उसूलन तो अब RSS और भागवत के आलोचकों को उनसे माफ़ी मांगनी चाहिए
संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को जिस तरह तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया वो ये बताने के लिए काफी है कि अब देश में लोग अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए लगातार हद से नीचे जाते रहेंगे.
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देश में अलग-अलग लोगों द्वारा बयान देना कोई नई बात नहीं है. प्रायः ये देखा गया है कि कुछ बयान देश के लोगों द्वारा इग्नोर कर दिए जाते हैं. तो वहीं कुछ बयान ऐसे होते हैं जिनको देने वाले के व्यक्तित्व के कारण, बेवजह तूल दिया जाता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत भी इस देश की एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके मुख से निलकी बात को कब क्या रुख दे दिया जाए ये कोई नहीं जानता.
संघ प्रमुख एक बार फिर चर्चा में हैं, कारण है संघ और सेना को लेकर उनका ताजा बयान. बीते दिनों संघ प्रमुख बिहार के मुज़फ्फरपुर में थे और वहां उन्होंने एक बयान देते हुए कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिये लड़ने की खातिर आरएसएस के पास तीन दिन के भीतर 'सेना; तैयार करने की क्षमता है. आरएसएस के स्वयं सेवकों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा था कि सेना को सैन्यकर्मियों को तैयार करने में 6-7 महीने लग जाएंगे, लेकिन संघ के स्वयंसेवकों को अगर लिया जाए तो ये तैयारी केवल 3 दिन में पूरी हो जाएगी.
संघ प्रमुख के बयान को जिस तरह तोड़ा गया वो अपने आप में कई प्रश्न खड़े करता है
संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए भागवत का ये भी तर्क था कि, एक पारिवारिक संगठन होने के बावजूद उन्हें संघ में क्षमता नजर आती है. अपनी बात में भागवत ने ये भी कहा कि संघ कोई सैन्य संगठन नहीं है मगर इसके बावजूद वहां मिलिट्री जैसा ही अनुशासन है. सुने पूरी बात और जानें कि भागवत ने क्या कहा
संविधान को सबसे पहले रखते हुए भागवत ने कहा कि अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयंसेवक मोर्चा संभाल लेंगे. संघ प्रमुख का मानना है कि आरएसएस के स्वयंसेवक मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते बलिदान देने को तैयार रहते हैं. भागवत ने कहा कि देश की विपदा में स्वयंसेवक हर वक्त मौजूद रहते हैं. उन्होंने भारत-चीन के युद्ध की चर्चा करते हुए कहा कि जब चीन ने हमला किया था तो उस समय संघ के स्वयंसेवक सीमा पर मिलिट्री फोर्स के आने तक डटे रहे.
भागवत का बयान तोड़ रहे लोगों को सोचना था कि वो किस सन्दर्भ में बयान दे रहे हैं
चूंकि हमने बात की शुरुआत ही इस बात से की थी कि इस देश में "कुछ लोगों" के बयानों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की परंपरा चली आ रही है. और ताजा मामले को देखकर ये कहने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं किया जा सकता कि भागवत भी देश के उन चुनिन्दा "कुछ लोगों" में हैं जिनकी कही बात को तिल का ताड़ बना दिया जा सकता है.
आइये कुछ ट्वीट्स के जरिये ये जानने का प्रयास करते हैं की कैसे संघ प्रमुख भागवत कि बात को लोगों ने अपने रंग में रंगा और फिर उसे अपने कैनवस में पेश किया
Calm urself major... Before reacting over statement which is misquoted by same media, whom u loath n rightly so.As far as sangh contribution is concerned, 1962 war is example wer rss efforts wer recognized, so let's not b victim of click bait n belittle nationalist organization https://t.co/uCXo61Ag3s
— Jemin PANCHAL (@jemin_p) February 12, 2018
Everyday #RSS wants to be under the media limelight, so they come up with absurd comments as such. Mohan Bhagwat is never gonna apologize as he places himself as the god man of this nation. He is just gonna getaway with it like the rest of the Sangh dickheads. #ApologizeRSS
— Veni RN (@iam_veni) February 12, 2018
The clarification is confusing. Why should a cultural organisation be trained by the Indian army? For what purpose? Holy war against "anti-nationals"? https://t.co/5h57oKMG3J
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) February 12, 2018
The RSS Chief's speech is an insult to every Indian, because it disrespects those who have died for our nation.
