योगी आदित्यनाथ का मुलायम परिवार से मिलना यानी सौ मर्जों का इलाज
लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश से कई तरह के अमर्यादित बयान सुनाई दिए. भाजपा, बसपा, समाजवादी पार्टी या कोई और, जहर से बुझे तीर चलाने में कोई पीछे नहीं रहा. लेकिन चुनावी संग्राम खत्म होने के योगी आदित्यनाथ और मुलायम सिंह परिवार की मुलाकात ने माहौल बदलने का काम किया है.
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समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. योगी जी सद्भावना के चलते नासाज़ चल रहे नेताजी का हाल-चाल लेने गये थे. ये उसी मौके की तस्वीर है, जिसमें मुलायम सिंह, उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, भाई शिवपाल सिंह एवं अन्य परिवारीजन दिखाई दे रहे हैं. योगीजी ने सद्भावना दिखाई. अच्छी बात है. राजनीतिज्ञों का भी सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन होता है. ऐसे में योगीजी का मुलायम सिंह का हाल-चाल पूछना सामान्य बात है. इसको इतना प्रचारित करने की तुक समझ से परे है. ऐसा भी नहीं है कि ये कोई आलौकिक घटना है. इस सामान्य घटना की फोटो का सोशल मीडिया पर खूब वायरल होना ही, ये सवाल पैदा करता है कि इस सद्भावना और शिष्टचार भेंट में ऐसा क्या है कि सोशल मीडिया में इस फोटो और मुलाकात को अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया जा रहा है.
योगीजी के अलावा भी देश के तमाम नेता अपने राजनीतिक विरोधियों के सुख-दुःख में शामिल होते रहे हैं. और आगे भी होते रहेंगे. असल में हम जिस राजनीति माहौल में पैदा हुए हैं, या जीवन काट रहे हैं उसमें विरोधी दलों के नेता एक-दूजे को फूटी आंख सुहाते नहीं हैं. सार्वजनिक जीवन में विरोधियों पर तीखे जुबानी हमले करना, आलोचन और कीचड़ उछालना आम बात है. ऐसे में जब कोई नेता सद्भावना स्वरूप अपने राजनीतिक विरोधी से मिलता है, तो वो सुर्खियों में छा जाता है.
मुलायम सिंह यादव के हाल चाल जानने उनके घर मिलने पहुंचे योगी आदित्यनाथ
अभी हाल ही में लोकसभा चुनाव बीते हैं. लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने तमाम नेताओं अपने विरोधियों पर विषवमन करते देखा है. ऐसे में ये सवाल भी पैदा होता है कि चुनाव के समय ये सद्भावना कहां चली जाती है? क्या सद्भावना का भी कोई मौसम होता है? मौसमी फलों और सब्जियों की तरह. या फिर सद्भावना नफे-नुकसान के हिसाब से कहीं आती-जाती है. पुराने नेताओं में एक-दूसरे के प्रति सद्भावना का रिशता गहरा था. समय के साथ-साथ राजनीतिक कट्टरता, विरोध, वैर और आपसी संबंधों में कड़वाहट की मात्रा में इजाफा हुआ है. आज परस्पर विरोधी नेता एक दूसरे पर इतने अमर्यादित बयानबाजी करते हैं कि आम आदमी भी उन्हें सुनकर सन्न हो जाता है.
लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम सिंह अस्वस्थ थे. तब तत्कालीन गृहमंत्री एवं लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह उनका कुशलक्षेम पूछने उनके आवास पहुंचे थे. प्रधानमंत्री मोदी भी यादव परिवार की शादी में शामिल हो चुके हैं. वास्तव में चुनावी मंच पर एक-दूसरे को गर्म पानी पी-पीकर कोसने वाले नेता जब सुख-दुःख के भागीदारी बनते हैं, तो ऐसे दृश्य और तस्वीरें सुर्खियां बन जाती हैं. भारतीय राजनीति और लोकतंत्र में जहां विरोधी दलों के नेता ऐसी छवि बनाकर रहते हैं कि फलां दल या विचारधारा से उनका पक्का वैर और विरोध है. ऐसे में जब दो धुर विरोधी विचारधारा और एक दूसरे को खरी-खोटी सुनाने वाले नेता आपस में सद्भावना पूर्वक मिलते हैं तो आम आदमी के लिये अजीब पहेली और कौतुहल का विषय बनते हैं.
मुलायम सिंह यादव के साथ उनके भाई शिवपाल भी मौजूद थे.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी चुनाव के वक्त भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर की मिजाज पुर्सी के लिये अस्पताल पहुंची थी. 16वीं लोकसभा की आखिरी बैठक में मुलायम सिंह यादव ने अपने भाषण में कहा कि उनकी कामना है कि नरेंद्र मोदी एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें. जिस समय संसद में खड़े होकर मुलायम सिंह यह बयान दे रहे थे उस समय वो बीजेपी और प्रधानमंत्री के प्रति सद्भावना ही दिखा रहे थे.
जुलाई 2018 में जब तमिलनाडु पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि कावेरी अस्पताल में भर्ती थे, तब देश व प्रदेश के ज्यादातर बड़े नेता अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भुलाकर उनके घर या अस्पताल जाकर उनसे मिले थे. राहुल गांधी ने भी उनसे अस्पताल में मुलाकात की थी. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के निधन के समय देश के तमाम नेता उनको श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंचे थे.
