यशवंत सिन्हा की गांधी यात्रा फालतू कवायद है - अगर सिर्फ मोदी-शाह निशाना हैं
यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha on Gandhi Peace Yatra) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह (Narendra Modi and Amit Shah) के खिलाफ नया मिशन शुरू किया है - गांधी शांति यात्रा. CAA-NRC के खिलाफ सिन्हा के मिशन में शरद पवार (Sharad Pawar) भी साथ हैं.
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यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha on Gandhi Peace Yatra) का मिशन तो नया है, लेकिन मकसद पुराना ही है - बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह (Narendra Modi and amit Shah) को घेरना. आम चुनाव से पहले यशवंत सिन्हा विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों का हिस्सा हुआ करते थे - और संसद में धारा 370 खत्म किये जाने के बाद से कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं.
यशवंत सिन्हा का नया मिशन नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और NRC के खिलाफ है, जिसके विरोध में वो 3 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले हैं. चुनाव से पहले की विपक्षी गतिविधियों की तरह अब भी यशवंत सिन्हा को शरद पवार (Sharad Pawar) और शत्रुघ्न सिन्हा का साथ मिल रहा है.
नये मिशन में एक ऐड-ऑन टॉपिक भी शामिल किया गया है - जज लोया की मौत का मामला!
ये यात्रा खत्म तो राजघाट जैसी खास जगह पर खत्म होने जा रही है, लेकिन नतीजे में क्या हासिल होगा ये समझना मुश्किल है.
मोदी-शाह के खिलाफ और गांधी के नाम पर!
बगावत के बाद बीजेपी छोड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा की सक्रियता तो नहीं थमी थी, लेकिन अब उन्हें महाराष्ट्र की ताजा राजनीति से ताकतवर बन कर उभरे शरद पवार का भी साथ मिल गया है.
यशवंत सिन्हा की 21 दिनों तक चलने वाली 'गांधी शांति यात्रा' के खत्म होने पर नतीजे में क्या हासिल होगा, बेहतर आकलन तो वो खुद कर ही चुके होंगे, लेकिन जो तारीखें चुनी हैं वे काफी महत्वपूर्ण हैं - 9 जनवरी और 30 जनवरी. ये तारीखें महात्मा गांधी से जुड़ी हुई हैं और इसीलिए यात्रा को भी गांधी के नाम से जोड़ा गया है. गांधी के नाम पर यात्रा और मोदी-शाह के खिलाफ. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका से लौट कर महात्मा गांधी ने 9 जनवरी, 1915 को ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मुहिम शुरू की थी और वो जगह भी मुंबई ही थी. तब बॉम्बे या बम्बई कहा जाता था. 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाना शुरू किया था और ये जारी है. 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी.
गेटवे ऑफ इंडिया से जब यशवंत सिन्हा ने गांधी शांति यात्रा की शुरुआत की तो उनके साथ शरद पवार के अलावा कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण और वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश अंबेडकर भी मौजूद थे. असल में शरद पवार ने ही हरी झंडी दिखा कर इस यात्रा को रवाना किया है.
मोदी-शाह के खिलाफ पवार के साथ यशवंत सिन्हा ने खोला नया मोर्चा
गैर-बीजेपी शासन वाले महाराष्ट्र से शुरू होकर यशवंत सिन्हा की ये यात्रा ऐसे ही एक अन्य राज्य राजस्थान से भी गुजरने वाली है - और फिर हरियाणा और यूपी से होकर गुजरेगी जहां बीजेपी की सरकारें हैं.
यशवंत सिन्हा के मुताबिक ये यात्रा CAA और NRC के खिलाफ है और राज्य सरकारों ने जो हिंसा की है उसके खिलाफ है. सिन्हा का आशय विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ पुलिस एक्शन से लगता है. कश्मीर से लौटने के बाद सिन्हा सीधे दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया पहुंचे थे - वहां उनका कहना था - 'केंद्र सरकार ने कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों जैसा बनाने का दावा किया था, लेकिन हालात ऐसे बन गए हैं कि अब पूरा देश ही कश्मीर बन गया है.'
नये सफर पर निकलने से पहले यशवंत सिन्हा का आश्वासन है कि वो 'बाबा साहब अंबेडकर के संविधान' की रक्षा करेंगे और दोबारा 'न देश का बंटवारा' होने देंगे, 'न ही गांधी की फिर से हत्या'.
यशवंत सिन्हा की इस यात्रा के दौरान जिस बात पर मुख्य तौर पर जोर होगा, वो है - केंद्र की मोदी सरकार से ये मांग की जाएगी कि वो संसद में इस बात की बाकायदा घोषणा करे कि NRC लागू नहीं होगा. अमित शाह ने पूरे देश में NRC लागू करने की घोषणा कर रखी है और ममता बनर्जी, पी. विजयन, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि वे अपने राज्यों इसे नहीं लागू करेंगे. ऐसी ही बात नीतीश कुमार ने भी कह रखी है, हालांकि, वो NDA का हिस्सा हैं और बिहार में गठबंधन की सरकार है.
साथ ही, एक और मुद्दा है जिसे यात्रा के दौरान उठाये जाने की चर्चा है - CBI जज बीएस लोया केस की फिर से जांच का मामला.
जज लोया केस से क्या हासिल?