It is an insult to our flag because it insults every soldier who ever saluted it.
Shame on you Mr Bhagwat, for disrespecting our martyrs and our Army. #ApologiseRSS pic.twitter.com/Gh7t4Ghgon
— Office of RG (@OfficeOfRG) February 12, 2018
This is rich coming from the head of an organisation modelled on European fascists, which has been banned in independent India -- and first, by Sardar Patel after Gandhi's assassination. https://t.co/jpqrhPWmlk
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) February 12, 2018
So the RSS chief seems to suggest that the Sangh would do a better job guarding our borders than the army. Not a very 'nationalistic' thing to say, is it? https://t.co/BLx27N5HrD
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) February 12, 2018
RSS opposed Dandi March and Salt Satyagraha
According to RSS Ideologue Hedgewar’s biography published by the RSS, when Mahatma Gandhi launched the Salt Satyagraha in 1930,he “sent information everywhere that the Sangh will not participate in the Satyagraha. 3/
— Rachit Seth (@rachitseth) February 12, 2018
RSS Boss Bhagwat says what Army takes 6 months to do, RSS can do in 3 days! Bhagwat ji, the RSS collaborated with British&never even fought for independence. It can certainly beat up&kill innocent & unarmed people. Why don't you try fighting at the border? https://t.co/KL83JZLskj
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) February 12, 2018
Let all Indians remember-They vilified Gandhi,They slandered Nehru,They slammed Patel,They attacked Ambedkar.
They didn’t fly the Tricolour for 52 yrs,They don’t admit women to Shakha for 92 yrs.
Now, Sangh insults Army’s valour.
We, the Indians,reject ur DNA of division pic.twitter.com/WwPdW7CBJL
— Randeep S Surjewala (@rssurjewala) February 12, 2018
Mahatma Gandhi, Nehru, 70 years of independence, now even Indian army does not meet with #sangh approval! #MohanBhagwat
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) February 12, 2018
Yes that is one part of the problem. But the major issue is that Sangh elements wish to rewrite the Constitution to create a Hindu Rashtra as Golwaljar & DeenDayal Upadhyaya had advocated. https://t.co/BwRhIrzwuq
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) February 12, 2018
RSS chief Bhagwat says Sangh can prepare its cadres for an armed fight within 3 days whereas army takes 5 to 7 months to combat any conflict situation on the border. Is Indian intelligence aware of this capability?
— M K Venu (@mkvenu1) February 12, 2018
And the CM (Chief Minister) of Bihar has now become the CM of Sangh https://t.co/bSUA6faVc6
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) February 12, 2018
Comrade @vijayanpinarayi puts it strongly on Mohan Bhagwat's statement on the Indian Army and the threat that Sangh poses.#ApologiseRSS pic.twitter.com/wDzax8MzaP
— CPI (M) (@cpimspeak) February 12, 2018
I realise there is a section of the Sangh Parivar that wants to keep the 'Hindu' pot boiling ahead of 2019 but every time I hear a Vinay Katiyar rant against minorities, I fear the BJP loses the crucial 'middle' that is needed to win India. Shameful remarks for a public figure.
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) February 7, 2018
#ApologiseRSS 5/RSS opposed the Indian National Flag
In an editorial published in the RSS mouthpiece, the Organiser, on the eve of India’s independence, the Sangh opposed the tricolour flag, declaring that “it never be respected and owned by the Hindus”.
— Rachit Seth (@rachitseth) February 12, 2018
बहरहाल बात संघ, उनके काम और देश को उनके योगदान पर निकली है तो आपको बताते चलें कि संघ के लोग चाहे रेक्ल हादसा हो या फिर बाढ़, भू संकलन से लेकर युद्ध की स्थिति में संघ सामने आया है और निस्स्वार्थ भावना से उसने देश की हर मुश्किल परिस्थिति में मदद की है. आइये एक नजर डालें संघ के कुछ ऐसे कामों पर जो लोगों के बीच ज़रूर आने चाहिए.
