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Updated: 09 जुलाई, 2020 11:49 AM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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कानपुर कांड (Kanpur Kand) करने वाला विकास दुबे आखिर उज्जैन से धरदबोचा गया (Vikas Dubey arrested in Ujjain). 7 दिन पहले 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाला यह अपराधी ज्यादा दिन तक पुलिस से नहीं छुप पाया. इस बीच उसके तीन साथियों को पुलिस ने अलग अलग मुठभेड़ों में मार गिराया. यूपी पुलिस के दबाव ने विकास के आसपास की हवा को इतना टाइट कर दिया था कि अब उसके लिए फरारी में सांस लेना मुश्किल हो रहा था. यूपी का यह मोस्ट वांटेड अपराधी पकड़ा तो गया लेकिन, क्या इससे उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था (Uttar Pradesh law and order) को लेकर उठे सवालों का जवाब मिल पाया?

उत्तर प्रदेश को सिर्फ देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य के नाम से ही नहीं जाना जाता है. यह उत्तर प्रदेश अपराधियों और अपराध का गढ़ भी माना जाता है. देश में होने वाली सबसे ज्यादा हत्याएं उत्तर प्रदेश में ही होती हैं. सबसे ज्यादा सड़क हादसे, सबसे ज्यादा घरेलू हिंसाए और सबसे ज्यादा अपहरण के मामले में भी उत्तर प्रदेश अव्वल नंबर पर है. इसके अलावा दुष्कर्म और दंगों के मामले में भी उत्तर प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है. देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट भी उत्तर प्रदेश को जंगलराज कह कर संबोधित कर चुकी है. उत्तर प्रदेश को कभी 'अपराध प्रदेश' कहा जाता है तो कभी 'गुंडों का प्रदेश' कहा जाता है. लेकिन उत्तर प्रदेश में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद क्यों हैं? इतने अपराध होते क्यों हैं? इसके पीछे भी कई वजहे हैं.

उत्तर प्रदेश से अपराध को रोक पाना किसी भी सरकार के बस में नहीं है क्योंकि इन अपराधों को रोक पाने के लिए जिन संसाधनों का होना जरूरी है उन संसाधनों में ही भारी मात्रा में कमी है. यह कमियां क्या हैं और अपराध में लगातार बढ़ावा क्यों हो रहा है इसी पर चर्चा करते हैं.

आबादी

उत्तर प्रदेश की आबादी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश है. दुनिया भर में केवल चार देश ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या उत्तर प्रदेश से अधिक है. इन देशों में चीन, स्वंय भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और इंडोनेशिया ही है. जबकि ब्राजील ऐसा देश है जिसकी आबादी लगभग उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के बराबर ही है. विश्व के अन्य सभी देशों की कुल आबादी उत्तर प्रदेश की आबादी से कम है. अब इतने बड़े आबादी को संभालने के लिए एक प्रदेश कितना योग्य होगा यह तो आसानी से समझा ही जा सकता है.

UP, Crime, Yogi Adityanath, Law And Orderतमाम कारण हैं जो बताते हैं कि यूपी में शायद ही कभी अपराध को नियंत्रित किया जाए

पुलिस की कमी

यूं तो भारत के सभी राज्यों में पुलिस बल की भारी कमी है लेकिन BPRD की पुलिस संस्था से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी 2018 तक पुलिस कर्मियों की सबसे भारी कमी उत्तर प्रदेश में ही थी. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 तक देश भर में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 1.29 लाख पद खाली थे.

मानकों की मानें तो उत्तर प्रदेश में पुलिस की कुल तादाद 2.95 लाख होनी चाहिए, लेकिन वास्तव में इस वक्त पुलिसकर्मियों की कुल संख्या 1.45 लाख के आस-पास है.

इसका मतलब करीब 50 फीसदी पुलिस बल की कमी है. उत्तर प्रदेश की 22 करोड़ से अधिक लोगों की सुरक्षा क्या महज 1.45 लाख लोगों की फौजी अमलों के साथ की जा सकती है.

