मध्यप्रदेश में जीत का दारोमदार मोदी या शिवराज किस पर ?
मध्यप्रदेश में मोदी का मैजिक ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होगा या फिर यहां पर शिवराज खुद में एक बड़े ब्रांड हैं. कई राजनीतिक विश्लेषक और समीक्षक भी ये मानते हैं कि यहां पर मोदी फैक्टर निर्णायक नहीं है. यहां पर असली लड़ाई शिवराज और बदलाव के बीच में है.
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मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव 28 नवंबर को होने हैं. भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला बहुत ही कड़ा होने जा रहा है. जनता का वोट किसके पाले में जायेगा इसका सटीक अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है. चुनाव पूर्व के सर्वे और ओपिनियन पोल भी मध्यप्रदेश में कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगा रहे हैं. हालांकि कई सर्वे में ये जरूर दिखाया गया है कि शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में सरकार बनाने में जरूर सफल हो जाएंगे. मुख्यमंत्री शिवराज जहां एक और एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सहयोग भी उनके पक्ष में जा सकता है. दूसरी और कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर पर अपना दांव खेल रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 नवंबर से मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू किया. वे पांच दिन यहां चुनाव प्रचार करेंगे, इस दौरान प्रधानमंत्री 10 रैलियां करेंगे. 18 नवंबर को छिंदवाड़ा और इंदौर में सभाएं करेंगे. इसके बाद 20 नवंबर को झाबुआ और रीवा में फिर 23 नवंबर को मंदसौर और छतरपुर में जनसभा को संबोधित करेंगे. मोदी 25 नवंबर को विदिशा और जबलपुर जिलों में आयोजित जनसभाओं को भी संबोधित करेंगे.
Will be addressing rallies at Shahdol and Gwalior in Madhya Pradesh later today. I would be talking about the extensive work done by @BJP4MP over the last 15 years and will request the people to bless us once again. https://t.co/hb5t61W4RN
— Narendra Modi (@narendramodi) November 16, 2018
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तकरीबन हर दूसरे दिन मध्यप्रदेश में रहेंगे और वहां पर चुनावी रैलियां करेंगे. बीजेपी जहां एक ओर शिवराज सिंह चौहान पर फिर भरोसा जताते हुए उनके नेतृत्व पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं उसे ये भी भरोसा है कि मोदी में अभी भी दमखम है जिसके बल पर वो चुनाव में जीत दिला सकते हैं. और बीजेपी की यही रणनीति है कि उनकी सभाओं के जरिये जनता को बीजेपी के पक्ष में किया जा सके और जो भी एंटी-इंकम्बेंसी बीजेपी सरकार के प्रति हैं उसे कम किया जा सके. उनकी रैलियों का चुनाव भी इस तरह किया गया है जिससे इसका लोगों तक असर ज्यादा से ज्यादा हो. इस बार उनकी एक चुनावी रैली इस तरह रखी गयी है कि वो तक़रीबन 20 विधानसभा को प्रभावित कर सके. यानी 10 रैलियों के द्वारा वे करीब 200 सीटों में असर डाल सकते हैं. खैर मोदी का मैजिक क्या असर डालता है वो तो रिजल्ट आने के बाद ही पता चलेगा.
नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान में से कौन मध्यप्रदेश की नैय्या पार लगाएगा?
अब यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में मोदी का मैजिक ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होगा या फिर यहां पर शिवराज खुद में एक बड़े ब्रांड हैं. कई राजनीतिक विश्लेषक और समीक्षक भी ये मानते हैं कि यहां पर मोदी फैक्टर निर्णायक नहीं है. यहां पर असली लड़ाई शिवराज और बदलाव के बीच में है. अगर वोटर शिवराज के खिलाफ परिवर्तन के लिए वोट करेंगे तो ही उनकी हार होगी अन्यथा उनको प्रदेश की सत्ता से उखाड़ फैंकना काफी कठिन होगा. कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर और बदलाव की बयार नजर आ रही है. उसको लगता है कि जनता बीजेपी को बदलने के मूड में हैं और इस बार कांग्रेस को बम्पर वोट देगी.
2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तकरीबन 45 फीसदी वोट के साथ 165 सीटों में विजय मिली थी. इस बार स्थिति बीजेपी के अनुकूल नहीं है. विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. बीजेपी मोदी को ट्रंप-कार्ड के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है. वे उनकी विकासशील छवि को भुनाने में लगी है. लेकिन विपक्षी पार्टियां नोटबंदी, किसानों की दुर्दशा, मुद्रास्फीति से लेकर राफेल तक के मुद्दे में मोदी को लगातार घेरने में लगी है. हाल के दिनों में देखें तो उनकी लोकप्रियता में गिरावट देखने को मिली है.
मतलब साफ है, यहां पर जनता के लिए शिवराज सिंह पहली पसंद हैं. लड़ाई सिर्फ उनके और परिवर्तन के बीच है. शिवराज, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के भरोसे नैय्या पार करना चाहते हैं. कांग्रेस दूसरी ओर पूरा जोर लगा रही है. राहुल गांधी जहां एक ओर अपनी रैलियों में राफेल और व्यापम जैसे मसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निशाने पे ले रहे हैं, तो वहीं प्रदेश के बड़े कांग्रेस लीडर एकजुटता दिखाकर जनता का विश्वास मत हासिल करने में लगे हैं.
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