बात जब संघ के कामों की हो रही है तो हमें उसके अच्छे काम भी जानने चाहिए
राष्ट्रवादी विचारों से लैस संगठन
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विश्व के उन गिने चुने संगठनों में हैं जो किसी भी चीज से पहले राष्ट्र और राष्ट्रवाद की बात पर बल देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी देश तब तक मजबूत नहीं बन सकता जब तक वहां के लोघ एकजुट न हों और उनमें देश प्रेम की भावना न हो.
सिर्फ हिन्दू ही नहीं मुसलमान और सिख भी हो सकते हैं संघ के सदस्य
ये बात हर उस व्यक्ति को हैरत में डाल देगी जो ये सोचता है कि संघ में केवल हिन्दुओं के लिए जगह है. जो अब तक ऐसा सोचते चले आ रहे थे उनको जान लेना चाहिए कि संघ में मुसलमान से लेकर सिख तक हर वो व्यक्ति शामिल हो सकता है जिसके अन्दर राष्ट्रवाद, देशभक्ति की भावना हो और जो अखंड भारत की परिकल्पना पर यकीन रखता हो.
संघ ने दादरा और नगर हवेली और गोवा को उपनिवेशवादियों से मुक्त कराया
हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे पता होगा कि दादरा और नगर हवेली और गोवा को उपनिवेशवादियों से मुक्त कराने में संघ की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. आजादी के बाद भी दादरा और नगर हवेली को लेकर कहा जाता था कि ये पुर्तगालियों के कब्जे में है, जिनका संघ ने विरोध किया और उन्हें भगाया. अप्रैल 1954 में, आरएसएस ने राष्ट्रीय आंदोलन मुक्ति संगठन (एनएमएलओ) के साथ एक गठबंधन किया और दादरा और नगर हवेली की मुक्ति के लिए आजाद गोमंतक दल का गठन किया था और इसी के बाद ही दादरा और नगर हवेली को उपनिवेशवाद से मुक्ति मिली. इसी तरह 1955 में ये मांग संघ द्वारा ही उठाई गयी कि गोवा से पुर्तगालियों का शासन समाप्त हो.
कई ऐसे मौके आए हैं जब पूर्व प्रधानमंत्रियों तक ने की है संघ की तारीफ
1962 की जंग के समय पंडित नेहरू ने भी की थी संघ की तारीफ
आज भले ही कांग्रेस, संघ पर बेबुनियाद इल्जाम लगाती हो मगर उसे इतिहास में जाना चाहिए और 1962 के आस पास का समय देखना चाहिए. भारत चीन से युद्ध कर रहा था और संघ था जो उस नाजुक पड़ाव पर देश की मदद कर रहा था. ज्ञात हो कि ये नेहरू के ही प्रयास थे जिसके चलते 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का मौका मिला.
1965 की इंडो पाक वॉर में संघ ने रखा था ट्रैफिक चुस्त दुरुस्त
1965 में भारतीय सैनिक पाकिस्तान से मोर्चा ले रहे थे और इधर संघ निस्स्वार्थ भावना से अपना काम कर रहा था. बताया जाता है कि तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने संघ से आग्रह किया था कि वो आएं और दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था संभालें और संघ ने भी बिना किसी न नुकुर के प्रधानमंत्री की बात मानी और अपनी सेवाएं दीं.
ये कुछ उदाहरण थे ये बताने के लिए कि चाहे संघ हो या कोई और संगठन बात जब देश पर मुश्किल वक़्त की आएगी तो वो आएगा और देश के विकास में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देगा. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करते हैं कि जिस तरह भागवत के बयान के साथ छेड़ छाड़ की गयी वो न सिर्फ निंदनीय है बल्कि ये भी बताने के लिए काफी है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए और अपने समर्थकों के बीच हिट होने के लिए राजनेता किसी भी हद तक जा सकते हैं.
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