से तो आदित्य ठाकरे के इतिहास जैसा लगता है, लेकिन भविष्य के हिसाब से देखें तो वो अखिलेश यादव जैसी भूमिका निभाने वाले हैं. फिर भी, ऐसे भी समझ सकते हैं कि फिलहाल वो राहुल गांधी के अच्छे दोस्त जैसे हैं. 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के आस पास की तस्वीरें देखें तो राहुल गांधी को दयानिधि स्टालिन के साथ हंसी ठहाकों के साथ बातचीत करते देखा जा सकता है.

राजनीति उदयनिधि स्टालिन का पहला प्यार नहीं है. बल्कि वो भी राजनीति में चिराग पासवान, तेजस्वी यादव और, कह सकते हैं कि राहुल गांधी की तरह ही आये हैं. सभी का अपना अपना संघर्ष रहा है - और उस लिहाज से देखें तो उदयनिधि स्टालिन के सामने भी चुनौतियों का अंबार ही लगा हुआ है.

तमिलनाडु की डीएमके सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने के बाद उदयनिधि स्टालिन ने कहा भी कि मारी सेल्वराज की फिल्म मामनन को पूरा करने के बाद वो एक्टिंग को अलविदा कह देंगे. वो प्रोड्यूसर और दक्षिण सिनेमा के एक्टर भी हैं. उनकी प्रोडक्शन कंपनी रेड जाएंट्स मूवीज दक्षिण भारत की प्रभावशाली कंपनियों में से एक मानी जाती है.

पिछले आम चुनाव में राजनीति का रुख करने वाले उदयनिधि 2021 में पहली बार विधायक का चुनाव लड़े थे, और जीते भी. विधायक बनने के बाद से वो अपने इलाके के लोगों की शिकायतों को सुनने, समझने और समाधान खोजने के लिए घर घर दस्तक दी थी - और इस वाकये की चर्चा भी काफी हुई थी क्योंकि कुछ वीडियो भी वायरल हो गये थे.

ऐसा समझा जाता है कि 70 साल की तरफ बढ़ रहे मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (MK Stalin) ने 45 साल के बेटे उदयनिधि स्टालिन को अपनी मदद के लिए कैबिनेट में शामिल किया है. फिलहाल उदयनिधि डीएमके यूथ विंग के सचिव भी हैं. सुनने में आया है कि राजनीतिक विरोधियों को लेकर ही नहीं, पार्टी और परिवार में भी काफी उथल पुथल चल रही है - और उदयनिधि स्टालिन को ऐसी ही ढेरों चुनौतियों से जूझना है.

तमिलनाडु सरकार में उदयनिधि स्टालिन का शामिल होना, एमके स्टालिन के लिए वैसे ही मददगार हो सकता है, जैसे उद्धव ठाकरे ने आदित्य ठाकरे को कैबिनट साथी बनाया था - लेकिन उनको कोई भी फायदा नहीं मिला. ऊपर से भारी नुकसान उठाना पड़ा.

ऐसे प्रयोगों से कुछ चीजें तो आसान हो जाती हैं, लेकिन ऐसे बहुत मसले होते हैं जो मुश्किल बन जाते हैं. मंत्री पद की शपथ लेने के बाद ज्यादातर मामलों के लिए एक्सेस कार्ड मिल जाता है. महाराष्ट्र की ही बात करें तो बहुतों को लगता था जैसे आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री जैसा ही व्यवहार कर रहे हों.

जैसे उद्धव ठाकरे को आदित्य ठाकरे की वजह से काफी दिनों तक बचाव की मुद्रा में रहना पड़ा था, मान कर चलना होगा कि एमके स्टालिन को भी वैसी चुनौतियां फेस करनी पड़ सकती हैं - क्योंकि तमिलनाडु में भी ये रोल बीजेपी (BJP) के पास ही है. और जानी दुश्मन एआईएडीएमके तो है ही.

आदित्य ठाकरे तो हाल के उदाहरण हैं, लेकिन एमके स्टालिन खुद भी अपने पिता एम. करुणानिधि की सरकार में पहले मंत्री और फिर डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं. और ये सब उनके चेन्नई के मेयर बनने के बाद की बातें हैं.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि उदयनिधि स्टालिन अब हमेशा ही परिवारवाद की राजनीति को लेकर बीजेपी नेतृत्व के निशाने पर रहेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ये कैंपेन तमिलनाडु में पहले ही शुरू कर चुकी है - और आने वाले चुनावों में ये और भी जोर पकड़ेगा.

