क्या प्रशांत किशोर अब बिहार में बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं?
बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में बदलाव लाने के लिए जनसुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के निशाने पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव तो हमेशा ही होते हैं, लेकिन बीजेपी (BJP) से परहेज करते लगते हैं - आखिर राज क्या है.
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कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद जब पहली बार कन्हैया कुमार पटना पहुंचे तो चुन-चुन कर सबको निशाना बना रहे थे. बीजेपी तो शुरू से ही कन्हैया कुमार के निशाने पर रही है, लेकिन कांग्रेस नेता बन जाने के बाद वो नीतीश कुमार के साथ साथ लालू यादव से भी बराबर का हिसाब मांग रहे थे - कन्हैया कुमार असल में ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि बिहार में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद कोई काम नहीं हुआ. मतलब, अगर लालू-राबड़ी के शासन को जंगलराज बताया गया तो बाद के दिनों में भी कोई फर्क नहीं आ सका है.
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) भी अब कन्हैया कुमार जैसी ही बातें करने लगे हैं, बस थोड़ा सा फर्क है लेकिन वो फर्क बहुत गंभीर है. शुरू शुरू में तो प्रशांत किशोर के बयानों में सामाजिक न्याय के लिए लालू यादव और कुछ अच्छे कामों के लिए नीतीश कुमार की तारीफ सुनने को मिलती रही, लेकिन जैसे जैसे उनकी जन सुराज यात्रा की मुहिम पदयात्रा के रूप में आगे बढ़ने लगी, वो धीरे धीरे रंग दिखाने लगे.
मुद्दे की बात ये है कि प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार की बातों में बुनियादी फर्क देखने को मिला है. कन्हैया कुमार की तरह प्रशांत किशोर के निशाने पर सबसे पहले नीतीश कुमार ही होते हैं - और फिर दूसरे नंबर पर लालू परिवार के लोग यानी अभी तेजस्वी यादव, लेकिन बीजेपी के प्रति प्रशांत किशोर का वैसा रूप अब तक नहीं देखने को मिला है. ज्यादा हैरान करने वाली बात भी यही है.
अपनी तरफ से प्रशांत किशोर की कोशिश ये जरूर है कि ऊपर से मामला बिलकुल बैलेंस लगे, लिहाजा बुलेट ट्रेन को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया है. अब बिहार के लोगों के बीच हैं और उनकी बात नहीं करेंगे तो पदयात्रा में कौन साथ देगा भला? लिहाजा ये जरूर कहते हैं कि बिहार की ओर केंद्र सरकार का झुकाव नहीं है, बल्कि गुजरात की तरफ ज्यादा है - और फिर समझाते हैं कि इसी के चलते वंदे भारत एक्सप्रेस गुजरात से चलाई गयी, न कि बिहार से. प्रशांत किशोर का सवाल ये भी होता है कि 26 सांसद वाले गुजरात को बुलेट ट्रेन और 39 सांसद देने वाले बिहार को पैसेंजर ट्रेन से क्यों गुजारा करना पड़ रहा है?
लेकिन ये तो रस्मअदायगी ही लगती है. प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव के नौवीं पास होने पर तो सवाल उठाया है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की तरह कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर कुछ नहीं बोला है, जबकि उनके उनकी गतिविधियां यही बता रही हैं कि बिहार में वो भी आम आदमी पार्टी जैसे उपक्रम लाने की तरफ इशारा कर रहे हैं. जो भी हो असल बात तो वक्त आने पर ही सामने आ पाएगी.
और नीतीश कुमार के साथ आरोप प्रत्यारोप का दौर तो काफी गंभीर होता जा रहा है. ऐसा लगता है जैसे दोनों के बीच एक दूसरे को झूठा साबित करने की होड़ मची हुई है. सवाल ये है कि बिहार की राजनीति में बदलाव लाने का सपना दिखा रहे प्रशांत किशोर के मन में बीजेपी (BJP) के प्रति कोई सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ है क्या? और ऐसा है तो वो किस हद तक है, मतलब कितना गहरा है?
निशाने पर नीतीश भी तेजस्वी भी, लेकिन...
प्रशांत किशोर वैसे तो काफी पहले से नीतीश कुमार को लेकर हमलावर रहे हैं, लेकिन ज्यादा गुस्से में तब देखा गया जब नीतीश कुमार ने उनके राजनीतिक ज्ञान पर ही सवाल उठा दिया. बीजेपी के खिलाफ विपक्षी नेताओं से ताबड़तोड़ संपर्क में जुटे नीतीश यादव से प्रशांत किशोर को लेकर सवाल पूछ लिया गया था.
