भंडारा गोंडिया उपचुनाव में हार ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है !
भंडारा-गोंडिया के सभी पांच बीजेपी विधायकों ने इसे खुद को नजरअंदाज करने के लिए फड़नवीस को सबक सीखाने का अच्छा मौका पाया.
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भंडारा-गोंडिया लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी की हार मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के लिए चेतावनी घंटी है क्योंकि वहां पर वही मुख्य प्रचारक थे. अक्टूबर 2014 में उनके सत्ता संभालने के बाद से विदर्भ क्षेत्र में उनकी पहली हार इस बात का संकेत है कि धीरे-धीरे बीजेपी अपने ही गढ़ में अपनी जमीन खो रही है. हालांकि अपने राजनीतिक हस्तक्षेप का उपयोग करके फड़नवीस ने भाजपा के लिए पालघर लोकसभा सीट को बरकरार रखने में कामयाब जरुर पाई.
लेकिन उनके थोड़े से अतिआत्मविश्वास ने पार्टी को भंडारा-गोंडिया पर हार का मुंह दिखा दिया. इस जनमत संग्रह ने पूर्व सांसद नाना पटोल के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री फड़नवीस के खिलाफ घमंडी होने के आरोपों पर मुहर लगा दी. पटोल पहले बीजेपी सांसद थे जिन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने सार्वजनिक रूप से मोदी द्वारा सांसदों की एक बैठक में उन्हें अपमानित करने की शिकायत की थी. किसानों को ऋण छूट जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने के दौरान अपने सहयोगियों की राय पर विचार न करने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री फड़नवीस की आलोचना भी की थी. उन्होंने कहा था कि किसानों के ऋण माफी की प्रक्रिया जटिल होने के कारण किसानों द्वारा ऋण छूट योजना के लाभों का लाभ उठाना मुश्किल हो रहा है.
ये हार भाजपा के लिए एक झटका है, जिसके भंडारा-गोंडिया में छः विधानसभा क्षेत्रों में से पांच विधायक अपनी पार्टी के हों. कांग्रेस के साथ गठबंधन कर एनसीपी ने भाजपा के हेमंत पटेल के खिलाफ तीन बार भाजपा विधायक रह चुके मधुकर कुक्कडे को मैदान में उतारा था. कुक्कडे ने कुंबी समुदाय के अधीन क्षेत्र में 47,8 99 मतों के अंतर के साथ सहज जीत दर्ज की.
भाजपा के लिए 2019 की राह कठिन होती जा रही है
पालघर की तरह भंडार-गोंडिया में बीजेपी के मुख्य प्रचारक फड़नवीस ही थे. पार्टी की चुनावी रणनीति और उसके निष्पादन की योजना उन्होंने ही बनाई थी. केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की एक रैली को छोड़कर, पूरे अभियान का दारोमदार सिर्फ फड़नवीस पर था. उन्होंने मतदाताओं से भाजपा की पीठ में छूरा घोंपने वाले पटोल को सबक सिखाने की अपील की थी.
बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी किसी मजबूत तीसरे उम्मीदवार को खड़ा नहीं कर सकती थी जो कांग्रेस-एनसीपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती थी. उनका कहना है कि पार्टी के अंदर की खींचतान भी हार की वजह रही है. भंडारा-गोंडिया के सभी पांच बीजेपी विधायकों ने इसे खुद को नजरअंदाज करने के लिए फड़नवीस को सबक सीखाने का अच्छा मौका पाया.
विदर्भ के 44 बीजेपी विधायकों में से ज्यादातर गडकरी को अपना नेता मानते हैं. पार्टी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने गडकरी के मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी. भाजपा के अंदरूनी सूत्र ने कहा, "देवेंद्रजी के उनके साथ अभी भी सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं हैं. भंडारा-गोंडिया के चुनावी नतीजे पार्टी के प्रति लोगों के घटते विश्वास का प्रतीक है."
भंडारा-गोंडिया में हार के लिए फड़नवीस ने पानी की कमी को दोषी ठहराया. "35 सालों में पहली बार यहां सूखे जैसी स्थिति बनी है. इसने मतदाताओं प्रभावित किया और हमारी हार का कारण बना." 2014 में, बीजेपी-शिवसेना ने विदर्भ में सभी 11 लोकसभा सीटें जीती थीं. बीजेपी ने अकेले 44 विधानसभा सीटें जीतीं. 2019 में शिवसेना अकेले लड़ेंगी और कांग्रेस और एनसीपी का संयुक्त मोर्चा होगा. भाजपा को 2014 की जीत को दोहराना मुश्किल हो सकता है. फड़णवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए विदर्भ से मजबूत समर्थन की जरूरत है.
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