यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी के लिए चुनौती क्यों है, जानिए
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव, जो भाजपा और समाजवादी पार्टी द्वारा बारीकी से लड़ा गया था, आधिकारिक तौर पर 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के साथ समाप्त हुआ है. चुनाव का विश्लेषण सुब्रमण्यम स्वामी ने किया है जिसमें कुछ दिलचस्प बातें निकल कर सामने आई हैं.
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6 मई को, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक ट्वीट में उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के परिणामों की जांच करते हुए अलर्ट जारी किया. अपने ट्वीट में सुब्रमण्यम स्वामी पंचायत चुनावों के परिणामों के मद्देनजर भाजपा के रुख से इतर चल रहे थे उन्होंने पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के जीत के अंतर को बड़ा बताया.
पंचायत चुनाव के जैसे परिणाम आए हैं भाजपा के सामने चुनौतियों का पहाड़ है
अपने विश्लेषण में, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें 'विशुद्ध रूप से शहरी' थीं और इसलिए, पंचायत चुनावों में 357 ग्रामीण विधानसभा सीटें कवर हुईं. पंचायत चुनाव परिणामों को विस्तार देते हुए, सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने 243 विधानसभा सीटें जीतीं, भाजपा ने केवल 67 और अन्य के पास 47 गई.
Seats won by party candidates in UP local bodies reveals the following in terms of MLA seats:1). Of 403 Assembly seats, 46 MLA seats are purely urban so no elections. Polls in 357 seats. 2). Of theses, SP wins 243 and BJP wins 67. 3). The rest 47. If I have it wrong, correct me.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) May 6, 2021
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव
उत्तर प्रदेश में चार चरणों में अप्रैल में पंचायत चुनाव हुए थे. परिणाम 2 मई को घोषित किए गए थे. पंचायत चुनाव आधिकारिक तौर पर 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के साथ समाप्त होते हैं.
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में त्रिस्तरीय चुनाव में 3,052 जिला पंचायत सदस्य चुने गए. ये चुनाव पार्टी की तर्ज पर नहीं होते हैं, लेकिन उम्मीदवारों के राजनीतिक जुड़ाव होते हैं जो संबंधित दलों द्वारा तय किए जाते हैं.
पंचायतों में संख्या का महत्व
घोषित राजनीतिक संबद्धता के अनुसार, समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत निकायों में 747 सदस्य चुने, इसके बाद भाजपा के 690 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 381 सदस्य चुने गए, और दिलचस्प बात ये कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने दिलचस्प रूप से जिला पंचायत अध्यक्ष से दूर रहने का फैसला किया था.
क्या हुआ थे दावे?
हालांकि, भाजपा ने दावा किया था कि सभी निर्दलीय उम्मीदवार उसके सदस्य हैं. इस प्रकार, तब भाजपा ने 981 सीटों पर अपनी जीत का दावा किया था. इसी के साथ बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के जीत के दावे को फुस कर दिया था.
पंचायत चुनाव में भाजपा की जीत से साबित हुआ सपा के दावे खोखले
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) June 28, 2021
हालांकि, जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन यानी 26 जून को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर 3 जुलाई के चुनावों में जीत हासिल करने के लिए प्रशासन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.
अखिलेश यादव ने दावा किया था कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इतनी सीटें नहीं मिलेंगी क्योंकि वह जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत सकती है.
गोरखपुर व अन्य जगह जिस तरह भाजपा सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है, वो हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है।भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी। pic.twitter.com/QNWtI92xJE
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) June 26, 2021
बुल्स आई: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 - यही आगामी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव का लक्ष्य है. भाजपा ने 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश में लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक मत प्राप्त किए हैं.
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों का लक्ष्य भाजपा के उस वोट बैंक में पैठ बनाना है जो 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों और 2019 के संसदीय चुनाव के बाद से पार्टी के साथ रहा है.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के साथ बहुकोणीय मुकाबला होने के कारण भाजपा को चुनौती देने के लिए अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर आसानी से भाजपा को 2022 में सत्ता में वापस आते हुए देख सकता है.
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...तो ये तय माना जाए कि अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव हारेंगे ही!
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