बीजेपी के प्रति प्रशांत किशोर के मन में जो सॉफ्ट कॉर्नर है, वो कितना गहरा है?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना रहा कि प्रशांत किशोर को राजनीति की एबीसी भी नहीं आती. वो कुछ भी बोलते रहते हैं - और तभी एक दिन पूर्व राज्य सभा सांसद पवन वर्मा के साथ प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से मिलने पहुंच गये. मुलाकात को लेकर भी काफी चर्चा हुई. लुकाछिपी के खेल की तरह बातें होने लगी. जब नीतीश कुमार से पूछा गया तो टालने के चक्कर में बोल गये कि पता नहीं कैसे पवन वर्मा ने लीक कर दिया. तब तो प्रशांत किशोर ने भी शिष्टाचार मुलाकात की बात कही थी, लेकिन बाद में वो नये नये दावे करने लगे.
जिस मुलाकत को साधारण बातचीत और हालचाल जैसा बता रहे थे, बाद में प्रशांत किशोर ने दावा कर दिया कि नीतीश कुमार ने उनसे जेडीयू की कमान संभालने का ऑफर दिया था. प्रशांत किशोर के अनुसार नीतीश कुमार उनको अपना उत्तराधिकारी बनाने का ऑफर दे रहे थे.
हो सकता है, जैसे अमित शाह बिहार में दौरे में लालू यादव को आगाह कर रहे थे कि बच कर रहना, क्या पता कब नीतीश कुमार कांग्रेस की गोद में बैठ जायें. हो सकता है प्रशांत किशोर ने ऐसा दावा तेजस्वी यादव को केंद्र में रख कर किया हो. माना तो यही जा रहा है कि लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी बनाने की डील पक्की हुई है.
देखते ही देखते प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बीच वाकयुद्ध तेज होने लगा है. जब नीतीश कुमार से प्रशांत किशोर के उस दावे के बार में पूछा गया कि क्या उनको जेडीयू की कमान संभालने के लिए कहा गया था तो वो दो कदम आगे बढ़ कर दावा करने लगे हैं.
प्रशांत किशोर को जेडीयू में पद के ऑफर को लेकर पूछे जाने पर नीतीश कुमार का कहना था कि ये बात पूरी तरह गलत है. बोले, मैंने कोई ऑफर नहीं दिया... वो ऐसे ही बोलते रहते हैं... कुछ नहीं है... उनकी जो मर्जी बोलते रहें... अब उन पर रोजाना क्या बोलते रहें.
अव्वल तो नीतीश कुमार किनारा ही कर लेते हैं, प्रशांत किशोर से मेरा कोई लेना देना नहीं है... मैंने कभी उनको मिलने के लिए नहीं बुलाया है... वो खुद मिलने आते रहे हैं. और ऐसे ही बातों बातों में नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर पर बीजेपी के एजेंडे पर काम करने का आरोप लगा देते हैं.
असल बात जो भी है, लेकिन प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार की बात चुभ जाती है - और नीतीश कुमार को पिता समान बताने वाले प्रशांत किशोर कहते हैं, अब नीतीश कुमार की उम्र हो गई है, जिसकी वजह से वे बोलते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं.
नीतीश कुमार के साथ साथ प्रशांत किशोर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को भी उसी अंदाज में घेरने लगे हैं. अपनी पदयात्रा के दौरान महिलाओं से बात करते वक्त प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव की पढ़ाई लिखाई पर भी सवाल उठा दिया. महिलाओं से उनके बच्चों को लेकर हमदर्दी जताने की कोशिश में प्रशांत किशोर ने कह डाला कि लालू यादव का बेटा नौवीं पास है, लेकिन तब भी वो मुख्यमंत्री बनेगा - और आप लोगों का बेटा अगर नौवीं पास है तो क्या उसे चपरासी की भी नौकरी मिलेगी?
बीजेपी से कैसा याराना है?
एक बार नीतीश कुमार ने कहा था कि प्रशांत किशोर को जेडीयू में वो दरअसल, बीजेपी नेता अमित शाह के कहने पर ही रख लिये थे - और ध्यान देने वाली बात ये भी रही कि जेडीयू से बाहर किये जाने बाद प्रशांत किशोर ने भी नीतीश कुमार पर अमित शाह के दबाव में फैसले लेने का आरोप लगाया था. अब ये तो वे तीनों ही जानें कि प्रशांत किशोर को जेडीयू का उपाध्यक्ष बनाये जाने में किसकी क्या भूमिका रही - हां, नीतीश कुमार तो तब ये कहते जरूर सुना गया था कि प्रशांत किशोर जेडीयू के भविष्य हैं.
