ये राहुल गांधी को मोदी से पंगे लेने की सलाह देता कौन है?
कर्नाटक में भी असली मुद्दे सीन से गायब हैं. बात विकास की और बहस विश्वेश्वरैया के नाम पर हो रही है. अब इससे बड़ा मजाक क्या होगा कि विश्वेश्वरैया के काम पर नहीं उनके नाम के उच्चारण पर मुकाबला हो रहा है.
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कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने लिंगायत कार्ड खेला तो बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा. कांग्रेस ने दलितों का मुद्दा उछाला तो भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा. राहुल गांधी ने कठुआ और उन्नाव गैंगरेप को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा तो बीजेपी तिलमिला उठी. जब कांग्रेस ने येदियुरप्पा के भ्रष्टाचार और रेड्डी बंधुओं को टिकट देने को लेकर बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया तो जवाब देना मुश्किल हो गया. कर्नाटक चुनाव के दौरान कांग्रेस के ये सारे वार बीजेपी पर भारी पड़े.
सारा कुछ ठीक चल रहा था तभी राहुल गांधी ने ऐलान कर डाला - 'संसद में अगर 15 मिनट बोलने दिया जाये तो पीएम मोदी ठहर नहीं पाएंगे.' मालूम नहीं राहुल गांधी किसकी सलाह पर ऐसे बयान दिया करते हैं? ऐसे ही एक बार राहुल गांधी ने कहा था कि वो बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. बोले भी - और टांय टांय फिस्स साबित हुए?
आखिर राहुल गांधी को ऐसी बातें बोलने की सलाह देता कौन है? क्या ये कांग्रेस की कोई सोची समझी रणनीति है या फिर अंदरूनी तौर पर कोई साजिश रच रहा है?
असल मुद्दे गायब क्यों?
माना जा रहा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों का चौतरफा असर हो सकता है. कर्नाटक चुनाव राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की दशा और दिशा तो तय करेंगे ही 2019 के आम चुनाव में भी बड़ी भूमिका होगी. कांग्रेस ने तो कर्नाटक मैनिफेस्टो को 2019 का ब्लू प्रिंट ही बता रखा है.
बाकी चुनावों की तरह कर्नाटक चुनाव में भी विकास की बातें होनी थीं. कांग्रेस की भी यही समझाने की कोशिश रही है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जो विकास के काम किये हैं वो अपनेआप में मॉडल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि चुनाव विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे. लेकिन जैसे जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ता है विकास पीछे छूट जाता है. बस नाम होता है कि विकास गुजरात में पागल हो गया, देखा जाये तो बिहार और यूपी से लेकर कर्नाटक तक विकास पीछे और जाति-धर्म आगे दिखायी देते हैं.
विकास की बातें हैं, बातों का क्या?
नमो ऐप के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के बीजेपी उम्मीदवारों से कहा था, "कर्नाटक के विकास के लिए भाजपा का तीन सूत्रीय एजेंडा है - डेवलपमेंट, फास्ट पेस डेवलपमेंट और ऑल राउंड डेवलपमेंट यानी विकास, विकास और सिर्फ विकास."
बीबीसी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन अपना आकलन बताती हैं, "लिंगायत बीजेपी की तरफ, वोक्कालिगा एचडी देवगौड़ा की पार्टी (जेडीएस) की तरफ, कुरुबा और मुसलमान कांग्रेस की तरफ. गांवों में एक तरह से चुनाव जातिवाद में बंटा हुआ है."
ऐसा क्यों होता है? आखिर विकास की बातें 15 मिनट में पांच बार विश्वेशरैया बोलने पर जाकर क्यों अटक जाती है? ऐसा क्यों लगता है कि विकास को बार बार पागल साबित करने की कोशिश हो रही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास भी गरीबी हटाओ जैसा मुफ्त का स्लोगन बन गया है?
राहुल गांधी का स्टैंड क्या है?
भाषण पर कमांड और ऑडिएंस से कनेक्ट होने की कला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महारथ हासिल है. ये बात दुनिया के कर्ई नेता तो मानते ही हैं, राहुल गांधी भी स्वीकार कर चुके हैं. फिर राहुल गांधी को मोदी से पंगा लेने की सलाह कौन देता है?
