आखिर क्यों है फूलपुर को लेकर अटकलों का बाजार गर्म
कयास लगाए जा रहे हैं कि केशव मौर्य केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें अपनी मौजूदा फूलपुर सीट छोड़नी पड़ेगी और विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य बनाना होगा.
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उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने आज कहा कि उनकी पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज भी उतनी ही मजबूत है और 2014 की तरह इस बार भी उनका दल फूलपुर से जीत हासिल करेगा. साथ ही यह भी याद दिलाया कि कैसे उन्होंने विधानसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी दोनों से कहा था कि दोनों मिलकर भी मोदी लहार के सामने टिक नहीं पाएंगे.
आपको बता दें कि ऐसा सुनाने में आया है कि श्री मौर्य 25 जुलाई से 27 तक दिल्ली में हैं साथ ही इस ओर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि वो केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं. लेकिन इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है. अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें अपनी मौजूदा फूलपुर सीट छोड़नी पड़ेगी और विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य बनाना होगा, जिससे कि वो आगे भी उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री बने रह सकें.
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं केशव मौर्य
इस मामले पर इतनी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने हाल में ही राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था और मौर्य के इस्तीफा देने की स्थिति में फूलपुर से लोकसभा उपचुनाव लड़ने की खबरें आ रही हैं. हालांकि मायावती या उनकी पार्टी ने इसका एलान नहीं किया है लेकिन अगर ऐसा होता है तो बीएसपी सुप्रीमो के वहां से जीतने कि उम्मीदें ज्यादा हैं, क्योंकि उनकी उम्मीदवारी का विपक्ष समर्थन कर सकता है. ऐसे में बीजेपी बिल्कुल नहीं चाहेगी कि उसकी छोड़ी सीट से मायावती फिर से सांसद बन जाएं. इसी रणनीति के तहत मौर्य को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है, जिसका कि आने वाले दिनों में विस्तार होने कि खबरे हैं क्योंकि कुछ मंत्रालय खाली पड़े हैं.
हाल में मीडिया में आयी खबरों की मानें तो मौर्य और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी में उतनी अच्छी बन नहीं रही है ऐसे में बीजेपी ये चाहेगी कि मौर्य को केंद्र में लाया जाए जहां तक उनके एक बड़े प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री के पद की बात है तो उसके ऐवज में पार्टी उनको केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. अगर बीजेपी ऐसा करती है तो एक तीर से दो निशाने साधने जैसा होगा. क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि मायावती ऐसे मौके को भुनाने में पीछे नहीं रहेंगी साथ ही अखिलेश और कांग्रेस भी उनकी मदद करेंगे. लेकिन अगर ऐसा होता है और विपक्ष उनका साथ नहीं देता तो और एक हार उनके राजनीतिक भविष्य के लिए भरी पड़ेगी.
लेकिन अभी ये सब अटकलें मात्र हैं, क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि मायावती ने अपना जनाधार कुछ तो खोया है ऐसे में क्या पार्टियां चाहेंगी कि वो एक बार फिर से इसे हासिल करें क्योंकि राजनीति में एक का नुकसान दूसरे के लिए फायदेमंद होता है. वैसे एक बात ये भी सच है कि इस समय अगर मोदी के नेतृत्व को चुनौती देनी है तो सबको इक्कठा होना होगा, लेकिन क्या बीजेपी इसका मौका देगी...ये तो वक्त ही बताएगा.
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