सोशल मीडिया पर अंकुश रखने के लिए युगांडा का फॉर्मूला कैसा रहेगा ?
हमें तो नोटबंदी और जीएसटी जैसे सरकारी फैसले ही बहुत भारी लग रहे थे, लेकिन युगांडा की सरकार ने जो किया है उसे तो वहां के लोग सरकारी फरमान कह रहे हैं.
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जहां एक ओर भारत में हम लोग जीएसटी का पहला बर्थडे मनाने में जुटे हुए थे, वहीं दूसरी ओर अफ्रीकी देश युगांडा में सरकार ने सोशल मीडिया पर ही टैक्स लगा दिया है. अभी तक हमें जीएसटी और नोटबंदी जैसे कदम ही किसी सरकार के सख्त कदम लग रहे थे, लेकिन युगांडा ने तो इससे भी आगे बढ़कर सोशल मीडिया पर ही धावा बोल दिया. लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि आखिर सोशल मीडिया पर टैक्स क्यों? क्या सरकार की कमाई कम हो गई है और सरकार इस जरिए से अपना राजस्व बढ़ाना चाह रही है? या युगांडा की सरकार का ऐसा कदम उठाने के पीछे कोई खास मकसद है? खैर, यहां आपको बता दें कि 2016 में भी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई थी. तब तर्क दिया गया था कि ऐसा किसी तरह के झूठ को फैलने से रोकने के लिए किया गया है.
ये है असली वजह
युगांडा के वित्त मंत्री डेविड बहाटी का कहना है कि इससे युगांडा के राष्ट्रीय कर्ज को भी कम करने में मदद मिलेगी. वहीं दूसरी ओर, युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवनी ने कहा है कि सोशल मीडिया के जरिए अफवाहें बहुत फैलती हैं. लोग बिना सोचे समझे किसी भी मैसेज को शेयर कर देते हैं. इन्हीं अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए सोशल मीडिया टैक्स लगाया जा रहा है. मुसेवनी ने सोशल मीडिया को अफवाहों का मुख्य स्रोत बताते हुए कहा कि इस नए कानून से अफवाहों पर लगाम लगेगी. अगर ऐसा है तो भारत में भी इसे लागू क्यों नहीं कर दिया जाता? अफवाहें तो यहां भी खूब फैलती हैं. ये अफवाह ही तो हैं, जिसके चलते आए दिन कोई न कोई भीड़ किसी की जान लेने पर आमादा हो जाती है. लेकिन क्या भारत में इसे लागू किया जा सकता है?
युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवनी के अनुसार इससे अफवाहों पर लगाम लगेगी.
भारत में लगा सकते हैं सोशल मीडिया टैक्स?
इंटरनेट और साइबर क्राइम मामलों के जानकार पवन दुग्गल का कहना है कि अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अगर भारत सरकार चाहे तो वह ऐसा टैक्स लगा सकती है. उनका मानना है कि इस तरह के कदम से कोई खास फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि अभी एक बड़े वर्ग का इंटरनेट पर आना बाकी है. हालांकि, युगांडा के राष्ट्रपति की तरह पवन दुग्गज भी यह मानते हैं कि अफवाहों का मुख्य स्रोत सोशल मीडिया ही है. उनके अनुसार टैक्स लगाने से कुछ हद तक तो अफवाहों पर लगाम लगेगी, लेकिन ये अधिक कारगर साबित नहीं होगा.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला !
सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए युगांडा में लोगों को बतौर टैक्स रोजाना करीब 3.36 रुपए अदा करने होते हैं. कई लोगों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करने जैसा है. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल शिक्षा और रिसर्च के लिए होता है और टैक्स लगाने से गरीब तबके पर बोझ काफी अधिक बढ़ जाएगा. आपको बता दें कि युगांडा में करीब 2.3 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर्स हैं, जिनमें से सिर्फ 1.7 करोड़ सब्सक्राइबर्स ही ऐसे हैं जो इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
युगांडा सरकार ने सोशल मीडिया पर टैक्स लगाने का जो फैसला किया है उससे यकीनन थोड़ी राहत तो मिलेगी, लेकिन इसे अफवाहों को रोकने का कारगर तरीका नहीं कहा जा सकता है. हां, इससे गरीब तबके और मिडिल क्लास के लोगों पर बोझ जरूर बढ़ जाएगा. वहीं, बहुत सारी कंपनियों के बिजनेस पर भी असर पड़ेगा, जो फेसबुक पेज के जरिए अपनी मार्केटिंग करते हैं. इससे सबसे अधिक नुकसान उन कंपनियों को होगा, जो कंटेंट मार्केटिंग के बिजनेस में हैं.
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