गुजरात में होते हुए भी यह गांव 23 अप्रैल को वोट नहीं दे पाएगा
गुजरात के छोटा उदयपुर जिले में बसे साजनपुर गांव भले ही भौगोलिक दृष्टि से गुजरात में है लेकिन शासकीय तौर पर यह मध्यप्रदेश के आलीराजपुर जिले में है. और इसलिए 23 अप्रैल को होने वाले चुनाव में इस गांव के लोग मतदान नहीं करेंगे.
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मैं जब कभी भारत विभाजन के क़िस्से कुरेदता हूं तो सोचता हूं कि वह कैसे संभव हुआ होगा कि पूर्वी-बंगाल जो भौगोलिक दृष्टि से भारत से घिरा हुआ था, जिसकी सीमाएं किसी भी प्रकार से आज के पाकिस्तान से नहीं जुड़ती थी, फिर भी वह पाकिस्तान का हिस्सा था.
मैं सोचता था कि बंगाली भाषा के दबदबे वाले इलाकों को कैसे उर्दू-भाषी लोग संभाल रहे थे. चुनावों के दौरान वे यात्रायें कितनी दिलचस्प रही होंगी कि अपने ही देश के एक हिस्से में पहुंचने के लिए नेताओं को दूसरे देश के रास्तों से होकर गुज़रना होता था.
खैर, मेरे लिए वह सोच जितनी दिलचस्प थी, उतनी ही दोनों हिस्सों के लिए परेशानी का सबक भी थी और इसीलिए दोनों अलग हुए और एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ.
कुछ वर्षों पहले ऐसा ही कुछ मेरे ध्यान में आया कि आज़ादी के बाद से भारत की कुछ बस्तियां बांग्लादेश में थी और बांग्लादेश की बस्तियां भारत में. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान इस मसले को भी सुलझा लिया गया. दोनों देशों की सरकारों के बीच एक समझौता हुआ और 111 भारतीय और 51 बांग्लादेशी बस्तियों का आदान-प्रदान किया गया.
आज कुछ वर्षों बाद, ऐसा ही एक और दिलचस्प नज़ारा सामने आया है जहां एक गांव जो गुजरात में है लेकिन आधिकारिक तौर पर वह मध्यप्रदेश का हिस्सा है.
बात हो रही है गुजरात के छोटा उदयपुर जिले में बसे साजनपुर गांव की जो भले ही भौगोलिक दृष्टि से गुजरात में है लेकिन शासकीय तौर पर यह मध्यप्रदेश के आलीराजपुर जिले में है.
साजनपुर गांव गुजरात में है लेकिन आधिकारिक तौर पर वह मध्यप्रदेश का हिस्सा है
साजनपुर गांव एक टापू की तरह है जिसके चारों ओर गुजरात के गांव हैं और किसी भी प्रकार से इस गांव की सीमा मध्यप्रदेश से नहीं मिलती है. यहां से मध्यप्रदेश जाने के जो रास्ते हैं उसमे से एक रास्ता वाया रंगपुर-फेरकुवा का है. यहां से मध्यप्रदेश की सरहद करीब आठ किलोमीटर दूर है. यदि कोई साजनपुर गांव आना चाहता है तो गुजरात होते हुए ही यहां आ सकता है.
साजनपुर गांव में लगभग 200 आदिवासी परिवार रहते हैं जिनकी जनसंख्या करीब 1317 है. गांव में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं. यहां कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालय भी है. चूंकि साजनपुर शासकीय तौर पर मध्यप्रदेश का गांव है इसलिए यहां की शिक्षा व्यवस्था हिंदी में है लेकिन गांव की बोलचाल और संस्कृति में गुजराती का अच्छा मिश्रण देखने को मिलता है. आर्थिक व्यवहार हेतु अधिकतर ग्रामवासी गुजरात के इलाकों पर ही निर्भर हैं. मज़े की बात है कि यहां मोबाइल नेटवर्क भी गुजरात के ही उपलब्ध हैं.
साजनपुर गांव में 200 आदिवासी परिवार रहते हैं जिनकी जनसंख्या करीब 1317 है
ग्रामीणों के मुताबिक आज़ादी के दौरान आलीराजपुर के राजा ने ग्रामीणों की मांग पर साजनपुर गांव को अपने ही पास रखा और बाद में मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस गांव का ढंग से ख्याल रखा जिस वजह से इसके गुजरात में शामिल होने की अभी तक मांग नहीं उठी है.
खैर, 23 अप्रैल को गुजरात में चुनाव है. चुनाव प्रचार रविवार शाम को ही थम चूका है. विविध पार्टियों से नेतागण गुजरात में गांव-गांव शहर-शहर घूम कर चप्पलें घिस चुके हैं लेकिन साजनपुर में तो अभी चुनावी माहौल जमा तक नहीं है. इसकी खास वजह है कि यह गांव 19 मई को वोट करेगा.
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