बिरयानी सिर्फ इमोशन है, कहीं की भी हो, कैसी हो!
बिरयानी के कारण फेसबुकऔर ट्विटर पर महिलाओं को आलसी कह दिया गया. जिन्हें लगता है कि उन्हें बिरयानी को घेरने का मौका मिल गया है, वे जान लें बिरयानी का अर्थ चावल, खड़े मसालों को मीट डालकर घी मिले पानी में उबाल देना नहीं है. बिरयानी एक इमोशन है. इसमें हमें कला और साहित्य जैसा अनूठा संगम दिखाई देता है.
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बंदर के हाथ में उस्तरा मैंने कभी देखा नहीं, लेकिन लोगों को फेसबुक-ट्विटर चलाते देख रहा हूं. सोशल मीडिया से अगर किसी चीज की धज्जियां उड़ी हैं तो वो इतिहास है. नीम हकीम खतरा ए जान की तर्ज पर आज कम्युनिकेशन के इन माध्यमों पर जिसकी जितनी बड़ी बुद्धि है, वो उतना बड़ा बुद्धिजीवी है. ऐसा व्यक्ति कुछ भी कर सकता है. कभी भी कर सकता है. क्योंकि इसके पास ज्ञान का समुंद्र है दुनिया के हर विषय पर इसकी राय है. ईरान तूरान से लेकर पहले कौन आया ? अंडा या मुर्गी? राय तो इसकी बिरयानी पर भी है. इन्होंने बिना कुछ सोचे समझे कह दिया कि आलसी महिलाओं का Escaping Tool है बिरयानी. यानी जब महिलाएं कुछ नहीं करनाचाहती तो वो चावल, खड़े मसालों को मीट / पनीर/ सब्जियां डालकर घी मिले पानी में उबाल देती हैं और फिर जो तैयार होता है वो बिरयानी होती है.
बिरयानी के खिले हिले चावल किसी का भी मन मोह सकते हैं और उसकी भूख बढ़ा सकते हैं
जिन्हें इतिहास की टांगे तोड़ने का शौक है. उनका लॉजिक अलग है. बात वजनदार लगे उन्होंने कह दिया है कि बिरयानी घरों का खाना नहीं बल्कि फौजियों का खाना हुआ करता था. तर्क ये दिया गया कि फ़ौज में काफी लोग रहते थे इसलिए संभव नहीं था कि उन्हें उनकी थाली में सालन या रोटी परोसी जाए इसलिए फौजियों के सामने जो चावल परोसा गया उसमें बोटियां डाल दी गयीं और उसे बिरयानी की संज्ञा दे दी गयी.
लॉजिक वाक़ई पचाने काबिल नहीं था. इसलिए वो तमाम लोग जिन्होंने खाने पीने में रुचि है या फिर वो लोग जिन्होंने भोजन को एक विषय मानकर पढ़ा है उन्होंने इन बुद्धिजीवियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इन लोगों ने ज्ञानियों के ज्ञान के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है और बताया है कि बिरयानी सिर्फ एक डिश नहीं है. इसे हर कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा नहीं बना सकता. इसके लिए स्किल चाहिए होती है.
बिरयानी पर जो तर्क दिए जा रहे हैं वो सीधे तौर पर इतिहास से छेड़छाड़ है
मानिये न मानिये बात सही है. बिरयानी सिर्फ एक अदना सा खाना नहीं है. एक इमोशन है. बात बनाने की हो तो इसी बनाने में कला और साहित्य का जो अनूठा संगम दिखता है उसे किसी तरह के शब्दों में नहीं बांधा जा सकता.
विषय आगे बढ़ेगा लेकिन उससे पहले हम बिरयानी को थोड़ा और गहराई से समझ लें और ये भी जान लें कि आखिर इसके प्रकार क्या हैं? कैसे एक जगह की बिरयानी किसी दूसरे स्थान से जुदा है.
क्या है बिरयानी का इतिहास
यदि शौकीनों के लिए बिरयानी टेस्टी है तो इसका इतिहास भी काम रोचक नहीं है. इतिहासकारों की मानें तो बिरयानी का इतिहास पर्शिया (आज का ईरान) से जुड़ा है. बिरयानी पर्शिया से होते हुए पूरी दुनिया में फैली. 'बिरयानी' पर्शियन शब्द बिरियन जिसका मतलब 'कुकिंग से पहले फ्राई' और 'बिरिंज' यानी चावल से निकला है. बिरयानी भारत कैसे आई? इसका पूरा क्रेडिट मुगलों को दिया जाता है और कहा ये भी जाता है कि मुगल रसोइयों की बदौलत बिरयानी बेहतर से बेहतरीन होती चली गई.
