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Updated: 03 जुलाई, 2019 11:47 AM
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योगी आदित्यनाथ बीजेपी में नरेंद्र मोदी के बाद के स्टार प्रचारकों में से एक हैं. त्रिपुरा और कर्नाटक जैसे राज्यों में योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार से बीजेपी को फायदा भी मिला है. मगर, योगी आदित्यनाथ भी फेल रहे जब बीजेपी 2018 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गयी. योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे बुरा रहा 2018 के उपचुनावों में हार जिसमें गोरखपुर लोक सभा सीट भी शामिल है. वैसे योगी आदित्यनाथ ने उपचुनावों की हार का हिसाब बराबर कर लिया है - लेकिन मालूम होना चाहिये जिस चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने हार का बदला लिया वो खुद नहीं लड़ रहे थे - बल्कि, आम चुनाव तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा.

प्रधानमंत्री मोदी इस हिसाब से यूपी में अच्छे नंबर से पास हो चुके हैं. यूपी में होने जा रहे उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ को जौहर दिखाना होगा - क्योंकि असली इम्तिहान तो ये योगी के शासन का है.

मोदी के साये में ही सफल होते हैं योगी

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जाती है - लेकिन देखने को तो यही मिला है कि जब मोदी का जादू चलता है योगी आदित्यनाथ भी सफल साबित होते हैं - और अगर बीजेपी को चुनाव जिताने में मोदी चूक जाते हैं तो योगी का फेल होना पहले ही तय हो जाता है. 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी का सत्ता से बेदखल होना और आंध्र प्रदेश-तेलंगाना में कुछ नहीं कर पाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

यूपी के उपचुनावों में बीजेपी को हार का मुंह तो 2014 के आम चुनाव में भारी जीत के बाद भी देखना पड़ा था. विधायकों के संसदीय चुनाव जीत जाने के कारण 12 सीटों पर चुनाव हुए तो बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के हाथों 8 सीटें गवां दी थी. तब यूपी में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार का शासन था. 2015 में भी बीजेपी को दो उपचुनावों में शिकस्त झेलनी पड़ी और 2016 में तो पांच में से सिर्फ एक सीट ही बीजेपी जीत पायी थी.

गोरखपुर सहित चार उपचुनावों में हार बीजेपी के लिए इसलिए बड़ा झटका रहा क्योंकि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे - और जिस जगह से पांच चुनाव जीते थे वही हार गये. तब गोरखपुर के अलावा फूलपुर और कैराना लोक सभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा के लिए चुनाव हुए थे. नूरपुर विधानसभा तो नहीं, लेकिन आम चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर, फूलपुर और कैराना तीनों ही सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी हैं. अब देखना है कि जिन यूपी की जिन 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं वहां क्या नतीजा रहता है?

Yogi Adityanath success depends on Narendra Modiमोदी के साये में तो योगी चल गये - असली इम्तिहान तो UP Bypolls हैं!

12 में से 9 सीटों पर बीजेपी को 2017 में जीत हासिल हुई थी - गंगोह, इगलास, टुंडला, गोविंद नगर, मानिकपुर, हमीरपुर, लखनऊ कैंट, जैदपुर और बलहा. प्रतापगढ़ सदर अभी तक अपना दल (सोनेलाल), रामपुर समाजवादी पार्टी और जलालपुर में बीएसपी के कब्जे में रही है. 11 सीटों पर तो विधायकों के संसद पहुंच जाने के कारण उपचुनाव होने हैं, लेकिन हमीरपुर से विधायक अशोक सिंह चंदेल के 22 पुराने हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा होने से सीट खाली हुई है.

ये योगी का छमाही इम्तिहान है

योगी आदित्यनाथ अपनी पारी का आधा हिस्सा पूरा कर चुके हैं. योगी सरकार के कार्यकाल में करीब आधा समय ही बचा है और इस हिसाब से देखा जाये तो 2022 में होने वाले सालाना एग्जाम से पहले ये योगी आदित्यनाथ का छमाही इम्तिहान है.

योगी आदित्यनाथ के भरोसे बैठ गोरखपुर सहित 2018 के उपचुनावों में गच्चा खा चुकी बीजेपी इस बार कोई कसर बाकी नहीं रखना चाह रही. बीजेपी ने 12 सीटों पर उपचुनाव के लिए 13 मंत्रियों और दो दर्जन बीजेपी नेताओं की ड्यूटी लगायी है.

बहराइच जिले की बलहा विधानसभा सुरक्षित सीट है और वहां बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ कैबिनेट के दो-दो मंत्रियों को तैनात किया है - रमापति शास्त्री और उपेंद्र तिवारी. ऐसा जातिगत समीकरणों के ध्यान में रख कर किया गया है. रमापति शास्त्री दलित समुदाय से आते हैं जबकि उपेंद्र तिवारी ब्राह्मण हैं.

रामपुर सीट को भी बीजेपी काफी गंभीरता से ले रही है. रामपुर से विधायक मोहम्मद आजम खां समाजवादी पार्टी के टिकट पर संसद पहुंच चुके हैं. जया प्रदा की हार का बदला लेने के लिए बीजेपी ने यूपी के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा की ड्यूटी लगायी है. यूपी के दूसरे डिप्टी सीएम केशव मौर्या गोविंद नगर के मोर्चे पर डटे हुए हैं जो सत्यदेव पचौरी के संसद पहुंच जाने के कारण खाली हुई है.

बलहा को छोड़ दें तो बीजेपी ने हर सीट पर उप चुनाव के लिए एक मंत्री, एक कद्दावर बीजेपी नेता और एक विस्तारक की ड्यूटी लगायी है. बीजेपी ने पहले ही साफ कर दिया था कि जिन नेताओं के सांसद बन जाने से विधानसभा सीटें खाली हुई हैं उन्हें अपने इलाके में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने की पहली जिम्मेदारी होगी. खास बात ये है कि ऐसे कई नेता मोदी सरकार 2.0 में मंत्री बनने की आस लगाये हुए हैं.

2019 की मोदी लहर में तो योगी आदित्यनाथ ने टेस्ट निकाल लिया, लेकिन उनकी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर की असल पैमाइश इन्हीं उपचुनावों में होनी है. अब तक तो यही देखा गया है कि बीजेपी नेतृत्व उपचुनावों से दूर ही रहता है. रणनीति और उम्मीदवारों के चयन पर मुहर तो नेतृत्व का ही लगता है - लेकिन चुनाव प्रचार और बाकी काम राज्यों के प्रमुखों के भरोसे छोड़ दिये जाते हैं.

अपराधियों के एनकाउंटर को लेकर योगी आदित्यनाथ यूपी पुलिस की जितनी भी पीठ थपथपाते हों लेकिन कानून व्यवस्था के मामले में हमेशा वो विपक्ष के निशाने पर रहते हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अभी अभी यूपी की बिगड़ी हुई कानून-व्यवस्था को लेकर जोरदार हमला बोला है.

बीजेपी नेतृत्व की तैयारियों से इतर देखें तो योगी आदित्यनाथ के पक्ष में एक ही बात नजर आ रही है. आम चुनाव के उलट समाजवादी पार्टी और बीएसपी ये उपचुनाव अलग अलग लड़ रहे हैं. ये बात तो है कि दोनों के अलग होने का बीजेपी को फायदा जरूर मिलेगा - लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि योगी आदित्यनाथ को साबित करना होगा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बगैर भी बीजेपी चुनावों में जीत दिलाने में सक्षम हैं.

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