जेडीयू के बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में अपने लिए ठिकाने की तलाश की थी. काफी कोशिशें भी हुईं. प्रशांत किशोर की तरफ से भी और ऐसा लगा कि कांग्रेस की तरफ से भी. फिर भी बात नहीं बनी - और जब कहीं कुछ नहीं हो रहा था तो प्रशांत किशोर बिहार लौट गये. बिहार को लेकर वो पहले से ही कहते रहे हैं कि उनका कार्यक्षेत्र उनका गृह राज्य ही होगा.
जिन दिनों प्रशांत किशोर बिहार पहुंचे थे, नीतीश कुमार अपने मिशन में लगे हुए थे. और फिर अचानक एक दिन नीतीश कुमार एनडीए छोड़ कर महागठबंधन के नेता बन गये - और सीधे सीधे मोदी-शाह से दो दो हाथ करने लगे.
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद और अपनी पदयात्रा शुरू करने से पहले ही मुलाकात की थी - और उसी मुलाकात के बाद बात बढ़ती जा रही है. नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर दोनों ही अपनी ओर से समझाने की कोशिश करते हैं कि दोनों ही पहले जैसे नहीं रहे. प्रशांत किशोर 2015 वाले नीतीश कुमार की तो तारीफ करते हैं, लेकिन अब कहने लगे हैं कि उनको लोग गाली देने लगे हैं.
नीतीश कुमार भी कहते हैं, प्रशांत किशोर पहले मेरे साथ रहते थे... मेरे साथ खाते पीते थे... मेरे घर में रहते थे लेकिन, अब वो बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं - और ऐसे ही एक बार तो यहां तक कह देते हैं कि शायद प्रशांत किशोर चाहते हैं कि केंद्र में उनको कोई जगह मिल जाये. ऐसा बोल कर नीतीश कुमार यही समझाना चाहते हैं कि प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं.
ऐसे ही एक दिन नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर के प्रसंग में दावा किया कि वो उनको सलाह दे रहे थे कि जेडीयू का कांग्रेस में विलय कर दीजिये. फिर समझाना शुरू करते हैं कि वो बिलकुल भी पॉलिटिकल व्यक्ति नहीं हैं. उनको राजनीति की समझ नहीं है - 'अब वो बीजेपी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं और बीजेपी के लिए ही कैंपेन कर रहे हैं.'
बीजेपी के लिए काम करने के आरोप पर प्रशांत किशोर का सवाल होता है, अगर मैं बीजेपी के एजेंडे पर काम कर रहा होता तो मैं कांग्रेस को मजबूत करने की बात क्यों करता? भले ही सफाई में कही गयी बात हो, लेकिन ये भी प्रशांत किशोर का राजनीतिक बयान ही लगता है - और जाहिर ये ऐसा बोलने का उनको हक भी हासिल है. भला किसी को क्यों ऐतराज होगा या होना चाहिये, भले ही वो नीतीश कुमार ही क्यों न हों.
और फिर प्रशांत किशोर अपने तरीके से नीतीश कुमार को घेरना शुरू करते हैं. प्रशांत किशोर का दावा है कि महागठबंधन की सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार का साथियों पर से ही भरोसा उठने लगा है और उसी के चलते वो डरने लगे हैं. प्रशांत किशोर कहते हैं, नयी सरकार बनने के बाद से नीतीश कुमार को कुछ समझ नहीं आ रहा है... उनके पास जो लोग हैं, उन पर भी वो भरोसा नहीं कर पा रहे हैं... अलग-थलग पड़ने का डर सता रहा है.
फिर नीतीश कुमार के बचाव में जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह मोर्चा संभालते हैं. और कहते हैं कि प्रशांत किशोर झूठ बोल रहे हैं. ललन सिंह के मुताबिक, जब प्रशांत किशोर अलग-अलग तरीके से नीतीश कुमार के पास मैसेज भेज रहे थे कि वो साथ में काम करना चाहते हैं तो मुख्यमंत्री ने बोल दिया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिल लीजिये.
ललन सिंह अलग ही किस्सा सुनाने लगते हैं, वो आकर कई घंटे तक मुझसे बात किये और ऑफर दिये कि आपको केंद्र में मंत्री बनवा देता हूं - और नीतीश कुमार को भी मैनेज कर लेता हूं. ललन सिंह का भी दावा है कि प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए ही कैंपेन कर रहे हैं - कहते हैं, 'हो सकता है उनको डर हो कि कहीं सीबीआई उनके पीछे ना पड़ जाये.'
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