जैसा पूर्व में कहा गया है कि सुख-दुःख में सारे बैर-विरोध और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नेता एक-दूसरे के यहां आते-जाते रहते हैं. सवाल फिर वहीं आकर खड़ा हो जाता है कि चुनाव के वक्त ये सारी सद्भावना नेता लोग क्यों भूल जाते हैं. चुनाव मंच से विष बुझे तीर रूपी बयान, अमर्यादित टिप्पणियां और असंवैधानिक भाषा क्या वोटरों के मनोरंजन के लिये होती है? क्या नेता चुनाव के वक्त जान-बूझकर अपने विरोधियों पर टीका-टिप्पणी करते हैं? क्या नेता सोची-समझी रणनीति के तहत जुबानी हमले अपने विरोधियों पर करते हैं? क्या नेताओं को लगता है कि देश की जनता उनके मुंह से अमर्यादित और असंवैधानिक बातें सुनना ही पसंद करती है? क्या नेताओं को यह भी लगता है कि अपने विरोधी और विपक्षी को वो जितना बुरी तरह से गरियाएंगे और लानत-मलानत करेंगे तभी वोट प्रतिशत बढ़ेगा?
लोकसभा चुनाव के दौरान जब मुलायम सिंह अस्वस्थ थे तब तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी उनसे मिलने उनके आवास पहुंचे थे.
भारतीय राजनीति में अमर्यादित और स्तरहीन भाषा का चलन तेजी से बढ़ा है. पिछले पांच साल की राजनीति पर नजर दौड़ाएं तो चैकीदार चोर है, निकम्मा, नीच आदमी, चोर, नमक हराम, अनपढ़, गंवार, कुत्ता, गधा, बंदर, सांप-बिच्छू, ठगबंधन, महामिलावट क्या-क्या चुनावी मंच से नहीं बोला गया. लेकिन जब यही विरोधी नेता आम दिनों में एक-दूसरे के प्रति सद्भावना दिखाते हैं, तो बरबस ही सुर्खियों में आ जाते हैं. असल में आम आदमी को इस बात से बड़ी हैरानी होती है कि कैसे महज चंद दिनों पहले एक दूसरे के खिलाफ तलवार भांजने वाले नेता आज एक-दूसरे के सुख दुख में साथ-साथ हैं, और समर्थकगण अभी भी अपने अपने लट्ठ को तेल पिलाने में ही जुटे हैं.
लोकसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए ‘चोर’ शब्द का प्रयोग किया. वैसे राहुल गांधी ने लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान नफरत को प्यार से जीतने की बात कही थी. लेकिन शायद राहुल भूल गए थे कि जिस प्रधानमंत्री को उन्होंने गले लगाया था, उन्हें ही चोर की उपमा दे डाली. तो क्या उनका पीएम से गले मिलना और मोहब्बत की राजनीति करना महज छलावा या दिखावा था?
नेताओं क्या प्रत्येक देशवासी में सद्भावना का रिशता हो यह कामना हम सबको करनी चाहिए. लेकिन एक दूसरे के सुख-दुख के वक्त जिस तरह की सद्भावना नेता दिखाते हैं, वहीं सद्भावना चुनाव के वक्त और आम दिनों में भी तो दिखनी चाहिए. राजनेताओं को अपने भाषण में संयम और शालीनता का परिचय चुनाव के वक्त भी देना चाहिए. क्या चुनाव के वक्त असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये नेता सद्भावना भुलाकर अमर्यादित आचरण पर उतर आते हैं? क्या चुनाव के वक्त विरोधियों पर तीखी टीका-टिप्पणी और अमर्यादित बयानबाजी महज चुनावी स्टंट मात्र होता है? देश के विकास और आम आदमी के हित से जुड़े तमाम मुद्दों पर संसद के समय जब विपक्ष सरकार का विरोध करता है, तो उस समय सद्भावना कहां घूमने चली जाती है.
राजनीति और राजनेताओं की हर चाल, हर बयान और हर सद्भावना के ‘सियासी’ मायने होते हैं. भविष्य में अपनी जरूरत और सियासी नफे-नुकसान के लिये नेता अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति गाहे-बगाहे सद्भावना दिखाते रहेंगे. इसमें हैरान होने और चैंकने वाली कोई बात नहीं है. योगी जी का मुलायम सिंह से उनके घर जाकर हालचाल पूछना सकारात्मक राजनीति का प्रतीक है. योगी जी ने मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रीत्व काल में आज से 13 साल पूर्व उनके साथ हुये राजनीतिक जुल्म को भुलाकर जो सद्भावना और बड़प्पन दिखाया है, वो काबिले तारीफ है. वास्तव में राजनीति और नेताओं में आपसी सद्भावना होगी तो इसका सकारात्मक संदेश समर्थकों तक भी जरूर पहुंचेगा. तब शायद चुनावी मंच से भी अमर्यादित भाषण और बयान सुनने को नहीं मिलेंगे. जब राजनीति और राजनेताओं में अपने परस्पर विरोधियों के प्रति आदर-सम्मान और सद्भाव का व्यवहार होगा, उस दिन देश तरक्की के रास्ते पर सरपट भागने लगेगा. और सच मानिए देश की तरक्की में रोड़े अटकाए सैकड़ों बीमारियों का इलाज बिना किसी दवाई के ही हो जाएगा.
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