धर्म बदलने के बाद भी बागपत के मुस्लिम परिवार को इंसाफ नहीं मिला तो?
यूपी में बागपत के एक मुस्लिम परिवार के 13 लोगों ने इंसाफ के लिए हिंदू धर्म अपना लिया है. सवाल ये है कि अगर धर्म परिवर्तन के बाद भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला तो क्या करेंगे?
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लो जी घर वापसी का भी नया वर्जन भी आ ही गया. नये वर्जन को उस कालखंड से जोड़ा गया है जिसके पैरोकार गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की जमात रही है - 'मुसलमान तो हिंदुओं के वंशज हैं...' या, 'मुसलमानों के पूर्वज तो हिंदू ही हैं...' मुश्किल ये है कि नये वर्जन में 'किम्भो' लोचा हो गया है. ये लोचा भी कोई मामूली नहीं है - बिलकुल सुपरबग है.
दरअसल, हिंदू युवा वाहिनी ने यूपी में बागपत के एक मुस्लिम परिवार को इंसाफ दिलाने के नाम पर धर्म बदलने की सलाह दी, साथ में ये यकीन भी दिला दिया कि ऐसा कर लेने से इंसाफ मिल जाएगा. न्याय के लिए परेशान परिवार के 20 लोगों ने धर्म परिवर्तन के लिए एफिडेविट तो दे दिया, लेकिन हिंदुत्व धारण की रस्म में हिस्सा लेने सिर्फ 13 ही पहुंचे, 7 सदस्य नदारद रहे.
इंसाफ पाने के लिए धर्म परिवर्तन!
कट्टरवादी हिंदू नेता जिस तरह के आरोप ईसाई समुदाय पर लगाते रहे हैं - ये वाकया भी तकरीबन वैसा ही. जिस तरह के लालच दिये जाने की बातें हिंदुओं को ईसाई बनाने को लेकर की जाती रही हैं - हिंदुत्व के ठेकेदारों से भी अब वैसे ही सवाल पूछे जाएंगे और जवाब भी देने होंगे.
अगर कोई ये दावा करता है कि धर्म परिवर्तन करा लेने पर इंसाफ दिला देगा उससे बड़ा शातिर - और जो कोई भी ऐसे झांसे में फंस जाता है उससे बड़ा भोला-भाला भला कौन हो सकता है.
अब तेरा ही आसरा...
यूपी के बागपत में मुस्लिम परिवार के 13 सदस्यों ने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है. 2 अक्टूबर को इलाके के ही एक शिव मंदिर में इन सभी का नामकरण संस्कार हुआ. खबरों के मुताबिक अख्तर अली सहित उनके परिवार के 13 लोगों ने हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार बाकायदा से हिंदू धर्म स्वीकर कर लिया. सभी लोगों ने गायत्री मंत्रोच्चार के बीच हवन में आहूतियां दी और आखिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया. पूरी रस्मअदायगी हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में हुई.
पूरी कवायद के पीछे भी यूपी पुलिस की भूमिका ही नजर आ रही है. 22 जुलाई 2018 को छपरौली थाना क्षेत्र अख्तर अली के बेटे गुलहसन उर्फ गुलजार की लाश उनके दुकान से मिली. पुलिस ने इसे आत्महत्या का केस माना. अख्तर का आरोप है कि आत्महत्या का रूप देने के लिए लाश को फंदे से लटका दिया गया था. अख्तर अली पुलिस के इस रवैये से इतने दुखी हुए कि थक हार कर धर्म परिवर्तन का फैसला कर लिया - और फिर अख्तर अली से धर्म सिंह बन गये.
मीडिया से बातचीत में बागपत के जिलाधिकारी ऋषिरेंद्र कुमार ने बताया कि एक मौत की जांच को लेकर परिवार के लोग संतुष्ट नहीं थे. पुलिस अधीक्षक से बात कर मामले की जांच करवायी जा रही है.
बताते हैं कि एएसपी राजेश कुमार श्रीवास्तव बदरखा पहुंच कर सारे घटना क्रम की जानकारी ले ली है - और घटना की जांच कर निष्पक्ष कार्रवाई का भरोसा दिलाया है. एएसपी के मुताबिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी मौत की वजह स्पष्ट नहीं हुई है, इसलिए एक्सपर्ट राय के लिए रिपोर्ट लखनऊ भेजी गयी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस का कहना है कि उन लोगों ने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया है.
'मोदी राज में...'