कभी वो कहते हैं कि बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. कभी कहते हैं संसद में अगर 15 मिनट बोलने दिया जाये तो पीएम मोदी ठहर नहीं पाएंगे. ऐसी बातें तो सोशल मीडिया पर बरसों से राहुल गांधी को लेकर चलती आ रही हैं. कुछ वैसे ही जैसे #SayItLikeBiplab के साथ लोग ऊलजुलूल बातें सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस में ही कुछ लोग राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने में लगे हुए हैं?
भूकंप तो नहीं तूफान जरूर आ गया...
राहुल गांधी खुद ऐसी बातें किसके कहने पर बोलते हैं कि आगे चल कर वो मजाक का पात्र बन जाती हैं? एक तरफ मालूम होता है कि सैम पित्रोदा जैसे लोग किस तरह राहुल गांधी की छवि सुधारने और उसे गंभीर बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं - और दूसरी तरफ ऐसी कोशिशों की टांग खींचने लगा जाता है.
तभी तो प्रधानमंत्री मोदी को भी राहुल गांधी को एक शब्द बोलने की चुनौती देते हैं. अरुण जेटली पूछते हैं - मालूम नहीं कब बड़े होंगे?
कर्नाटक की रैली में मोदी पूरे फॉर्म में दिखे, ''मोदी जी को छोड़ो. मैं आपसे कहता हूं कि आप कर्नाटक के चुनाव प्रचार में 15 मिनट बगैर कागज हाथ में लिए हिंदी, अंग्रेजी या अपनी मां की मातृभाषा में बोल कर दिखा दीजिए. एक बात और इस 15 मिनट के भाषण में 5 बार श्रीमान विश्वेश्वरैया का नाम ले लेना. कर्नाटक की जनता तय कर लेगी, उन्हें क्या करना है.''
ये मौका भी राहुल गांधी ने खुद ही दिया था. 25 मार्च को मैसूर में रैली में जब राहुल गांधी वहां की महान विभूतियों को याद कर रहे थे तो एम विश्वेश्वरैया के नाम पर अटक गये. हो सकता है राहुल गांधी ने मोदी को 15 मिनट चैलेंज न दिया होता तो वो भी ऐसी बातों को नजरअंदाज कर देते. राहुल गांधी खुद बता चुके हैं कि उनके भाषण कोई और लिखता है. भाषणों में सुनाने के लिए कहानियां भी कोई और सुनाता है. जो ये सारे काम करता है वे क्या किराये के लोग हैं? ये लोग भी कहीं वैसे ही तो नहीं जैसे अमित शाह के कन्नड़ टांसलेटर ने मोदी सरकार को बर्बादी का सबब बता दिया था?
राहुल के ट्वीट के बारे में भी कई बार सवाल उठे हैं और सफाई पेश की जा चुकी है. खुद राहुल गांधी बता चुके हैं कि पॉलिटिकल ट्वीट की लाइन वो खुद तय करते हैं और बाकी ट्वीट उनकी टीम करती है. कांग्रेस की सोशल मीडिया चीफ दिव्या स्पंदना भी ऐसी ही बातें कह चुकी हैं.
फिर ये चलते फिरते राहुल गांधी मीडिया को जो साउंडबाइट देते रहते हैं क्या वास्तव में यही उनके मन की बात होती है? क्या ये वे बातें हैं जो नहीं लिखे होने के कारण हादसों को दावत देती हैं?
एक बार राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठा साबित करने के लिए लगातार लंबा चौड़ा कैंपेन चलाते हैं. फिर स्टैंड लेते हैं कि वो नरेंद्र मोदी पर निजी हमले नहीं करेंगे क्योंकि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं. लेकिन कुछ ही दिन बीतता है और फिर से उसी तरह की बातें चलने लगती हैं. ऐसा कन्फ्यूजन भला कैसे क्रिएट होता है? क्या ये कांग्रेस की कोई सोची समझी सुविचारित रणनीति है या फिर कुछ और? क्या ये नासमझी में होने वाले हादसे हैं या फिर किसी साजिश का हिस्सा?
अब भी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है. राहुल को खुद ही नीर-क्षीर विवेकी बनना पड़ेगा या फिर उन्हें मां सोनिया गांधी से सलाह लेनी चाहिये. अगर ऐसे बयान देने की सलाह किसी और ने दी है तो राहुल गांधी को अपनी बहन प्रियंका गांधी से भी पूछना चाहिये.
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