संतान से जुड़े नियम में छूट वसुंधरा की छटपटाहट है
राज्य सरकार ने राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 की धारा 53 (ए) को रद्द करने का फैसला किया है. अब तीसरी संतान होने पर कर्मचारी को नौकरी में बने रहने का पूरा अधिकार होगा.
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चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल क्या-क्या जुगत लगा सकते हैं यह राजस्थान सरकार के नए अप्रगतिशील निर्णय से पता चलता है. वसुंधरा सरकार ने राज्य के कर्मचारियों को खुश करने के लिए राज्य और देश को पीछे धकेलने वाला फैसला किया है. राज्य सरकार ने राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1996 की धारा 53 (ए) को रद्द करने का फैसला किया है. इस कानून के अनुसार तीसरी संतान होने पर राज्य कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवानिवृति देने का प्रावधान था. राज्य सरकार ने अब इस नियम को रद्द कर दिया है. अब तीसरी संतान होने पर कर्मचारी को नौकरी में बने रहने का पूरा अधिकार होगा.
राज्य सरकार के इस फैसले से नुक्सान सिर्फ जनता का ही है
भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से अधिक हो चुकी है. जिस गति से देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसके अनुसार कुछ ही समय में हम चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएंगे. जहां हमारे देश की सरकारों को जनसंख्या पर लगाम लगाने की कोशिश करनी चाहिए वहां हमारी सरकारें अपने निजी स्वार्थ के चलते अच्छे ख़ासे कानूनों को कमज़ोर करने में लगी हैं. राजस्थान ने एक प्रगतिशील नियम को वापिस लेकर एक गलत प्रथा का बीज बो दिया है.
कुछ माहीने पहले भाजपा को राजस्थान उपचुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा था. उपचुनावों में कांग्रेस ने अजमेर, अलवर की लोकसभा सीट तथा मांडलगढ़ की विधानसभा सीट भाजपा से छीन ली थी. इस वर्ष के अंत में प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हैं. ऐसी परिस्थिति में वसुंधरा सरकार प्रदेश की जनता की खुशामद करने के अनेक प्रयास करेगी. उपरोक्त निर्णय भी उनमें से एक है.
लोगों की भलाई के कदम उठाकर उनसे अपने पक्ष में मतदान की आशा करना गलत नहीं है, परंतु अपने अल्पावधि के लाभ के लिए पुराने प्रगतिशील नियम खत्म करना प्रदेश और देश के साथ धोखा है. ऐसे फैसलों से वसुंधरा सरकार को अभी तो वाह वाही मिल जाएगी पर जब प्रदेश में बढ़ती जनसंख्या के कारण दबाव पड़ेगा तो वह कुछ नहीं कर पाएंगी. देश के राजनीतिक दलों की यह प्रवृति बनती जा रही है कि जनता की गलत तरीकों से खुशमाद करो और चुनाव जीतो. चाहे अलग-अलग जातियों को आरक्षण देने की बात हो या किसानों से ऋण माफी के वादे, सब राजनीतिक दल बिना मेहनत किए, आसान तरीके से चुनाव जीतना चाहते हैं. देश और प्रदेश के नागरिकों को इन निर्णयों से लाभ नहीं नुकसान ही उठाना पड़ेगा.
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