Aamir Khan Kiran Rao divorce मामले में लोगों को निष्कर्षवादी बनने की इतनी जल्दबाजी क्यों है?
आमिर-किरण के मामले में किरण के ऊपर तोहमत लगाते लोगों को देखकर अचंभित हो रही हूं. बार-बार पढ़ रही हूं कि किरण को उसके कर्मों का फल मिला है. ग़ज़ब निष्कर्षवादी दुनिया है. कुछ आगे-पीछे नहीं देखना है, सीधे तौर पर स्त्री को दोष दे देना है.
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न! पुरुष तो बिचारा भोला-भाला ईश्वर की औलाद होता है. स्त्रियां ही ख़राब होती हैं. बहकाती हैं, फुसलाती हैं, प्रेम में गिरफ़्तार कर लेती हैं. पुरुष विवाहित हुआ तो और आफ़त. विवाह के बाद किसी से प्रेम हुआ तो उसका घर भी वह स्वयं नहीं तोड़ता है, वह स्त्री तोड़ती है जिससे प्रेम हुआ. आमिर-किरण के मामले में किरण के ऊपर तोहमत लगाते लोगों को देखकर अचंभित हो रही हूं. बार-बार पढ़ रही हूं कि किरण को उसके कर्मों का फल मिला है. ग़ज़ब निष्कर्षवादी दुनिया है. कुछ आगे-पीछे नहीं देखना है, सीधे तौर पर स्त्री को दोष दे देना है. अव्वल तो यह कि किरण और आमिर की शादी रीना और आमिर के अलग होने के बहुत बाद हुई है और दूसरी सबसे ज़रूरी चीज़.
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क्या लोग भूल गये हैं, दो लोगों के प्रेम में तीसरे की जगह ही तब बनती है जब उन पहले दो लोगों का प्रेम ख़त्म हो चुका होता है. बार-बार, विवाहित पुरुष का घर कोई स्त्री नहीं तोड़ती है. वह पुरुष स्वयं तोड़ता है.
समाज बस औरतों में खलनायक तलाशने की कोशिश में लगा रहता है. और कोई भी खलनायक क्यों हो? एक रिश्ता ख़त्म हुआ तो दूसरे की शुरुआत होती है. प्रेम का प्राकृतिक आदान-प्रदान होता है. लोग वयस्क लोग साथ आने की सहमति देते हैं और फिर एक नये रिश्ते की शुरुआत होती है.
यहां यह भी लिखा जाना ज़रूरी है कि कोई भी रिश्ता 'पर्मनेंट' का टैग लेकर नहीं आता. बहुत नैचुरल है कि दो लोग जो कभी प्रेम में थे, किसी पल प्रेम से बाहर भी हो सकते हैं या उनमें से कोई और आगे भी बढ़ सकता है. यह आगे बढ़ना, ठहरना, अलग हो जाना, साथ निभाना सब नैचुरल है.
पूरी तरह रिश्ते के मौलिक रंग जैसा...किन्तु समाज एक ढांचे में सोचता है. उसे लगता है किसी भी रिश्ते को बचाने का पूरा दारोमदार स्त्रियों पर ही होता है. वह ही घर तोड़ती है. उसे ही कर्मों की सज़ा मिलनी चाहिए. उफ़्फ़ ये दुनिया और दुनिया के लोग. स्त्रियों को अब ढीठ हो जाना चाहिए. लोगों की आंखों में झांकना चाहिए और कहना चाहिए, जा फ़िटे मुंह.
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