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में धर्म सिंह ने बताया, "मेरा नाम अख्तर अली था. मैंने अपना धर्म इसलिए बदल लिया क्योंकि पुलिस ने सही तरीके से जांच नहीं की. यहां तक कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी मेरा सपोर्ट नहीं किया. मोदी के भारत में मुस्लिमों के साथ निष्पक्ष बर्ताव नहीं होता. मुझे इंसाफ चाहिये."
Dharam Singh, member of the family says, "My name was Akhtar Ali, I have changed my religion because the police did not investigate our case in a fair manner, even the Muslim community did not stand in our support. In Modi's India, Muslims not treated fairly. I demand justice." pic.twitter.com/MYN4VzzYYI
— ANI UP (@ANINewsUP) October 3, 2018
अब लीजिए हिंदू युवा वाहिनी द्वारा अख्तर अली से हिंदू बने धर्म सिंह कह रहे हैं कि मोदी के भारत में मुस्लिमों से सही बर्ताव नहीं होता. ये योगी आदित्यनाथ के हिंदू वाहिनी वाले तो बीजेपी को ही ले बीतेंगे. कहां बीजेपी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत कह रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय के बगैर हिंदुत्व नहीं बचेगा और कहां इस तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं. ऐसे ही होता रहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मस्जिद-मस्जिद घूमना जाता होते देर नहीं लगेगी.
एफिडेविट 20 ने दिया, 7 कहां गये?
रिपोर्ट के मुताबिक धर्म परिवर्तन के लिए एसडीएम के पास 20 लोगों ने एफिडेविट दिया था. जिस मंदिर में नामकरण संस्कार होना था वहां सिर्फ 13 लोग ही पहुंचे.
इंसाफ मिलने में सिर्फ देर या अंधेर भी?
नामकरण संस्कार के बाद अख्तर अली अब धर्म सिंह हो गये हैं. इसी तरह दिलशाद-दिलेर सिंह, नौशाद-नरेन्द्र सिंह, इरशाद-कवि, नफीसा-निशा, मनसु-मंजू, रुकैया-रूबी, अनस-अमर सिंह, साहिस्ता-सीमा, सना-सोनिया, सारिका-सारिका, जोया-ज्योति और नाहिद-विशाल.
पहला सवाल - क्या बाकी 7 लोगों को इस ट्रिक की असलियत समझ में आ गयी या उन्हें किसी और ने फिर से गुमराह कर दिया?
दूसरा सवाल - क्या धर्म बदल लेने से इंसाफ मिल जाएगा?
और इससे भी बड़ा सवाल - अगर हिंदुत्व में भी इंसाफ नहीं मिला तो?
देखा जाये तो इंसाफ पाने के लिए धर्म बदलने की नहीं, संघर्ष की जरूरत है. अगर एक धर्म इंसाफ नहीं दिला सकता तो दूसरे धर्म में भी इस बात की गारंटी कौन देगा?
इंसाफ के लिए संघर्ष का ताजातरीन उदाहरण है इसरो के वैज्ञानिक नांबी नारायणन का जासूसी के आरोप से बाइज्जत बरी होना - और उससे आगे बढ़ कर एक वैज्ञानिक को फर्जी तरीके से फंसाने के जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को जांच के दायरे में पहुंचा कर दम लेना.
जिन लोगों ने अख्तर अली से धर्म सिंह बने व्यक्ति को इंसाफ का भरोसा दिलाया है, वो भी ऐसा ही दावा ठोक रहे हैं जैसा बहराइच के विधायक दावा कर रहे थे कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सरकार ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट भी उन्हीं का है. ध्यान रहे, ऊपर से डांट पड़ते ही पलटते देर न लगी.
धर्म जीने की अच्छी आदतें डाल दे, ध्यान, पूजा और तपस्या के लिए कुछ रस्में मुहैया करा दे, ये कम है क्या?
जब धर्म की नाइंसाफी के लिए कोर्ट को फैसला सुनाना पड़े फिर क्या उम्मीद की जाये - तीन तलाक से बड़ी मिसाल भला और क्या हो सकती है.
आस्था की खातिर. लाइफस्टाइल में बदलाव के लिए या फिर ऐसी ही निजी वजहों से धर्म परिवर्तन की बात और है - वरना, धर्म बदलने पर इंसाफ दिलाने का दावा करने वाले भोले-भाले लोगों को झाड़फूंक के नाम पर झांसा देकर अपना हित साधने वालों से जरा भी अलग नहीं है.
जो कोई भी इंसाफ के लिए धर्म बदलने का लालच दे रहा है - वो या तो हद से ज्यादा फेंक रहा है या लफ्फाजी और जुमलेबाजी में फंसा रहा है. जितना जल्दी आंख खुल जाये उतना ही बेहतर होगा.
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