सीबीआई जज बीएच लोया एक सहकर्मी की बेटी की शादी में में शामिल होने गये थे और 1 दिसंबर, 2014 को उनकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी थी. ये तब की बात है जब वो सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे - अमित शाह भी आरोपियों में से एक थे. अमित शाह इस केस से बरी हो चुके हैं.
जज लोया की मौत के मामले को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के विरोधी उन्हें घेरने के लिए जब तब उठाते रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी इसकी जांच की मांग ठुकरा चुका है. अब महाराष्ट्र से शुरू हुआ विपक्षी दलों का एकजुट स्वर एक बार फिर जज लोया केस के बहाने अमित शाह को घेरने की कोशिश करता लगता है.
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार में NCP कोटे से मंत्री नवाब मलिक ने कहा है कि अगर सरकार को सबूतों के साथ अगर शिकायत मिलती है तो तो जज लोया केस की फिर से जांच करायी जा सकती है. महाविकास अघाड़ी सरकार में गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी ऐसी ही बात कही है.
नवाब मलिक का ये बयान भी NCP की एक मीटिंग के बाद आया है. एनसीपी ने गठबंधन सरकार में मंत्री बने पार्टी नेताओं नेताओं की एक बैठक बुलायी थी जो करीब तीन घंटे तक चली. एक और महत्वपूर्ण बात मीटिंग की अध्यक्ष एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने की.
मकसद साफ साफ नजर आ रहा है. जज लोया केस की जांच के बहाने एनसीपी की कोशिश केंद्र की मोदी सरकार पर सीधा हमला बोलने जैसा ही है - लेकिन हासिल क्या होगा ये सवाल बाकी रह जाता है.
ये तो निजी दुश्मनी की सियासत जैसा है
सीबीआई जज लोया केस की दोबारा जांच से महाराष्ट्र सरकार कोई ठोस चीज हासिल कर पाएगी, ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता. जिस केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लायक भी नहीं मानता, उसकी राज्य सरकार की तरफ से करायी जाने वाली जांच का उद्देश्य राजनीतिक के अलावा तो कुछ हो नहीं सकता.
अगर महाराष्ट्र सरकार ऐसा कोई फैसला लेती है तो ज्यादा से ज्यादा मीडिया में सुर्खियां बन सकती हैं. जब तक जांच चलेगी बीच बीच में आने वाली जानकारी पर थोड़ी चर्चा होगी. विपक्ष उन चर्चाओं को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी नेतृत्व पर हमले बोलेगा - और बदले में सत्ता पक्ष के नेता रिएक्ट करेंगे. वैसे तो महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भी जांच कराने की बात कही है. महाराष्ट्र के गृह मंत्री के मुताबिक पुलिस से रिपोर्ट तलब की गयी है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार की भी इस मुद्दे पर ऐसी ही राय सामने आ चुकी है.
जिस तरह यशवंत सिन्हा जामिया हिंसा को कश्मीर से जोड़ चुके हैं, ठीक वैसे ही उद्धव ठाकरे जेएनयू हिंसा को 26/11 के मुंबई हमले से जोड़ चुके हैं. उद्धव ठाकरे का ये बयान कांग्रेस नेतृत्व को खुश करने वाला है और शरद पवार भी ऐसा ही महसूस कर रहे होंगे. उद्धव ठाकरे का फायदा ये है कि ऐसा करके वो अपनी सरकार की उम्र भी बढ़ा सकते हैं और रोज रोज कि छोटी छोटी किचकिच से थोड़ी देर के लिए छुटकारा भी पा सकते हैं.
ये सब निजी दुश्मनी वाली राजनीतिक कवायद ही ज्यादा लगती है. जैसे शरद पवार मानते हैं कि मोदी-शाह का इशारा पाकर ही ED उनके खिलाफ केस दायर करता है. जैसे सोनिया गांधी मानती हैं कि पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार जैसे नेताओं और AJL केस में खुद उन्हें और राहुल गांधी को निशाना बनाया जाता है - या फिर रॉबर्ट वाड्रा को.
अजीत पवार को तो देवेंद्र फडणवीस के सपोर्ट के बदले में कुछ मामलों में क्लीन चिट मिल चुकी है, लेकिन शरद पवार के खिलाफ ED का केस उनके राजनीतिक पलटवार के चलते दबा हुआ है. जब तक शरद पवार ताकत दिखाते रहेंगे कोई हाथ भी नहीं डालेगा, लेकिन उसके बाद?
यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेताओं को भी अपने लिए टाइमपास का कोई ठोस बहाना चाहिये. मोदी-शाह के मजबूत होते ही, आडवाणी और जोशी जैसे नेता तो मार्गदर्शक मंडल में भेज दिये गये, लेकिन यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी जैसे वाजपेयी के जमाने के सीनियर नेता हाशिये पर भेज दिये गये. यशवंत सिन्हा तभी से मोदी-शाह के खिलाफ अलग अलग तरीके से मुहिम चलाते रहे हैं - अब तो उनके बेटे जयंत सिन्हा को भी मोदी कैबिनेट 2.0 से बाहर रखा गया है. ऐसे में गुस्सा कहीं न कहीं, किसी न किसी तरीके से बाहर तो आएगा ही.
गांधी शांति यात्रा भी ऐसी ही निजी दुश्मनी के चलते इकट्ठा हुए नेताओं का चलता फिरता समागम है - और ऐसे आयोजन आखिरकार बेकार की कवायद ही साबित होते हैं.
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