तौर तरीके छोड़िये, मोदी सरकार ने तो यूपीए की फसल ही काटी है
मोदी सरकार में अर्बन नक्सल के नाम पर हुई गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस नेता सिर्फ राजनीतिक दुश्मनी निकाल रहे हैं. बात सिर्फ इतनी है कि फिल्म तो अभी रिलीज भर हुई है, पूरी शूटिंग तो मनमोहन सिंह सरकार के दौरान हुई थी.
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राहुल गांधी और उनके साथियों का ही आरोप रहा है कि मोदी सरकार कुछ नया नहीं करती बल्कि मनमोहन सरकार की योजनाओं को ही नयी पैकेजिंग के साथ नये नाम से लोगों के सामने परोस देती है. मनरेगा इसी कड़ी में मिसाल है. भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद हुई ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों में भी देखा जाये तो सब कुछ नया नहीं है. धर पकड़ की स्टाइल अलग या नयी हो सकती है. बीजेपी के मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी ने तो सिर्फ इमरजेंसी की आशंका जतायी थी, विपक्ष तो कब का अघोषित आपातकाल की घोषणा कर चुका है. पुणे पुलिस ने जिस तरीके से छापेमारी की वैसे या तो इनकम टैक्स वाले मारते हैं या भी फिर सीबीआई के अफसर. गिरफ्तारी का तरीका भी तकरीबन वैसा ही मिलता जुलता रहा.
हद है घर में देवी देवताओं के फोटो तक नहीं!
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पुणे पुलिस ने वरवर राव को गिरफ्तार तो किया ही, उनकी बेटी और दामाद के घरों पर भी छापेमारी की - और अजीब अजीब से सवाल भी पूछ लिये.
वरवर राव की बेटी सुजाता से भी पुणे पुलिस ने पूछे अजीब अजीब सवाल
दरअसल, पुणे पुलिस को सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर रही कि वरवर राव की बेटी के घर में देवी देवताओं की तस्वीरें नहीं दिखीं. और तो और जब पुलिसवालों ने राव की बेटी को बगैर सिंदूर के देखा तो माथा ही पीट लिया. ये सारी बातें इंडियन एक्सप्रेस को राव की बेटी सुजाता और दामाद के सत्यनारायण ने बतायी हैं.
पुणे पुलिस का सवाल था - "आपके घर में फुले और अंबेडकर की तस्वीरें हैं, लेकिन देवी-देवताओं की क्यों नहीं?"
सिर्फ तस्वीरें ही नहीं पुलिस को ताज्जुब इस बात पर भी हो रहा था कि राव की बेटी के घर में किताबों का भी अच्छा खासा भंडार है. ऐसा लगता है
पुलिस की बड़ी उलझन इसी बात को लेकर रही होगी कि लोग इतनी किताबें क्यों पढ़ते हैं?
पुणे पुलिस द्वारा राव की बेटी और दामाद से पूछे गये सवालों पर गौर कीजिए -
"आपके घर में इतनी किताबें क्यों है?"
"क्या ये आप सारी किताबें पढ़ते हैं?"
"आप इतनी किताबें क्यों पढ़ते हैं?"
और फिर मूल सवाल जिसके जरिये राज जानने की कोशिश रही - "आप मार्क्स और माओ के बारे में किताबें क्यों पढ़ते हैं?"
पुणे पुलिस का मन सिर्फ इतने भर से नहीं भरा. सवालों की फेहरिस्त बड़ी लंबी थी. शायद दिल्ली पुलिस से भी ज्यादा जो अब तक स्वयंभू शनि प्रभाव विशेषज्ञ मदनलाल राजस्थानी उर्फ दाती महाराज से आठ बार पूछताछ कर चुकी है. दाती महाराज पर उनके आश्रम की एक लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया है, लेकिन पुलिस की नजर में केस इतना बेदम है कि गिरफ्तारी के काबिल नहीं समझती. कुछ कुछ वैसा ही जैसा उन्नाव रेप केस में यूपी पुलिस का रवैया रहा. पुणे पुलिस दो कदम आगे जरूर है.
