'राम-कृष्ण चिलम नहीं फूंकते थे, तो ये साधू क्यों?'
प्रयागराज में चल रहे कुम्भ की प्रतिनिधि तस्वीरों में चिलम फूंकते साधू आम हैं. इसी से आहत बाबा रामदेव ने एक सवाल खड़ा किया है और उससे निजात पाने की कोशिश भी की है.
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इन दिनों प्रयागराज में कुंभ चल रहा है. देशभर से साधू-महात्मा यहां पधारे हैं और गंगा में स्नान कर रहे हैं. योग गुरु बाबा रामदेव भी यहां पहुंचे हैं और वह साधू-संतों से एक खास दान मांग रहे हैं. वे दान मांग रहे हैं उनकी चिलम का. दरअसल, योग गुरु बाबा रामदेव कुंभ में नशा मुक्ति का अभियान लेकर पहुंचे हैं और संत-महात्माओं से नशा छोड़ने की गुहार लगा रहे हैं. अगर आप कभी प्रयागराज जाएं, या वहां का नजारा तस्वीरों या वीडियो में देखें तो चिलम फूंकते साधू दिख जाना आम बात है. हालांकि, ये तस्वीर बाबा रामदेव को आहत करती है, इसलिए वह इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
कुंभ पहुंचे बाबा रामदेव ने कहा- 'हम राम और कृष्ण की भक्ति करते हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया, तो हम ऐसा क्यों करते हैं? हमें धूम्रपान छोड़ने का प्रण लेना चाहिए. हम साधुओं ने अपना घर, माता-पिता और सब कुछ एक महान काम के लिए छोड़ दिया तो फिर हम धूम्रपान क्यों नहीं छोड़ सकते हैं? मैं तो युवाओं से तंबाकू छोड़ने को कहता हूं तो फिर महात्माओं से क्यों नहीं कहूंगा.' बाबा रामदेव ने तो ये भी कहा है कि संतों की जो चिलम वह इकट्ठा कर रहे हैं, उन्हें म्यूजियम में रखा जाएगा, जिसका निर्माण खुद बाबा रामदेव ही करेंगे. कुंभ में संत अपनी चिलम बाबा रामदेव को खुशी-खुशी दे भी रहे हैं.
बाबा रामदेव कुंभ मेले में संतों से धूम्रपान छोड़ने की गुहार लगा रहे हैं.
लेकिन, बाबा रामदेव जो उदाहरण देकर साधुओं से चिलम छोड़ने का आग्रह कर रहे हैं, उसी में थोड़ा पेंच है. वे कह रहे हैं कि भगवान राम और कृष्ण ने चिलम नहीं फूंकी तो आप क्यों ऐसा करते हैं? तो इसका तर्क ये है कि राम और कृष्ण वैष्णव थे. जबकि साधू-संन्यासियों की बात की जाए तो इनका खेमा दो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक वैष्णव साधू हैं और दूसरे हैं शैव साधू. वैष्णव साधू भगवान राम, कृष्ण और विष्णु की पूजा करते हैं, जिन्हें आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है. वहीं दूसरी ओर शैव साधू भगवान शिव की आराधना करते हैं. इन्हें नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, सिद्ध बाबा आदि कहा जाता है. शैव साधु तामसिक आहार-विहार के लिए जाने जाते हैं. जिनमें धूम्रपान एक है. शैव साधुओं में जटा रखना, कपड़े न पहनना और शरीर पर भभूत लगाना आम बात है.
अब अगर बाबा रामदेव की बात पर गौर करें तो ये साफ हो जाता है कि उनका आशय वैष्णव साधुओं से है. हालांकि, बाबा रामदेव ने जो कदम उठाया है, उसके बारे में अभी तक किसी ने सोचा भी नहीं था. आम जनता को तो सरकार की तरफ से अनेकों मौकों पर धूम्रपान का नुकसान बताया जाता है, लेकिन साधुओं को कोई भी धूम्रपान से होने वाले नुकसान के बारे में नहीं बताता. किसी साधू को देखते ही मन में सिर्फ एक ही ख्याल आता है कि ये भगवान की आराधना करने वाले साधक हैं और भगवान समतुल्य हैं, इसीलिए हर कोई उनका आशीर्वाद लेना चाहता है. लेकिन साधुओं की धूम्रपान की बुरी लत छुड़ाने का बीड़ा बाबा रामदेव ने उठाया है, ताकि इस तबके को भी धूम्रपान से मुक्त किया जा सके. खैर, जो साधू रोज चिलम पीते हों उन्हें तो एक लत सी लग गई होगी, जिसका छूटना काफी मुश्किल है, लेकिन बाबा रामदेव की कोशिश सराहनीय है. सारे ना सही, कुछ साधुओं की धूम्रपान की लत तो वह छुड़वा ही देंगे.
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