कसाब को फांसी दिलवाने वाली लड़की के साथ भी हुआ आतंकी जैसा बर्ताव!
9 साल की देविका ने बैसाखी लेकर भी कोर्ट जाकर कसाब के खिलाफ गवाही दी थी, लेकिन देश की इस हिरोइन के साथ कई लोगों ने आतंकी जैसा बर्ताव ही किया!
-
Total Shares
2008 नवंबर की वो दोपहर जहां 9 साल की देविका बेहद खुश थी और वो शाम जो अपने साथ एक ऐसा दर्द लेकर आई जिसे वो कभी भूल नहीं पाई. देविका 26/11 के हमले में बची सबसे छोटी सर्वाइवर थी. देविका ने अगले कई महीने उस चोट से लड़ने में बिताए जो उसे कसाब द्वारा पैर में गोली मारे जाने पर लगी थी. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर देविका को गोली लगी थी. देविका को पूरे देश में तब जाना गया जब कोर्ट में पब्लिक प्रोसिक्यूटर उज्जवल निकाम ने उसे गवाही देने के लिए बुलाया और कसाब को पहचानने को कहा. बैसाखी लेकर चलते हुए उसकी तस्वीर उस समय लाखों लोगों के दिलों में घर कर गई थी.
इतनी हिम्मत दिखाने के बाद भी नाम मिला 'कसाब की बेटी'-
देविका जब स्कूल वापस पहुंची तो पहले ही दिन उसे पता चला कि स्कूल में उसके कोई दोस्त नहीं बचे हैं. उसे 'कसाब की बेटी' कहा जाने लगा. उसके क्लासमेट उससे दूर हो गए. देविका के अनुसार वो रोते हुए घर वापस आती थीं क्योंकि बाकी लड़कियां उनके साथ खेलती नहीं थीं और उन्हें चिढ़ाती थीं.
देविका को स्कूल बदलना पड़ा, लेकिन नई जगह में एडमीशन मिलना और वहां एडजस्ट करना भी देविका के लिए आसान नहीं था. उसे एक स्कूल ने ये कहकर एडमीशन देने से मना कर दिया कि उसकी इंग्लिश ठीक नहीं है. पर असल में लोग इसलिए डर रहे थे क्योंकि देविका ने एक आतंकवादी की पहचान की थी. इसके बाद नए स्कूल में भी कई लोग उससे डरते थे क्योंकि उसका नाम किसी आतंकवादी से जुड़ गया था.
देविका बैसाखी लेकर कसाब के खिलाफ गवाही देने पहुंची थीं. (दाएं) देविका की अभी की तस्वीर
उस समय तक देविका के रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी तक उससे दूर रहने लगे थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं किसी आतंकी संगठन की नजर उनपर न पड़ जाए. जब तक केस चला तब तक देविका के घर पर कई बार धमकी भरे कॉल आए. देविका के पिता काफी चिंतित थे, लेकिन कुछ भी देविका की सोच को तोड़ नहीं पाया.
आज देविका बांद्रा के एक छोटे से कमरे में अपने पिता और दो भाइयों के साथ रहती है. वो 19 साल की हो गई है. देविका के पिता मजदूरी करते हैं और किसी तरह अपने बच्चों को पाल रहे हैं. उनके घर में एक सिंगल बेड है जिसमें पूरा परिवार सोता है और साथ ही साथ उस घर में थोड़े से बर्तन हैं और एक छोटा पुराना टीवी.
देविका 11वीं में है और उसका सपना है कि वो IPS बने. उसे खुशी है कि कसाब को फांसी दे दी गई, लेकिन उसके हिसाब से अभी बहुत कुछ बाकी है करना. 'मैं जानती हूं कि उसे मरना था, उसने काम ही ऐसा किया था, लेकिन सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए ताकि वो आतंकवाद को रोक सके. मैं समाज में शांति लाना चाहती हूं. कसाब समुद्र की एक छोटी मछली की तरह था मैं पूरे समुद्र को साफ करना चाहती हूं. आतंकवादियों को मारने की जगह आतंकवाद को खत्म करने के बारे में सोचना चाहिए'. HT को दिए एक इंटरव्यू में देविका ने कहा.