बिहार चुनाव में तो सबने देखा ही कि कैसे तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज तक कहा गया. जैसे बाद में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को राजकुमार बुलाया जाता रहा, राहुल गांधी को युवराज बुलाये जाने की तरह ही. तब तो तेजस्वी यादव को इतना परेशान देखा गया था कि आरजेडी के पोस्टर से परिवार के सदस्यों की तस्वीरें गायब हो गयी थीं.

बेशक एमके स्टालिन ने बेटे को बड़े मकसद के साथ सरकार में शामिल किया है, लेकिन आने वाली चुनौतियों के लिए अभी से तैयार भी हो जाना चाहिये.

जब पिता की सिफारिश पर बेटे को मंत्री बनाया जाना परंपरा बन जाये

2006 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जब डीएमके की सरकार बनी तो एमके स्टालिन मंत्री बनाये गये थे. काफी काम भी किया और पूरे कार्यकाल तक ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन विभाग उनके पास ही रहा - जबकि उनके पिता एम. करुणानिधि मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

udhaynidhi stalin, mk stalinपिता जैसी चुनौती से जूझ रहे एमके स्टालिन ने मोर्चे पर बेटे को लगा दिया है - देखिये कितना झेल पाते हैं?

और फिर May, 2009 में पिता मुख्यमंत्री की ही सिफारिश पर तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने मंत्री स्टालिन को तमिलनाडु का डिप्टी सीएम नॉमिनेट कर दिया. जैसे एमके स्टालिन चेन्नई के पहले प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए मेयर बने थे, तमिलनाडु के पहले उप मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड भी उनके नाम ही दर्ज है.

हाल ही में जब तमिलनाडु के राज भवन से एक आधिकारिक विज्ञप्ति सामने आयी तो बहुतों की गुजरे जमाने की यादें ताजा हो गयीं. विज्ञप्ति में लिखा था, 'तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को चेपक-थिरुवल्लिकेनी विधानसभा क्षेत्र के विधायक उदयनिधि स्टालिन को मंत्री परिषद में शामिल करने की सिफारिश की थी... राज्यपाल ने सिफारिश को मंजूरी दे दी है.'

पिता एमके स्टालिन की ही तरह उदयनिधि स्टालिन ने भी तमिल में ही मंत्री पद की शपथ ली - और फिर बोले, 'मैं मंत्री पद को एक जिम्मेदारी के रूप में देखता हूं... और इसे पूरा करने की पूरी कोशिश करूंगा.'

उदयनिधि को विरासत सौंपने की तैयारी है

दक्षिण भारत की राजनीति में डीएमके परिवार का रुतबा करीब करीब वैसा ही है, जैसा उत्तर भारत में समाजवादी परिवार का. करुणानिधि परिवार में अभी मुलायम परिवार जैसा झगड़ा तो नहीं है, लेकिन ज्यादा फर्क भी नहीं लगता.

और भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए ही स्टालिन ने बेटे को मुख्य भूमिका में ला दिया है - ताकि बाद में मुलायम सिंह की तरह लड़ाई न लड़नी पड़े और कहीं ऐसी नौबत न आ जाये कि प्यारी बहन कनिमोड़ी की हदें तय करने के लिए एमके स्टालिन को भी मुलायम सिंह की ही तरह शिवपाल यादव जैसा व्यवहार करना पड़े.

परिवार में नाराजगी बढ़ने लगी है: मुलायम सिंह यादव और एम. करुणानिधि की पारिवारिक बनावट भी मिलती जुलती ही लगती है. मुलायम सिंह यादव ने दो शादियां की थी, करुणानिधि इस मामले में एक कदम आगे रहे और उनकी तीन पत्नियों की संतान से पूरा परिवार आबाद है.

