क्यों बिहार की मुजफ्फरपुर सीट भाजपा के साथ-साथ गठबंधन को भी टेंशन दे रही है !
राज भूषण चौधरी को जिताने से वोटर्स को उनके हित खतरे में लग रहे हैं और दूसरी ओर अजय निशाद ने अपने पिता की तरह गांव में जाकर लोगों से उनकी समस्या नहीं सुनी, तो गांव वाले नाराज हैं. वोट किधर मुडेंगे, ये सस्पेंस है.
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इस लोकसभा चुनाव में बिहार की मुजफ्फरपुर सीट ऐसी है, जिस पर हर पार्टी टेंशन में है. भले ही वह एनडीए हो या फिर महागठबंधन. 6 मई को इस सीट पर चुनाव होना है और जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है, हर पार्टी की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं. इस सीट से भाजपा ने 5 बार सांसद रहे स्वर्गीय कैप्टन जय नारायण प्रसाद निशाद के बेटे अजय निशाद को अपने प्रत्याशी के तौर पर उतारा है, जो वहां के मौजूदा सांसद भी हैं.
यहां ये जानना अहम है कि कैप्टन निशाद कभी किसी भी पार्टी के लिए वफादार नहीं रहे. वह हर चुनाव के बाद अपनी पार्टी बदल लिया करते थे. जनता ने जूनियर निशाद को भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार नहीं किया है. अब एक तरफ जनता उलझन में है और दूसरी तरफ खुद भाजपा. वहीं तीसरी तरफ गठबंधन भी यहां के लोगों का मूड नहीं समझ पा रहा है.
मुजफ्फरपुर सीट पर न केवल राजनीतिक पार्टियां कंफ्यूजन में हैं, बल्कि वोटर्स भी कंफ्यूज हैं.
एनडीए के माथे पर शिकन क्यों है?
भले ही जेडीयू इस बात से गदगद दिख रही हो कि भाजपा ने अजय निशाद को मुजफ्फरपुर से टिकट दिया है, लेकिन पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को ये अच्छा नहीं लग रहा है. हाल ही में पीएम मोदी की संकल्प रैली हुई थी, लेकिन उस रैली में अजय निशाद मौजूद नहीं थे. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार, एक मतदाता ने बताया कि अजय के पिता तो गांव वालों से मिलते जुलते रहते थे, खासकर अपने समुदाय वालों से. गांव वालों और उनके बीच एक अच्छी बॉन्डिंग थी, लेकिन अजय निशाद कभी गांव आए ही नहीं. उसने अपनी बात खत्म करते हुए ये भी कहा कि 6 मई को होने वाले चुनाव में अजय निशाद को इसका नतीजा भुगतना होगा. अजय की गांव वालों के बीच पकड़ ना होने की बात जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने भी कबूली है. उन्होंने तो ये भी माना कि वह अपना उम्मीदवार उतारना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा है. इन्हीं वजहों से अब एनडीए मुजफ्फरपुर सीट को लेकर टेंशन में है.
महागठबंधन की चिंता भी छोटी नहीं
जहां एक ओर एनडीए के माथे पर शिकन है, तो महागठबंधन भी चिंतित ही नजर आ रहा है. उनकी ओर से एक मेडिकल प्रैक्टिशनर राज भूषण चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा गया है. राज भूषण चौधरी भी निशाद कम्युनिटी से आते हैं, बिल्कुल अपने विपक्षी अजय निशाद की तरह. चौधरी आधिकारिक रूप से नई-नई बनी विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार हैं और ये उनका पहला चुनाव है. सहयोगी पार्टी आरजेडी के कुछ वरिष्ठ लोकल नेताओं को चौधरी को उम्मीदवार बनाना पसंद नहीं आया है. इसकी वजह से अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है. बातें ये हो रही हैं कि इस वजह से मतदाताओं का मूड बदल सकता है और दोनों ही उम्मीदवारों का खेल खराब हो सकता है.
हालांकि, चौधरी आरजेडी प्रमुख के मुस्लिम-यादव समीकरण से पूरी तरह से संतुष्ट हैं. आरजेडी के ही एक वरिष्ठ नेता के अनुसार यादव कम्युनिटी के मतदाता दोनों ही उम्मीदवारों के लिए निर्णायक की भूमिका निभा सकते हैं. उनका मानना है कि इस कम्युनिटी से एक बड़ा वोट बैंक शिफ्ट हो सकता है, क्योंकि उनका मानना है कि विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार की जीत उनके हितों के लिए नुकसानदायक होगी, क्योंकि इस तरह साहनी ग्रुप सत्ता में आ जाएगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही गठबंधन मल्लाह समुदाय के वोट पर नजर गड़ाए हैं, क्योंकि इस समुदाय में काफी बड़ी संख्या में वोटर हैं. यहां तक कि यादव कम्युनिटी के लोग भी चौधरी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. इस तरह राज भूषण चौधरी को जिताने से वोटर्स को उनके हित खतरे में लग रहे हैं और दूसरी ओर अजय निशाद ने अपने पिता की तरह गांव में जाकर लोगों से उनकी समस्या नहीं सुनी, तो गांव वाले नाराज हैं. अब दोनों ही प्रत्याशियों में से जनता के वोट किसकी ओर झुकेंगे, इस बात की टेंशन एनडीए और महागठबंधन दोनों के ही चेहरों पर देखी जा सकती है.
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