मदद नहीं बीमारी मिली..
देविका और उसके घरवालों की मदद को लेकर पहले सरकार और सामाजिक संस्थाओं ने तमाम दावे किए, लेकिन किसी ने कोई सहायता नहीं की. साल दर साल देविका के परिवार के हालात बिगड़ते गए। उसे टीबी हो गया और वह गंभीर हालत में संघर्ष करती रही. देविका के इलाज के दौरान उसका भाई जयेश भी संक्रमित हो गया और उसका भी ऑपरेशन हुआ.
पिता का अच्छा-खासा बिजनेस हो गया ठप्प..
देविका के पिता नटवरलाल रोटावन का दक्षिण मुंबई के कलबादेवी इलाके में ड्रायफ्रूट का बिजनेस था. अच्छा-खासा बिजनेस चल रहा था, लेकिन लोगों ने आतंकियों के डर से पहले उनके साथ कारोबार करना कम किया फिर पूरी तरह से बंद कर दिया. इस कारण ड्रायफ्रूट का बिजनेस भी ठप्प हो गया. यही कारण है कि देविका के घर की हालात बिगड़ती चली गई. अच्छा खासा हंसता-खेलता परिवार उस गवाही के कारण तबाह हो गया जिसके लिए देविका पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए. आतंकवादी ने तो देविका पर गोली चलाई थी, लेकिन उसके बाद भारतीयों ने भी उनपर कई बार वार किया.
क्या हुआ था 26 नवंबर 2008 को देविका के साथ?
देविका अपने पिता और छोटे भाई के साथ पुणे जा रही थी अपने बड़े भाई से मिलने जो वहां काम करता है. तभी उसे ऐसी आवाज़ आई जैसे कोई पटाखे फोड़ रहा हो. लोग भागने लगे. उनका भाई बाथरूम में था जब बंदूकधारी आए और गोलियां चलाने लगे. उनके पिता ने उन्हें भागने को कहा, लेकिन उन्हें अपने पैर में बेहद दर्द महसूस हुआ. उन्हें दाएं पैर में गोली लगी थी और खून बह रहा था. कुछ सेकंड के अंदर ही वो गिर गईं. हमले के दो महीने बाद तक देविका जेजे अस्पताल में थीं. उनका कई बार ऑपरेशन हुआ था. पुलिस कई बार आई, लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि देविका गवाही दें, लेकिन फिर वो मान गए.
देविका जब कोर्ट में पहुंची तो उज्जवल निकाम ने उनसे पूछा कि किसने उन्हें गोली मारी. तब देविका ने कसाब की ओर उंगली दिखाई. देविका की गवाही के बाद कसाब को फांसी तो हुई, लेकिन उनके या उनके परिवार तक कोई मदद नहीं पहुंच पाई. वो अभी भी जिंदा रहने के लिए रोज़ जंग कर रहे हैं. पिछले एक दशक में देविका ने कई न्यूजचैनलों में बातें की, लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया. न ही किसी ने देविका की पढ़ाई का जिम्मा उठाने की ही कोशिश की.
देविका अक्सर सीएसटी जाती हैं और कई बार उस जगह भी खड़ी होती हैं जहां उन्हें गोली मारी गई थी. वो कई बार वहां जाकर आंखें बंद कर लेती हैं. वो अपने आप से और अपनों से किया गया वादा निभाना चाहती हैं जहां वो अपने पिता और भाइयों के लिए बेहतर जिंदगी की उम्मीद कर रही हैं और इसी लिए मेहनत कर रही हैं.
26/11 यानी मुंबई का वो हमला जिसने 164 लोगों को काल के गाल में समेट दिया था, लेकिन ऐसे माहौल में भी एक जांबाज़ लड़की ने अपनी हिम्मत के कारण इतनी आगे बढ़ पाई और उसके साथ लोगों ने क्या किया ये सोचने वाली बात है.
ये भी पढ़ें-
आपकी राय