फेसबुक VS धर्म : खतरा लोगों से नहीं बल्कि उनके बेबुनियाद तथ्यों से है
जिस तरह आज धर्म पर उठने वाले खतरों पर बात हो रही है उस पर यही कहा जा सकता है कि धर्म को खतरा लोगों से नहीं बल्कि उनकी सोच से है. बेहतर है कि लोग एक दूसरे का सम्मान करें और साथ रहकर देश को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करें.
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इस देश में एक आम आदमी की जिंदगी घर से दफ्तर और दफ्तर से घर है. जल्दबाजी के बीच ट्रैफिक जाम, धूल, धूप, धुंआ, गर्मी, उमस और पसीना लिए हुए एक आम आदमी अपने -अपने दफ्तर पहुँचता है और कुछ पल की राहत पाने के लिए सोशल मीडिया का रुख करता है. हां वही सोशल मीडिया जो बना तो था लोगों को कनेक्ट करने के लिए मगर आज जिसका इस्तेमाल हर उस चीज के लिए हो रहा है जिससे लोग एक दूसरे से डिस कनेक्ट हो जाएं.
आज सम्पूर्ण सोशल मीडिया जगत ऐसी ऐसी कई पोस्टों से भरा है जिनको पढ़कर किसी का भी हृदय विचलित हो जाए और वो कुछ ऐसा कर दे जिससे सभ्य समाज को एक बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाए. ऐसे मसलों पर लोगों के अपने तर्क होते हैं. आज लोगों को लगता है कि वो सोशल मीडिया मुख्यतः फेसबुक पर लाइक, कमेन्ट और शेयर कर धर्म की रक्षा कर रहे हैं. आज 'धर्म की रक्षा' फेसबुक पर एक दूसरे को गाली बकने, अपमानित करने, नीचा दिखाने का पर्याय बन गयी है.
कह सकते हैं कि बंद एसी कमरों में रखे कम्पूटर की 28 इंच की स्क्रीन पर धर्म की रक्षा की जा रही है. पंखे की उमस भरी हवा के बीच मोबाइल रूपी धनुष से एक दूसरे को पराजित करने के लिए लिंक रूपी बाण चलाए जा रहे हैं, फोटो के तौर पर भाले फेंके जा रहे हैं. कंप्यूटर और मोबाइल की स्क्रीनों जैसी तोपों को हाथ में लिए युद्ध चल रहा है, स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.
धर्म को खतरा लोगों से नहीं बल्कि लोगों की कुंठित सोच से है
लोग फेसबुक पर जमकर लिख रहे हैं, लोग फेसबुक पर जमकर पढ़ रहे हैं. लोग फेसबुक पर ही लिख रहे हैं लोग फेसबुक पर ही पढ़ रहे हैं ऐसे में हालात कितने गंभीर होंगे इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. इस बात को बतौर उदाहरण समझने के लिए हमें बंगाल खासकर के उत्तर चौबीस परगना का रुख करना पड़ेगा. जहां एक 17 साल के बच्चे के फेसबुक पोस्ट ने ऐसा कोहराम मचा दिया कि जिससे सम्पूर्ण बंगाल जल रहा है. सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष उससे अपनी - अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहा है अफवाहों का दौर अपने चरम पर है.
आज जिस तरह बंगाल पर अलग - अलग दलों द्वारा राजनीति की जा रही है उसपर मशहूर व्यंगकार हरिशंकर परसाई की एक पंक्ति बिल्कुल फिट बैठती है. परसाई लिखते हैं कि 'देखता हूँ हर आदमी दूसरे के ईमान के बारे में विशेष चिंतित हो गया है. दूसरे के दरवाज़े पर लाठी लिये खड़ा है. क्या कर रहे हैं साहब? इसके ईमान की रखवाली कर रहा हूँ. मगर अपना दरवाजा तो आप खुला छोड़ आये हैं. तो क्या हुआ? हमारी ड्यूटी तो इधर है' बंगाल के सन्दर्भ में परसाई की ये बात जितनी साधारण है उसके अर्थ उतना ही गहरा है.
बहरहाल, बंगाल जल रहा है लोगों को धर्म के नाम पर मारा काटा जा रहा है, लूट घसोट का दौर जारी है. कहा जा सकता है कि बंगाल में कंप्यूटर और मोबाइल की स्क्रीनों ने वो काम कर दिया जो हमारी सोच के परे था. बंगाल में जो आज के हालात हैं उनपर हमारी बात सही साबित हुई है कि युद्ध चल रहा है, स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.
बंगाल में हो रही हिंसा साफ बताती है कि अभी हम धर्म से ऊपर उठ कर सोचना ही नहीं चाहते
बंगाल हिंसा पर बुद्धिजीवियों के अपने तर्क है उनका कहना है कि फेसबुक पोस्ट ने लोगों की भावना को आहत कर दिया और भावना इतनी आहत हो गयी कि उसने खूनी खेल खेलना शुरू कर दिया. ये कितना हास्यपद है कि अब किसी के कहीं कुछ लिखने से लोगों को बुरा लग जाता है उनके अन्दर का रोष उग्र रूप ले लेता है, लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं और कनून व्यवस्था को अपने हाथ में ले लेते हैं.
एक समुदाय की क्रिया पर दूसरे समुदाय की प्रतिक्रिया निस्संदेह गलत है जो ये साफ दर्शाती है कि आज हम मूर्खता की मिसाल कायम करने को आतुर हैं. ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि एक मूर्ख, दूसरे मूर्ख से और दूसरा मूर्ख, तीसरे मूर्ख से आगे निकलने के लिए मूर्खता की सारी हदें पार कर रहा है. यदि सच में फेसबुक की पोस्ट से ट्विटर के ट्वीट से या फिर किसी कार्टून और कैरिकेचर से किसी की भावना आहत हो जाती है तो फिर सोचना होगा कि कहीं न कहीं हमारी भावना की परवरिश में कोई बड़ा खोट रह गया है जिसने हमारी भावना को लाचार मगर उग्र बना दिया है.
बंगाल में या फिर कहीं भी धर्म के नाम पर हो रही हिंसा के सम्बन्ध में केवल यही कहा जा सकता है कि धर्म को खतरा किसी समुदाय विशेष से नहीं है. न ही हिन्दू को मुसलमान से खतरा है न ही किसी मुसलमान को हिन्दू से. दोनों सदियों से साथ रहते आ रहे हैं और भविष्य में भी वो साथ रहेंगे.
अब अगर इतना जानने और समझने के बावजूद कोई ये कहे कि 'धर्म खतरे में है' तो फिर धर्म पर छाए खतरे का कारण उसका चरमपंथ, कट्टरपंथी सोच और रूढ़िवादी मानसिकता हो. अंत में यही कहा जा सकता है कि धर्म को खतरा लोगों से नहीं बल्कि उनकी सोच से है बेहतर है कि लोग एक दूसरे का सम्मान करें और साथ रहकर देश को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करें.
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