ICJ के फैसले से 4 सवालों के जवाब मिले और एक पहेली
कुलभूषण जाधव मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ( ICJ ) ने अपना फैसला सुना दिया. देश ने यह सांस रोक कर सुना. भारत की दलील जीत गई है. लेकिन, क्या जश्न मनाया जा सकता है?
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जासूसी के गंभीर आरोप से घिरे और पाकिस्तान जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव की फांसी पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ICJ ने अपना फैसला सुना दिया है. और ये भारत के हक़ में है, जिससे देश का एक आम आदमी बड़ा खुश है. ICJ का मत है कि जाधव को फांसी नहीं होनी चाहिए और उसे अंतिम फ़ैसला आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए. जज ने विएना कन्वेंशन का हवाला देते हुए कहा है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अंतिम फैसले तक इस समझौते को मानने के लिए बाध्य हैं.
अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट के जज ने इस बात का संज्ञान लिया कि विएना संधि के अनुसार जाधव को भारत की ओर से कानूनी मदद मिलनी चाहिए थी. साथ ही कोर्ट ने इस बात पर भी अपना रुख साफ कर दिया कि जब दोनों ही देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं तो ऐसे में जाधव की काउंसलर एक्सेस की मांग मानी जानी चाहिए थी. इसके अलावा कोर्ट का ये भी मत है कि चूंकि अब तक यह तय ही नहीं हो पाया है कि वह आतंकवादी थे या नहीं, अतः जाधव को दोषी मानकर सजा देना सरासर गलत है. कह सकते हैं कि कुलभूषण जाधव का मामला भारत और नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा का प्रतीक था. लेकिन, क्या इस फैसले से भारत की जीत हो गई है ? क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव मामले में नरम पड़ जाएगा ?
1. क्या पाकिस्तान एक्सपोज हुआ ?
इस सवाल का जवाब हां है. ICJ में यह मामला जाने से कम से कम दुनिया को यह तो पता चल गया कि कुलभूषण जाधव का फैसला पाकिस्तान ने किस कंगारू कोर्ट में चलाया. पहले तो सिर्फ आतंकी गतिविधियों को लेकर ही लोग पाकिस्तान पर शक करते थे, अब तो उसकी न्याय व्यवस्था की भी किरकिरी हो गई है.
2. ICJ के क्षेत्राधिकार पर सवाल उठाना कितना बुद्धिमानी भरा रहा ?
इस बात से हर कोई भली भांति परिचित है कि जब पाकिस्तान की नहीं चलती तो या तो वो अपनी गलतियों का दोष भारत पर मढ़ देता है या फिर अपने अड़ियल रवैये से नियम कानूनों पर ही सवालिया निशान लगा देता है. जाधव प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां पाकिस्तान ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाते हुए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठा दिए. लेकिन ICJ के जज ने पाकिस्तान की हर आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया.
3. मानव अधिकारों की कीमत ?
भारत और पाकिस्तान के बीच 'मानवाधिकार' एक बड़ा मुद्दा है. भारत ने तो कुलभूषण जाधव के मानवाधिकार का मुद्दा उठाया है, जबकि पाकिस्तान दुनिया में कश्मीरियों के मानवाधिकार का मामला उठाता रहा है. लेकिन ICJ ने अपने फैसले भारत की दलील को मानकर कहा है कि पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव के बुनियादी मानवाधिकारों का ख्याल नहीं रखा. पाकिस्तान के भले अभी यह गले नहीं उतर रहा है, लेकिन इस फैसले से यह तो साबित हो ही गया है कि मानवाधिकार की उसकी परिभाषा अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के हिसाब से गलत है.
4. मजाक बन गया कुलभूषण जाधव का कबूलनामा ?
ICJ में सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने पूरी ताकत इस बात पर लगा दी थी कि कोर्ट एक बार कुलभूषण जाधव का वह वीडियो देख ले, जिसमें वह पाकिस्तान में आतंक फैलाने की बात स्वीकार कर रहा है. लेकिन उसकी एक न चली. दरअसल, पाकिस्तान के इससे जुड़े दो मकसद थे. एक तो यह बताना कि कुलभूषण जाधव का मामला उनके देश की सुरक्षा से जुड़ा है. दूसरा, भारत की छवि खराब करना कि किस तरह वह अपने पड़ोसी देश में आतंक फैला रहा है. पाकिस्तान के वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि जिस वियना संधि की बात भारत कर रहा है उसमें जासूसी के मामले लागू नहीं होते. लेकिन कोर्ट में उनकी एक न चली.
5. तो क्या ये हार कबूल कर लेगा पाकिस्तान ?
अब इस मामले का सबसे असली सवाल यही है. पाकिस्तान शुरू से इस बात पर अड़ा हुआ है कि ICJ का पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में हस्तक्षेप बनता ही नहीं है. फैसला आने के बाद अब उसने फिर यही बात दोहरा दी है. साफ-साफ कह दिया गया है कि वे ICJ के फैसले को नहीं मानेंगे. लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस मामले में यदि पाकिस्तान पहले ही ICJ की कार्रवाई का बॉयकॉट कर देता तो शायद उसके पास अपनी बात पर कायम रहने की सूरत भी होती. लेकिन उसने इस मामले में ICJ की कार्रवाई में हिस्सा ले लिया है और अपनी दलीलें भी रखीं. अब जब वह अपना केस हार गया है तो पीछे नहीं हट सकता.
खैर, पाकिस्तान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. अमेरिका के लाख चाहने के बावजूद वॉल स्ट्रीट जरनल के पत्रकार डेनियल पर्ल की पाकिस्तान में गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. जबकि सीआईए के अधिकारी रेमंड डेविस ने लाहौर में सरेआम दो लोगों को गोली मार दी थी, लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया. भारत के मामले में भी अनुभव मिला-जुला ही है. सरबजीत के साथ जो हुआ, कोई भूला नहीं है. इसलिए कुलभूषण जाधव जब तक घर न आ जाए, जश्न मनाना उचित नहीं है.
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