कुछ इतिहासकार बिरयानी का पूरा क्रेडिट शाहजहां की पत्नी मुमताज महल को देते हैं. इनके अनुसार एक बार मुमताज अपनी सेना की बैरक में गईं. वहां जब उन्होंने सैनिकों पर नजर डाली तो उन्हें ज्यादातर मुगल सैनिक कमज़ोर दिखे. उन्होंने फौरन ही शाही बावर्ची को तलब किया और आदेश दिया कि सैनिकों को संतुलित आहार देने वाली डिश दी जाए. इसके लिए बेगम मुमताज़ ने बावर्ची से चावल और गोश्त (मीट) का ऐसा मिश्रण बनाने को कहा जिससे सैनिकों को भरपूर पोषण मिले. इसके बाद कई तरह के मसालों और केसर को मिलाकर बिरयानी का उदय हुआ.
बिरयानी से जुड़ी एक किवदंती ये भी है कि तुर्क- मंगोल आक्रांता तैमूर इसे अपने साथ भारत लाया था जो भारत में फैली और लोगों ने अपने हिसाब से इसमें एक्सपेरिमेंट किये.
बिरयानी के प्रकार
जैसे देश में कुछ सौ किलोमीटर पर भाषाएं बदलती हैं कुछ वैसा ही हाल बिरयानी का भी है:
लखनऊ बिरयानी- लखनऊ की बिरयानी तीखी या चटपटी नहीं होती. मसालों का बड़ा ही संतुलित प्रयोग किया जाता है. और इसमें भी तरजीह खुशबू के मसालों को दी जाती है. लखनऊ में बिरयानी माइल्ड होती है लेकिन अपनी हर एक बाइट में आप अपने मुंह में फ्लेवर को महसूस कर सकते हैं. केवड़ा और केसर लखनऊ बिरयानी की यूएसपी हैं.
हैदराबादी बिरयानी- अगर आप को चटपटी या तीखी बिरयानी पसंद है तो हैदराबादी बिरयानी आपके लिए है. इसमें मसाले के साथ ही गोश्त को पकाया जाता है. और बाद में चावल की परत के ऊपर गोस्त फिर उसपर चावल की परत लगाई जाती है और उसे दम पर लगाया जाता है. चूंकि इसमें मसाले की अधिकता होती है तमाम लोग ऐसे हैं जिन्हें ये खूब पसंद आती है.
मुरादाबादी बिरयानी- मुरादाबादी बिरयानी को लेकर भी लोगों के दो वर्ग हैं एक इसे बिरयानी बताता है जबकि दूसरा इसे पुलाव की संज्ञा देता है. इसमें यखनी में ही चावल को डालकर पकाया जाता है और उसे दम के लिए छोड़ा जाता है. खड़े मसाले और हरी मिर्च इसकी यूएसपी है इसलिए ये कई लोगों को ये बिरयानी इसलिए भी पसंद नहीं आती क्योंकि कई बार खड़े मसाले जैसे लौंग, इलायची, दालचीनी आपको अपने कौर में दिखाई देती है.
कोलकाता बिरयानी- कोलकाता और लखनऊ के खाने में कई समानताएं हैं बावजूद इसके कोलकाता की बिरयानी लखनऊ से अलग है. इसमें स्वाद को बढ़ाने के उद्देश्य से अंडे और तले हुए आलुओं को भोजन करने वाले व्यक्ति की खाली में परोसा जाता है.
थालास्सेरी बिरयानी - केरल स्थित थालास्सेरी बिरयानी देश भर में मिलने वाली बिरयानी से बिल्कुल अलग है. इसमें पहले चावल पकाया जाता है फिर जब कुछ तैयार हो जाता है उसमें चिकेन को रोस्ट करके चावल के ऊपर रख दिया जाता है. इस बिरयानी में करी पत्ते का प्रचुरता से इस्तेमाल होता है इसलिए इस बिरयानी को लेकर लोगों की मिली जुली राय रहती है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिरयानी को इतने भर में सीमित किया जा सकता है. देश भर में बिरयानी है और ऐसे ही देश भर में इसका जायका फैला हुआ है. वो लोग जो फेसबुक पोस्टों से और ट्विटर के ट्वीट से बिरयानी को और उसके बनाने की प्रक्रिया को बच्चों का खेल बता रहे हैं. एक बात गांठ बांध लें बिरयानी बनाना मजाक नहीं है. (भले ही वो वेज या अंडे वाली हो)
बाकी शौकीनों के लिए बिरयानी का क्या महत्त्व है इसे आप किसी भी बड़े या छोटे रेस्त्रां में जाकर समझ सकते हैं. जाइये जाकर बिरयानी आर्डर कीजिये जिस नज़ाकत के साथ इसे आपके सामने परोसा जाएगा वो आपको मंत्र मुग्ध कर देगा. जाते जाते एक बात और हमने ऊपर बिरयानी को एक इमोशन कहा था. तो पूछियेगा उन औरतों से या फिर उन मर्दों से जो अपने पियर ग्रुप में हैं ही मशहूर बिरयानी बनाने के लिए. जब ये बिरयानी बना देते हैं फिर जब इनकी तारीफ होती है तो उस समय जो चमक इनकी आंखों में होती है वो देखने लायक होती है.
इतनी बातों के बाद भी अगर लोग बिरयानी की बुराई में लिप्त है तो फिर उनके इस गुनाह का हिसाब खुद ईश्वर करेगा.
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