अब आ भी जाओ बाबा साहब और बता दो कि आप क्या थे...
ये कांग्रेस का दंभ या अहंकार था कि वे हालात को समझ नहीं पाये. राहुल दलितों के घर- घर जाकर पानी-खाना खाते रहे और बाबा साहेब को बसपा-सपा प्रॉपर्टी मान बैठे. दूसरी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी ने ये भूल नहीं की.
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कांग्रेस तो उन्हें अपना कहती रही. फिर मायावती आईं. अब बीजेपी उन्हें हिंदुत्व और संघ की विचारधारा के नजदीक बता रही है. बड़ा कनफ्यूजन है. बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर साक्षात आकर भी शायद ही कनविंस कर पाएं. क्योंकि पॉलिटिक्स में जरूरत उनके विचार की नहीं, उनके नाम की है.
बेशक बाबा साहेब ने पिछड़े समाज को गति और दिशा दी. क्योंकि हिंदुत्व के दंश को उन्होंने जिंदगीभर झेला. इसी का नतीजा था की हिंदुत्व के प्रति इनके मन में विरक्ति और घृणा अंदर तक घर कर गई थी. बाबा साहेब ने बहुत सी पार्टिओं को जमीन दी और उनके नाम पर ठेकेदारी का लाइसेंस लोगो ने स्वयं ही ले लिया.
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीन ऐसे छीनी कि पार्टी अब तक बाप-बाप कर रही है. लेकिन ये कांग्रेस का दंभ या अहंकार था कि वे हालात को समझ नहीं पाये. राहुल दलितों के घर- घर जाकर पानी-खाना खाते रहे लेकिन बाबा साहेब को बसपा-सपा प्रॉपर्टी मान बैठे. दूसरी राष्ट्रीय पार्टी ने ये भूल नहीं की. पिछले एक दशक से लगातार चिल्ला-चिल्ला कर बाबा साहेब को अपने खेमे में लाने की कोशिशें बरकरार है. ऐसे-ऐसे तथ्य परोसे गए कि लगा ही नहीं कि बाबा साहेब कभी बौद्ध भी हुए थे.
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ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो रोहित वेमुला के परिवर या किसी भी दलित के बौद्ध धर्म अपनाने पर गरियाने से बाज आये हों. बहुत से हिन्दू चिंतक दलित छात्र या उत्पीड़न का मामला आने पर बिदक जाते हैं. क्योंकि यहां उनको अपनी जमीन खिसकती नजर आती है. हिंदुत्व के अजेंडे में विभाजन का मुख्य आधार दलित ही होते हैं. कुछ मित्रों की पोस्ट पर गौर करने पर लगता है बाबा साहेब भी संघी हो गए थे महानिर्वाण के पश्चात. क्योंकि कुछ भी लिख पढ़ दीजिये उनके ऊपर भला कहां बाबा साहेब सफाई देने आएंगे.हाल ही में एक राष्ट्रवादी मित्र ने एक लेख में थाईलैंड के एक टैक्सी ड्राईवर का जिक्र किया. बकौल टैक्सी ड्राईवर वहां की 90 प्रतिशत जनता हिन्दू है, क्योंकि बौद्ध भी हिन्दू ही हैं. कितनी अच्छी बात कही. काश उस टैक्सी वाले को भारत में टैक्सी चलाने का लाइसेंस मिल जाता तो 100 प्रतिशत भारतवासी हिन्दू होते. क्योंकि सब पहले हिन्दू थे. हालांकि, आज तक हम जैनियों और सिक्खों को ये समझाने में नाकामयाब हुए हैं कि वो भी हिन्दू हैं! 1984 का दर्द इसे और नहीं मानने देता.
कितनी विचित्र बात है आजादी के 7 दशकों बाद भी हम मुस्लिम प्रधानमंत्री की बात सोच नहीं सकते, चाहे कांग्रेस हो या भाजपा. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का झुनझुना पकड़ा कर खुश हो जाते हैं. हमसे कहीं बेहतर तो अमरीका है जिसने एक अश्वेत पर भरोसा किया और देश की कमान दो बार उसको सौंपी. किसी दलित को भाजपा या संघ में प्रमुख पद देने की बात की जाये तो सब एक सुर मे बंगारु लक्ष्मण जपने लगते हैं. हालांकि उनकी कितनी चलती थी, ये शोध का विषय हो सकता है. दरअसल सब जानते दलित बस सत्ता साधने का साधन मात्र हैं.
इसलिये महू में जाकर प्रधानमंत्री जी को कहना पड़ता है कि आज वो बाबा साहब की वजह से प्रधानमंत्री हैं. आज समान नागरिक संहिता और धारा 370 दरअसल कहीं ना कहीं हिन्दुत्व की विचारधारा और राष्ट्रवाद को मजबूती देता है. इसी गफलत में बाबा सहेब को संघी बनाने के जुगाड़ में सब लगे हुए हैं. सोशल नेटवर्किंग साइट्स को कुछ भेड़ियों का झुण्ड चला रहा है. बेचारी भेड़ें पीछे पीछे चलती जा रही है क्योंकि वो नासमझ हैं भेड़ और भेड़िये के बीच भेद करने में.
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बाबा साहेब संविधान रचयिता थे या फिर संविधान सभा अध्यक्ष. इस पर भी बे-सिरपैर की बहस का सिलसिला चलता रहता है. आज सभी को बाबा साहेब की बहुत जरूरत आन पड़ी है क्योंकि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव जो करीब है. महात्मा गांधी के ही मामले को ले कुछ दिन पहले तक गोडसे का मंदिर भारत रत्न और न जाने क्या क्या मांग चल रही थी तब बापू सौतेले लगते थे लेकिन स्वच्छ भारत अभियान के बाद बापू को भी अडॉप्ट कर लिया गया है. वैसे ये पहला मामला नहीं है नेताजी, सरदार पटेल कितनों को ही कांग्रेस से छीन कर अपनी पार्टी में मरणोपरांत शामिल किया जा चुका है. ये सिलसिला निरंतर जारी है.
कुछ लोगों का कुतर्क है कि बाबा साहेब ने कांग्रेस वाम सबको गाली दी लेकिन हिन्दू महासभा या संघ को नहीं. गाली देना सबका सार्वभौमिक अधिकार है लेकिन गाली खाने के लिए बहुत अच्छा या बहुत बुरा होना जरूरी है. यानी गाली खाने लायक शायद औकात नहीं रही होगी उस दौर में. फिर भी बाबा साहेब आप सब को मुबारक हो कोई एक व्यक्ति या दल उनको सिर्फ अपना कहकर दाल गलाने की कोशिश करता है तो क्या किया जाए. वैसे, पब्लिक देख रही है और वो सब जानती है.
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