पुलिस की ड्यूटी में भी रोड़ा

ऐसा नहीं है कि यह 1.45 लाख पुलिसकर्मी अपना कार्य लोगों की सुरक्षा और अपराध पर अंकुश लगाने के लिए ही करते हैं. राज्य में पुलिस की इतनी बड़ी कमी होने के बावजूद इन्हीं पुलिस वालों को वीआईपी की सुरक्षा में भी लगा दिया जाता है. यानी पुलिस का एक बड़ा हिस्सा वीआईपी लोगों की सुरक्षा में ही लगा रहता है.

वीआईपी की सुरक्षा में जरूरत से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाता है जिसका खामियाजा प्रदेश को उठाना पड़ता है.

संसाधनों की भारी कमी 

कानून व्यवस्था को काबू में रखने वाली पुलिस के पास भी संसाधन की इतनी भारी कमी है कि वह अपराधियों के सामने फिसड्डी साबित हो जाती है. पुलिस महकमे में पुरानी गाड़ियों की भरमार है जबकि सारे अपराधी लग्जरी गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं. पुलिस अपराधी का पीछा करना भी चाहे तो दूर की कौड़ी साबित होती है.

इसी तरह से हथियारों का भी हाल केमोबेश यही है. एक तरफ अपराधी आधुनिक हथियारों से लैस होते हैं तो पुलिस के पास वही रिवाल्वर और कारतूस जैसे हथियार ही होते हैं.

इसी की एक बानगी अभी हाल ही में कानपुर मुठभेड़ के दौरान देखने को मिली थी. जहां अपराधी ऐके47 जैसे हथियारों से फायरिंग कर रहे थे. जबकि पुलिस अपने हथियार को इस्तेमाल में ला ही नहीं पाई. यही वजह रही की 8 पुलिसकर्मी तो शहीद हो गए लेकिन एक भी अपराधी जवाबी फायरिंग में नहीं मारा गया.

राजनीतिक साया 

उत्तर प्रदेश के सभी दलों में अपराधियों की भरमार है. लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा और जिला पंचायत स्तर तक के चुनावों में अपराधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हर दल इलाके के ऐसे कद्दावर लोगों को चुनाव का टिकट देती ही है जिस पर संगीन धाराओं का मुकदमा दर्ज होता है. इन अपराधियों से कोई भी सियासी दल बैर नहीं रखता है जिसका पूरा फायदा अपराधियों को हासिल होता है और वह सत्ता या अपने पद का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते हैं.

जनता के अंदर का भय

ऐसा नहीं है कि सारा कसूर पुलिस का और सरकार का ही होता है. उत्तर प्रदेश की जनता के अंदर भी अपराधियों के विरुद्ध बोलने का साहस कम ही है. यही वजह है कि जब अपराधियों को पुलिस पकड़ कर न्यायलय की चौखट तक पहुंचाती है तो अपराधियों के भय से या तो गवाह मुकर जाते हैं या फिर अपना बयान ही बदल देते हैं. अपराधी इसी का फायदा उठाकर न्यायलय से आसानी से जमानत पा जाते हैं और फिर अपनी दबंगई दिखाते हैं.

उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए कई बार इस प्रदेश के टुकड़े करने की मांग की जा चुकी है. कई बारगी यह मुद्द अपनी ओर सुर्खियां बटोरता रहा लेकिन आखिर में यह महज चर्चाओं तक ही सीमित रह गया. उत्तर प्रदेश के टुकड़े की मांग करने वालों की दलील है कि छोटे राज्य होने की वजह से विकास भी अधिक गति के साथ हो सकेगा और कानून व्यवस्था भी दुरूस्त हो सकेगी.

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश को संभाल पाना इतना आसान नहीं है यहां आबादी के हिसाब से सरकार को सुरक्षा मुहैया कराने की कोशिश करनी चाहिए और अपराधियों के विरुद्ध एक कठोर संकल्प होना चाहिए. पुलिस बल और अन्य संसाधनों को भरना चाहिए इनमें किसी भी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए. वरना सरकारें तो आती जाती रहेंगी लेकिन अपराध पर किसी भी तरह का कोई लगाम नहीं लग पाएगा.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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