शाह की सियासी बिसात में क्यों महत्वपूर्ण है राजस्थान का किला ?
अमित शाह का राजस्थान में लगातार रैली करना और कार्यकर्ताओं को बल देना ये बता देता है कि भाजपा राजस्थान चुनाव के लिए खासी गंभीर है.
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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह हाल के दिनों में लगातार राजस्थान का दौरा कर रहे हैं. राजस्थान राज्य बीजेपी के अध्यक्ष मदनलाल सैनी ने अगस्त के महीने में कहा था कि सितम्बर और अक्टूबर के बीच अमित शाह कई बार राजस्थान का दौरा करेंगे. इन दौरों में वे जहां पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरेंगे वहीं वोटरों को लुभाने के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. इसी श्रृंखला में अमित शाह बुधवार को जयपुर आएंगे. इस दौरे की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक राष्ट्रीय बीजेपी अध्यक्ष के कार्यक्रमों से दूर रहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस बार शाह के साथ मंच साझा करेंगी. 11 सितंबर से अब तक अमित शाह राजस्थान के कई सभागों में कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर चुके हैं.
राजस्थान में बार- बार अमित शाह का दौरा ये बता रहा है कि राज्य में होने वाले चुनाव के लिए वो बेहद गंभीर हैं
11 सितंबर को अपने दौरे के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान के विधानसभा चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर बताया था. उन्होंने राजस्थान में पार्टी की सरकार को अंगद का पांव बताते हुए कहा था कि राज्य में इसे कोई उखाड़ नहीं सकता. जयपुर से चुनावी बिगुल फूंकते हुए उन्होंने अखलाक कांड, अवार्ड वापसी से लेकर असम के एनआरसी तक का मुद्दा उठाया था. उनके द्वारा दिए गए बयान के राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे थे और कई समीक्षक बीजेपी पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कार्ड खेलने का आरोप लगाने लगे थे.
आखिर अमित शाह इस प्रदेश के विधानसभा चुनाव को इतना महत्व क्यों दे रहे हैं. राजस्थान में चुनाव इस साल के आखिर में होने हैं. राजस्थान में बीजेपी की स्थिति काफी खराब है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए करो या मरो की स्थिति है. बीजेपी के बागी नेता भी नाक में दम किये हुए हैं. राजस्थान में बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल है.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां पर कुल 200 सीटों में से 163 सीटों में अपना परचम फहराया था. उसे करीब 45 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे. वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी 55 फीसदी से भी अधिक वोट लेकर राज्य की सभी 25 सीटें जीतने में सफल हो पायी थी. अगर पिछले बार से तुलना करें तो परिस्थिति बिलकुल विपरीत है.
राजस्थान में लोग भाजपा से काफी खफा नजर आ रहे हैं
अमित शाह ने केवल बीजेपी के कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए इस चुनाव को लोकसभा का ट्रेलर नहीं कहा बल्कि उन्हें सचमुच में लगता है कि विपरीत परिस्थितियों को साध कर अगर बीजेपी चुनाव में जीत हासिल कर पाती है तो लोकसभा चुनाव से पहले ये बीजेपी के लिए मॉरल बूस्टिंग से कम नहीं होगा.
हाल-फिलहाल में जितने भी चुनावी सर्वे हुए हैं उसमें 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार को ही दर्शाया गया है. हाल ही में कराए गए इंडिया टुडे- एक्सिस सर्वे में 48 प्रतिशत लोग राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार को देखना चाहते हैं. इससे स्पष्ट है कि लोगों का विश्वास वसुंधरा राजे सरकार से उठ चुका है.
एबीपी न्यूज और सी-वोटर के सर्वे में ये बात निकल कर आयी है कि बीजेपी केवल 57 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाएगी. जबकि कांग्रेस 130 सीटें पर कब्जा करेगी. सीएसडीएस-लोकनीति द्वारा किए गए संयुक्त सर्वे में भी आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हालत पहले से खराब दिख रही है. साफ है की बीजेपी की हवा उसके विपरीत बह रही है. लेकिन इन सर्वे में एक बात जरूर देखने को मिली है कि लोगों ने अपनी राय में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए अलग-अलग पार्टियों को वोट देने की बात कही है.
राजस्थान में जीत जितनी शाह के लिए जरूरी है उतनी ही ये पीएम मोदी के लिए भी महत्वपूर्ण है
प्रधानमंत्री पद के लिए अभी भी नरेंद्र मोदी उनकी पहली पसंद हैं. सभी जानते हैं कि मोदी एक मैजिक पुलर माने जाते हैं और हो सकता है कि विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान वे ऐसा माहौल बना दें जिससे जनता बीजेपी को ही वोट दे. राज्य में रोजगार, ग्रामीण क्षेत्रों की बदहाली, किसान की दुर्दशा, सामाजिक सुरक्षा, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध में वृद्धि, कीमतों में वृद्धि, आदि कई मुद्दे हैं जिनको लेकर राज्य के लोगों में खासी नाराजगी है.
बीजेपी ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रही है कि वसुंधरा के कार्यकाल में राजस्थान का काफी विकास हुआ है. अगर गौर करे तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तुलना में राज्य सरकार के खिलाफ विरोधी लहर काफी ज्यादा है. अमित शाह को मालूम है कि अगर वे राजस्थान में इस चैलेंज को जीत जाते हैं तो केंद्र में मोदी सरकार को आने से कोई नहीं रोक सकता.
2013 में राजस्थान में बीजेपी की सरकार आने के बाद से जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उन सभी में बीजेपी की हार हुई है. अजमेर, अलवर लोकसभा सीट के अलावा जितनी भी विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए उसमे बीजेपी की हार हुई है. मतलब बिलकुल स्पष्ट है कि बीजेपी का जनाधार राज्य में कमजोर होता जा रहा है.
राजस्थान चुनाव को राहुल गांधी के लिए भी एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है
अमित शाह ने राज्य में बीजेपी को जिताने के लिए सारी कवायद शुरू कर दी है. वे यहां पर एक रणनीति के तहत कम कर रहे हैं. वे अपने दौरों में समाज के सभी वर्गों से मिल रहे हैं और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का कार्य कर रहे हैं.
यहां पर प्रचार और संगठन की मजबूती के अलावा प्रत्याशी बदलने जैसी रणनीति पर मंथन किया जा रहा है. उन्हें पता है कि इस बार का लोकसभा चुनाव बीजेपी बनाम गठबंधन होने जा रहा है. राजस्थान में भी विपक्ष इसी स्ट्रेटेजी के तहत चुनाव लड़ सकता है और ऐसे में राजस्थान की चुनावी वैतरणी को बीजेपी अगर पार कर जाती है तो 2019 में दोबारा उन्हें दिल्ली फतह से कोई नहीं रोक सकता है.
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