अब एक बार पुणे पुलिस द्वारा राव की बेटी से पूछे गये सवालों पर गौर कीजिए - और सोचिये ये सब पुलिस अपने मन से कर रही थी, या किसी बाहरी दवाब के प्रभाव में?
"आपके पति दलित हैं, इसलिए वो किसी परंपरा का पालन नहीं करते हैं. लेकिन आप तो ब्राह्मण हैं. फिर आपने कोई गहना या सिंदूर क्यों नहीं लगाया है?"
"आपने एक पारंपरिक गृहिणी की तरह कपड़े क्यों नहीं पहने हैं?"
"क्या बेटी को भी पिता की तरह होना ज़रूरी है?''
दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं, बस कल्पना कीजिए वरवर राव की बेटी-दामाद के घर का दृश्य उस वक्त कैसा लग रहा होगा? ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि ये फिल्म तो अभी अभी रिलीज हुई है, शूटिंग तो पूरी की पूरी मनमोहन सिंह सरकार के दौरान हुई थी. स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले लिखने वाला कोई और नहीं बल्कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम हैं. हालांकि, चिदंबरम के ताजा विचार पुराने से काफी अलग हैं.
I will strongly disagree with those who hold extreme left or extreme right views, but I will defend his right to hold that view. That is the essence of freedom.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 29, 2018
मोदी सरकार में तो फिल्म रिलीज भर हुई है
जब कांग्रेस ने सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और वरनॉन गोंसाल्विस और वरवर राव के खिलाफ पुणे-पुलिस एक्शन को मोदी सरकार का तानाशाही रवैया बताना शुरू किया तो सुन कर बरबस हंसी आ रही थी. जो कांग्रेस इन एक्टिविस्ट को फूंटी आंख नहीं देखना चाहती थी, अपने राजनीतिक विरोधी पर निशाना साधने के लिए तारीफ में कसीदे पढ़े जा रही थी. सीनियर पत्रकार शेखर गुप्ता से भी ये सब नहीं देखा गया.
This is incredible chutzpah. Many Left activists, incl some arrested now, were also locked up under UPA. Khobad Ghandy & GN Saibaba are still in jail. Armed Naxal leaders Azad & Kishen ji were killed in “black” operations. Look, who’s talking.. https://t.co/tWHitoFboU
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) August 29, 2018
जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा भले ही कार्रवाई को लेकर मोदी सरकार की तीखी आलोचना कर रहे थे, लेकिन पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम और कांग्रेस नेताओं की बातें नागवार गुजर रही थीं. ट्विटर के साथ साथ रामचंद्र गुहा ने टीवी चैनलों से बातचीत में कहा भी, "कांग्रेस उतनी ही दोषी है जितनी बीजेपी. जब चिदंबरम गृहमंत्री थे तब आदिवासी इलाकों में काम करने वाले समाज सेवियों और कार्यकर्ताओं को तंग करना शुरू किया गया था. ये सरकार उसे ही आगे बढ़ा रही है."
This is absolutely true. It was P Chidambaram who as Home Minister energetically oversaw the persecution of activists and social workers in adivasi areas: https://t.co/tbTH8tjSLP
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) August 29, 2018
असल में, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद जिन पांच लोगों को नजरबंद किया गया है उनमें से फरेरा और गोंजाल्विस दो ऐसे एक्टिविस्ट हैं जिन्हें 2007 में भी गिरफ्तार किया जा चुका है और कई साल जेल में बिताने पड़े हैं. वरवर राव को भी पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस कई बार गिरफ्तार कर चुकी है.
दिसंबर, 2012 में मनमोहन सरकार ने ही ऐसे 128 संगठनों की शिनाख्त की थी जिनके सीपीआई (माओवादी) से संबंधों का पता चला. उसी समय सभी राज्यों को ऐसे संगठनों और संगठन से जुड़े लोगों के खिलाफ एक्शन लेने की सलाह दी गयी थी. मनमोहन सरकार द्वारा तैयार उस लिस्ट में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजाल्विस और महेश राउत के भी नाम थे. मोदी सरकार में भी पुणे पुलिस ने सिर्फ पकड़ा भर है. अब मोदी सरकार के कामकाज का अंदाज अलग है तो उसका कुछ न कुछ असर पुलिस पर भी तो पड़ेगा ही.
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