ढोंग से बढ़कर कुछ नहीं है 500 क्विंटल लकड़ी जलाकर 'प्रदूषण रोकना'
पर्यावरण बचाने को लेकर मेरठ में जो हो रहा है वो न एक गहरी चिंता का विषय है बल्कि ये भी बताने के लिए काफी है कि आज लोग धर्म की आड़ में क्या से क्या कर रहे हैं.
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कहानियां सुनना किसे नहीं पसंद. कहानियां जहां एक तरफ मनोरंजन करती हैं तो वहीं इनसे कहीं न कहीं जीवन जीने की सीख मिलती है. याद करिए अपने बचपन को आपने भी एक कहानी अवश्य पढ़ी या सुनी होगी. कहानी में एक लकड़हारा और कुछ लोग थे. अब ये तो ईश्वर ही बेहतर जानें कि कहानी में जो लकड़हारा था वो या तो मूर्ख था या फिर बहुत भोला. ऐसा इसलिए क्योंकि वो जिस डाल पर बैठा था उसी को काट रहा था.
आते जाते लोग उस अक्ल के कच्चे लकड़हारे को देखते, उसकी मूर्खता पर हंसते और उसे ताने मारते. यूं तो ये एक बेहद पुरानी कहानी है मगर जो उत्तर प्रदेश के मेरठ में हो रहा है उसको देखकर लग रहा है कि कहानी एक बार फिर अपने को दोहरा रही है बस इसबार कहानी ने अपना पात्र और स्वरूप पूर्व के मुकाबले थोड़ा बदल लिया है.
मेरठ में प्रदूषण रोकने के नाम पर जो हो रहा है वो अपने आप में एक अनूठा इवेंट है
खबर है कि उत्तर प्रदेश के मेरठ में अपनी तरह का एक अनोखा आयोजन किया जा रहा है. यहां एक नौ दिन का महायज्ञ हो रहा है और इस महायज्ञ का उद्देश्य दूषित हवा को साफ करना और वायु प्रदूषण को कम करना है. दूषित हवा कैसे साफ होगी और लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण कैसे कम होगा इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है मगर इस इवेंट के आयोजकों ने जो किया उसने कई मायनों में देखने वालों को आश्चर्य में डाल दिया. इस महायज्ञ में 500 क्विंटल आम की लकड़ियों को गाय के घी से जलाकर लोगों को प्रदूषण से निजात दी जाएगी.
गौरतलब है कि इस महायज्ञ का आयोजन अयुतचण्डी महायज्ञ समिति करा रही है. बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए समिति ने हिन्दू धर्म का हवाला दिया है और कहा है कि,'हिंदू धर्म में मान्यता है कि आम की जलती हुई लकड़ी पर गाय का घी डाला जाए तो इससे हवा साफ और निर्मल होती है.' खैर अभी तक समिति द्वारा कही इस बात पर कोई शोध नहीं हुआ है अतः उनकी बात कितनी सही है या गलत इसके कोई खास प्रमाण नहीं है.
मामले के मीडिया में आने के बाद उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसका संज्ञान तो लिया. मगर किसी भी कार्यवाई से ये कहकर पल्ला झाड़ दिया कि अगर बोर्ड इसपर कुछ कदम उठाता है तो इससे लोगों की भावनाएं आहत होंगी. हालांकि इस महायज्ञ के सिलसिले में बोर्ड के अधिकारियों का मत हाई कि,' भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से प्रदूषण बढ़ेगा ही कम नहीं होगा.'
तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब अधिकारी इस बात से अवगत थे कि भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से प्रदूषण कम होने के बजाए बढ़ेगा तो इतनी भारी मात्रा में लड़की जलाने की इजाजत उन्होंने क्यों और कैसे दी? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मामले पर अधिकारियों ने चुप्पी सिर्फ इसलिए साधी क्योंकि वो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नाराज करके उनकी हिट लिस्ट में नहीं आना चाहते थे.
अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि 500 क्विंटल लकड़ी जलाने से प्रदूषण कितना कम होगा ये तो आने वाला वक़्त बताएगा मगर पर्यावरण की सुरक्षा के नाम पर जो महायज्ञ कराने वाली समिति ने किया उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि ये बेचारे जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं. ऐसे में जाहिर है कि आते जाते लोग इनकी हरकत देखकर या तो अफ़सोस करेंगे या फिर इनपर और इनकी बुद्धि पर हंसेंगे.
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