भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
भारत की आर्थिक विकास का रास्ता उत्तर प्रदेश से गुजरता है. अगर उत्तर प्रदेश का विकास नहीं होगा तो भारत आगे नहीं बढ़ सकता. उत्तर प्रदेश का लगातार तेजी से विकास के रास्ते पर चलना एक उम्मीद जगाता है. राज्य में करोड़ों लोग गरीबी की रेखा से बाहर हुए हैं.
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आप उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर में आज दिन या रात को जाएं तो आपको एक दशक पहले की तुलना में अभूतपूर्व अंतर दिखाई देगा. नोएडा से लेकर आगरा और कानपुर से लेकर बनारस तक, आपको हर जगह चमचमाते बाजार, मॉल और व्यवसायिक प्रतिष्ठान दिखाई देंगे. यूपी में किसी से भी बात करें, निश्चित रूप से वह अब यही कहता है कि यूपी आगे बढ़ रहा है और कानून-व्यवस्था बिल्कुल ठीक है. नए उत्तर प्रदेश में आपका स्वागत है, जो बड़ी संख्या में पर्यटकों और निवेशकों को आकर्षित कर रहा है. यहां आर्थिक गतिविधियां तीव्र गति से संचालित की जा रही है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिल्कुल सही कहते हैं कि उनका राज्य बीमारु श्रेणी से बाहर निकलकर अब सक्षम राज्य बनने की ओर अग्रसर है. उनकी यह टिप्पणी नीति आयोग द्वारा जारी उस रिपोर्ट के बाद आयी, जिसमें कहा गया कि भारत में 2015-16 से 2019-21 के बीच 13.5करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी की रेखा से ऊपर उठकर बाहर निकले. गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट वाले राज्यों में यूपी शीर्ष पर है.
यूपी में गरीबी में सर्वाधिक कमी वाले जिले महराजगंज (29.64%), गोंडा (29.55%), बलरामपुर (27.9%), कौशांबी (25.75%), लखीमपुर खीरी (25.33%), श्रावस्ती (24.42%), जौनपुर (26.65%), बस्ती (23.36%), गाजीपुर (22.83%), कुशीनगर (22.28%) और चित्रकूट (21.40%) है. जो लोग यूपी को जानते हैं वे आपको बताएंगे कि इन जिलों की हालत पहले बहुत खराब थी. इसलिए यदि राम और कृष्ण की जन्मस्थली यूपी से दिल को छू लेने वाली ऐसी सुखद खबर आ रही है तो यह न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक शुभ संकेत है.
बीमारू (हिंदी में बीमार) शब्द का प्रयोग अक्सर बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को संदर्भित करने के लिए किया जाता रहा है. आमतौर पर इसका अर्थ यह होता है कि ये राज्य आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, कुपोषण, सड़क, बिजली, पानी समेत अन्य सभी सूचकांकों में पिछड़े हुए हैं. भारत को यदि 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है तो इसके लिए बडी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय को बढाना भी अति आवश्यक है. यह भी सत्य है कि नए परिसीमन के चलते उत्तर प्रदेश पूर्व के मुकाबले राजनीतिक रूप से आज अधिक महत्वपूर्ण हो गया है.
भारत के आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में बड़ी भूमिका के निर्वाहन में यूपी, समाज के विभिन्न स्तरों के साथ राजनीतिक नेतृत्व के जरिए योगदान दे सकता है. यदि उत्तर प्रदेश नेतृत्व करे तो इसमें कोई शक नहीं कि भारत एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन सकता है. यूपी को आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान एवं विकास, आईपी और एआई के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन, रक्षा उत्पादों के निर्माण और फार्मास्यूटिकल्स सरीखे उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने दावा किया कि 2015-2016 से 2019-2021 तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई. राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक से पता चला है कि इस अवधि के दौरान 13.5 करोड़ लोगों में से अकेले यूपी में 3.43 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. यह एक चौंका देने वाली संख्या है.
36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और 707 प्रशासनिक जिलों पर केंद्रित रिपोर्ट उत्तर प्रदेश में सबसे तेज गति से गरीबों की संख्या में कमी का इशारा करती है. गरीबी कम होने के मामले में बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्य यूपी के बाद ही आते हैं. सरकार ने दावा किया है कि रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि राज्य भर के गांवों में गरीबों की संख्या तेजी से घटी है. इतना ही नहीं स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन की गुणवत्ता सरीखे मानकों पर भी बेहतरीन परिणाम दिखे हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट पर आगरा के उद्यमी और रोटरी क्लब के प्रमुख मनीष मित्तल कहते हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में उत्साहजनक माहौल है. राज्य सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है. मेरा विश्वास करें, हमारा व्यवसाय अच्छा चल रहा है और हम आर्थिक विकास में एक लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार हैं. काम के इच्छुक लोगों के लिए काम की कोई कमी नहीं है. नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है, पोषण से वंचित गरीबों की संख्या 2015-16 में 30.40% से घटकर 2019-21 में 18.45% रह गई है. इसमें कहा गया है कि बच्चों और किशोरों की मृत्यु दर में भी सुधार हुआ है, जो 2015-16 में 3.81% से गिरकर 2019-21 में 2.20% हो गई है.
राज्य में मातृ स्वास्थ्य में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है. मातृ मृत्यु दर 2015-16 में 25.20% से घटकर 2019-21में 15.97% हो गई है. इसके अलावा, खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच नहीं रखने वाले गरीबों का प्रतिशत 2015-16 में 34.24% के मुकाबले 2019-21 में 17.95% था. इसके अलावा पीने के पानी से वंचित लोगों की संख्या 2015-16 में 2.09%के मुकाबले 2019-21 में 0.93% हो गई. इसमें कोई दो राय नहीं कि कभी विकास के पैमाने पर पिछडे यूपी में आज योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चौतरफा विकास हो रहा है.
खैर, आज दुनिया भी यह मानने लगी है कि उत्तर प्रदेश अब गरीब और बीमारू राज्य नहीं है, बल्कि एक ऐसा राज्य है जहां पिछले छह वर्षों में 5.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं. यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. यह दुख की बात है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस, सपा और बसपा की सरकारें गरीबी तो दूर कर नहीं पाई, लेकिन खोखला नारा जरूर देकर गईं. सपा के नारे जातिवाद और अराजकता के चंगुल में फंसकर भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गए जबकि बसपा शासन में यूपी विकास की दौड़ में अन्य राज्यों से काफी पीछे रह गया.
उत्तर प्रदेश में पिछले छह वर्षों में जो विकास और जनकल्याण के कार्य दिखे हैं, वे पहले भी हो सकते थे. लेकिन , पिछली सरकारों में इच्छाशक्ति का अभाव स्पष्ट दिख रहा था. उन्होंने किसानों और व्यापारियों का भरपूर शोषण किया, युवाओं के साथ अन्याय भी किया और महिलाओं की सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाला.
जैसा कि हम जानते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच सालों में 1 ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य बनाया है. यह राज्य समेत यहां के निवासियों की क्षमताओं को बेहतर संभावनाओं में बदलने का एक सुअवसर है. भारत समेत दुनियाभर में गरीबी कम करने, जीवन स्तर में सुधार के लिए सबसे शक्तिशाली और टिकाऊ यदि कोई रास्ता है तो वो आर्थिक विकास ही है, और मिशन 1 ट्रिलियन में यूपी को बदलने की क्षमता है.
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