आने वाले चुनावों में सवर्णों का गुस्सा कहीं भाजपा को महंगा न पड़ जाए!
सवर्णों की आबादी 25 से 30 फीसदी होने के बावजूद भी इनकी फिक्र किसी राजनीतिक दलों को क्यों नहीं है? जो सवर्ण शुरू से ही भाजपा का वोट बैंक रहे हैं इन्हें नाराज़ कर भाजपा अपना चुनावी प्रदर्शन बरकरार रख सकती है?
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कुछ दिन पहले ही जब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए एससी/एसटी एक्ट को मूल स्वरूप में बहाल किया, तब से सवर्णों में गुस्सा है जो अब भाजपा के गले की फांस बनता जा रहा है. समय-समय पर इनकी नाराजगी को भाजपा के नेताओं को झेलना भी पड़ा है. अभी हाल में ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निशाना बनाया गया, जब जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान उनके ऊपर पत्थर और जूते फेंके गए. यही नहीं मध्य प्रदेश के गुना में सर्किट हाउस में मौजूद केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को भी सवर्णों के गुस्सा का शिकार होना पड़ा और पुलिस के संरक्षण में उन्हें सुरक्षित जाना पड़ा. फिर जहां विदिशा में केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर के सामने एक्ट के खिलाफ नारे लगाए गए, वहीं भाजपा सांसद प्रभात झा के ऊपर भी चूड़ियां फेंकी गईं.
6 सितम्बर को सवर्णों के संगठन ने भारत बंद का आह्वाहन किया है
यह गुस्सा केवल मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं रहा है. एससी-एसटी एक्ट के विरोध में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी आवाज उठने लगी है. भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र भी इस एक्ट के खिलाफ हैं. इनके अनुसार इस एक्ट का दुरूपयोग हो रहा है और फर्ज़ी मुकदमों में लोगों को गिरफ़्तार किया जा रहा है. एससी-एसटी एक्ट को लेकर अब 6 सितम्बर को सवर्णों के संगठन ने भारत बंद का भी आह्वाहन किया है. इसके मद्देनजर मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में धारा 144 भी लगाई गई है.
लेकिन अहम सवाल यह उठता है कि क्या सवर्ण जातियां राजनीतिक पार्टियों के लिए खासकर भाजपा के लिए हाशिए पर आ गई हैं? सवर्णों की आबादी 25 से 30 फीसदी होने के बावजूद भी इनकी फिक्र किसी राजनीतिक दलों को क्यों नहीं है? जो सवर्ण शुरू से ही भाजपा का वोट बैंक रहे हैं इन्हें नाराज़ कर भाजपा अपना चुनावी प्रदर्शन बरकरार रख सकती है? या फिर भाजपा को लगता है कि नाराज़गी के बावजूद भी ये सवर्ण जातियां भाजपा से ही जुड़ी रहेंगी?
एससी एसटी एक्ट के विरोध में मध्यप्रदेश की महिलाएं भी उतर आई हैं
आखिर ये सवर्ण जातियां इतने गुस्से में क्यों हैं ?
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों में ढील देते हुए कहा था कि इसमें गिरफ्तारी से पहले सीनियर पुलिस अधिकारी से जांच कराए जाने और सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए उसकी नियुक्ति करने वाले अफसर की अनुमति जरूरी होगी. इसके खिलाफ सरकार के सहयोगी दलों ने दवाब बनाना शुरू कर दिया था और सरकार से अलग होकर चुनाव लड़ने की भी धमकियां देने लगे थे. ऐसे में पिछले महीने केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए एससी-एसटी एक्ट में संशोधन करके इसे फिर से पुराने स्वरूप में ला दिया. अब इसके खिलाफ सवर्णों ने मोर्चा खोल दिया है.
सवर्णो का आबादी करीब 25 से 30 फीसदी है जो अभी तक भाजपा का वोट बैंक माना जाता था. पिछले 2014 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने सवर्णों के करीब 54 फीसदी मत प्राप्त हुए थे. लेकिन लगता है इसका खामियाज़ा भाजपा को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है. फिलहाल सवर्णों की अनदेखी भाजपा को कितना नुकसान पहुंचाएगी ये तो कहना मुश्किल है लेकिन इसका नतीजा आने वाले चुनावों में देखने को जरूर मिल सकता है.
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