अब बवाल उस कब्र पर जो जितेंद्र त्यागी ने वसीम रिजवी रहते अपने लिए बुक कराई थी
वसीम रिज़वी द्वारा इस्लाम धर्म त्याग कर त्यागी बन जाने और सनातन धर्म ग्रहण करने के बाद उसकी हयाती कब्र निरस्त कर दी गई. ऐसे में अब बची क़ब्र को शिया समुदाय के लोग अपने लिए खरीदना (आरक्षित) चाहते हैं और पूरा घटनाक्रम देखने लायक बन गया है.
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वसीम रिज़वी अर्थात जितेंद्र नारायण त्यागी की हयाती क़ब्र भी विवादों में पड़ गई है. उन्हें अब क़ब्र की जरुरत नहीं, वो विधिवत सनातनी बनने से पहले ही अपनी वसीयत में कह चुके थे कि उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार अग्नि दी जाए. ऐसे में उन्होंने बहुत पहले से लखनऊ स्थित तालकटोरा की कर्बला के कब्रिस्तान में जो हयाती क़ब्र खरीदी थी (आरक्षित की थी) उस हयाती क़ब्र को कई शिया समुदाय के लोग अपने लिए खरीदना (आरक्षित) चाहते हैं. कारण ये है कि वसीम द्वारा पूर्व में खरीदी गई ये क़ब्र प्राइम लोकेशन पर है. एशिया के बड़े और जाने-पहचाने कर्बला तालकटोरा के रौज़ा स्थल से बहुत करीब है ये क़ब्र. ऐसे स्थान पर कब्र आसानी से नहीं मिलती है. वसीम रिज़वी द्वारा इस्लाम धर्म त्याग कर त्यागी बन जाने और सनातन धर्म ग्रहण करने के बाद उसकी हयाती कब्र निरस्त कर दी गई.
वसीम रिज़वी के सनातन धर्म स्वीकार करने के बाद उनकी कब्र विवादों में आ गयी है
ये खबरें आने के बाद शिया समुदाय के कुछ लोग अपने लिए ये हयाती क़ब्र लेना चाहते हैं, किन्तु नियमानुसार ये क़ब्र किसी को नहीं मिल सकेगी. शिया सेंट्रल बोर्ड के सदस्य और कर्बला तालकटोरा के मुतावल्ली सय्यद फैज़ी का कहना है कि 2010 में जब ये हयाती क़ब्र ख़रीदी थी तब कर्बला तालकटोरा एक कमेटी के अधीन था, तब तक ये शिया वक्फ बोर्ड में दर्ज नहीं था.
2012 में कर्बला तालकटोरा वक्फ बोर्ड में दर्ज हुआ और सय्यद फैज़ी वक्फ की तरफ से इसके पहले मुतावल्ली बनें थे. उन्होंने बताया कि वक्फ बोर्ड में हयाती यानी ज़िन्दा रहते हुए क़ब्र खरीदने का प्रावधान नहीं है.इस हयाती क़ब्र का क्या होगा? सवाल पर वो बताते हैं कि 22560 रुपए में वसीम ने ये हयाती क़ब्र ली थी, अब इस रकम की चेक उन्हें वापस कर दी जाएगी.
क्योंकि ये ख़बर प्राइम लोकेशन ( रोज़े के पास) है इसलिए जब कभी कोई सम्मानित धर्म गुरु (मौलाना) का इंतेकाल होगा तो उन्हें ये क़ब्र दी जाएगा.आम तौर से लोकप्रिय/प्रतिष्ठित/ साफ सुथरी छवि के मज़हबी ( मोमिनों)/धर्म गुरुओं/उलमा इत्यादि को पवित्र रौज़ों/इमामबाड़ों की प्राइम लोकेशन पर दफ्न किए जाने की परंपरा है.
मालूम हो कि मुसलमानों के शिया समुदाय के अधिकांश क़ब्रिस्तान रौजों और इमामबाड़ों में हैं. खास कर लखनऊ में मलका जहां की कर्बला, इमदाद हुसैन खान, गुफरानमाब, और आग़ाबाकर के इमामबाड़े और कर्बला तालकटोरा के कब्रिस्तान काफी प्रतिष्ठित है. मुसलमानों के रसूल मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन पर शिया समुदाय का अटूट अक़ीदा और भावनात्मक रिश्ता है.
चौदह सौ साल पहले मोहर्रम माह में विश्व के पहले आतंकी यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया था. जिनकी याद में इमामबाड़े और इराक स्थित इमाम हुसैन के रौजे (पवित्र क़ब्र) की शबीह (नक्ल) के तौर पर लखनऊ में ऐतिहासिक कर्बलाएं, दरगाहें और इमामबाड़े हैं. कई कर्बलाओं और इमामबाड़ों में स्थित कब्रिस्तानों में दफ्न होना गौरव माना जाता है.
कई धनागढ शिया मंहगे दामों में अपने जीवन में ही अपनी क़ब्र की जमीन (हयाती क़ब्र) खरीद लेते हैं. हांलांकि शिया वक्फ बोर्ड में दर्ज क़ब्रिस्तानों में क़ब्र खरीदने या हयाती क़ब्र खरीदने का प्रावधान नहीं है.
गौरतलब है कि गुफरानमाब के इमामबाड़े में क़ब्रे बेचे जाने का आरोप लगाकर वसीम रिजवी ने मौलाना कल्बे जव्वाद के खिलाफ मुहिम भी छेड़ी थी. जबकि कब्रों के दाम लेने की मुखालिफत करने वाले वसीम ने 22560 रुपए में मंहगे दामों में खुद अपनी हयाती क़ब्र खरीदी थी.
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