जो लोग उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के परिवार में राजनीतिक विरासत के टांसफर से वाकिफ हैं, उनको तमिलनाडु का झगड़ा भी याद होगा ही. जैसे शिवपाल यादव को लेकर सुना जाता रहा कि पार्टी कार्यकर्ता उनके साथ हैं, वैसे ही करुणानिधि के बेटे एमके अलागिरि का भी दावा रहा कि ज्यादातर कार्यकर्ता उनके साथ ही हैं. जैसे करुणानिधि ने अपनी जिंदगी में अपनी विरासत एमके स्टालिन को सौंप दी थी - अब वो भी बेटे के लिए पिता के रास्ते पर ही चलते नजर आ रहे हैं.

शिवपाल यादव तो घाट घाट का पानी पीने के बाद भतीजे अखिलेश यादव को छोटे नेताजी मानकर लौट चुके हैं, लेकिन डीएमके सांसद कनिमोड़ी को घुटन सी होने लगी है. माना जा रहा है कि वो हाशिये पर भेज दिया गया महसूस कर रही हैं. कनिमोड़ी को उपेक्षा का भाव इसलिए भी महसूस हो रहा है कि क्योंकि स्टालिन के दामाद सबरीशन को भी पार्टी और सरकार में कुछ ज्यादा ही तवज्जो मिलने लगी है.

मुख्यमंत्री स्टालिन को परिवार में अंदर ही अंदर धधक रही आग का धुआं उस दिन साफ साफ नजर आया था जब अमित शाह ने कनिमोड़ी को फोन कर हैपी बर्थडे बोला था. कनिमोड़ी के साथ भी बीजेपी शिवपाल जैसा ही व्यवहार करेगी या अपर्णा यादव जैसा, ये अभी किसी को नहीं मालूम - लेकिन एक बात तो साफ है कि बीजेपी डीएमके परिवार में सेंध लगाने में जुटी हुई है.

एमके स्टालिन की मुश्किल ये है कि उनको अपने आसपास एकनाथ शिंदे को भी खोजना है और अगर अमर सिंह की भूमिका में कोई है तो उसे भी - और सबसे बड़ी बात कि हर हाल में कनिमोड़ी को अमित शाह की नजर से भी बचाये रखना है.

पार्टी पर नियंत्रण के मकसद से: उदयनिधि स्टालिन 2019 के आम चुनाव से पहले राजनीति में आये थे और तभी से पिता की मदद में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं - और तमिलनाडु की 39 लोक सभा सीटों में से डीएमके के 38 सीटें जीत लेने में उदयनिधि की बड़ी भूमिका भी रही है.

स्टालिन के लिए पार्टी नेताओं, खासकर जो सरकार में मंत्री हैं, उनको कंट्रोल में रखना भी एक बड़ा चैलेंज है. चूंकि स्टालिन गवर्नेंस को लेकर सख्त और छोटी छोटी चीजों को लेकर बेहद सजग रहते हैं और उसी हिसाब से फैसले भी लेते हैं, लिहाजा अपने ही मंत्रियों और नेताओं को झेलना भी पड़ता है. और इस मामले में उनको करुणानिधि के मुकाबले कम काबिल भी माना जाता है.

चूंकि 2019 के आम चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन भी ज्यादातर उदयनिधि ने ही किया था, इसलिए सांसदों और विधायकों में से ज्यादातर उदयनिधि के साथ ही ज्यादा करीबी महसूस करते हैं - और उसी के भरोसे उदयनिधि को पिता की मदद करनी है.

बीजेपी की चुनौतियों से निबटने के लिए

परिवारवाद की पॉलिटिक्स बीजेपी के निशाने पर इसलिए भी है क्योंकि उत्तर से दक्षिण तक और पूरब पश्चिम तक उसकी राजनीतिक मिसाइल के लिए मसाला मिल जाता है. तमिलनाडु में जैसे पनीरसेल्वम बिहार के मांझी जैसी भूमिका में देखे गये हैं, डीएमके के खिलाफ बीजेपी को एआईएडीएमके नीतीश कुमार की जेडीयू जैसी लगती है - जिसमें परिवारवाद की राजनीति का कोई स्कोप नहीं है.

तमिलनाडु में बीजेपी असल में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके के साथ है, इसलिए डीएमके नेतृत्व और उनके परिवार को निशाना बनाना बीजेपी के लिए आसान भी हो जाता है - और आने वाले दिनों में स्टालिन पिता-पुत्र को ऐसी ही चुनौतियों से लगातार मुकाबला करना होगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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