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Updated: 20 दिसम्बर, 2016 12:59 PM
महेश तिवारी
महेश तिवारी
  @mahesh1197
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देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और बदलते परिवेश को देखते हुए शराबबंदी का फैसला उचित है. शराब की लत आज के युवाओं को अपनी जद्द में जकड़ती जा रही है. जिससे हमारी युवा पीढ़ी अपनी सामाजिक और नैतिक जिम्मेवारियों से दूर होती जा रही है. जो की एक स्वच्छ सामाजिक वातावरण के लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता है. जब देश का युवा ही अपनी डगर से भटक जायेगा फिर तो देश की दिशा और दशा ही अपने पथ से अलग हो जाएगी. देश में बढ़ती सड़क हादसों की संख्या को देखते हुए यह फैसला बहुत पहले लेने की जरूरत थी, लेकिन अगर समय रहते इस और ध्यान दिया जा रहा है, तो यह फैसला स्वागतयोग्य माना जा सकता है.

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आंकड़ों के मुताबिक देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में कुछ हिस्सा शराब का कारण भी होता है. आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009 में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं विश्व के सापेक्ष भारत में ही हुई हैं. राजधानी और अन्य प्रदेशों की राजधानियों में सड़क दुर्घटनाओं का स्तर पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ा है. जिसको देखते हुए यह कदम उठाना नितांत जरुरी हो गया था. वर्ष 2014 में राष्ट्रीय राज्यमार्गों पर लगभग 2 लाख 37 हजार दुर्घटनाएं हुईं और जिसमे लगभग 85 हजार निर्दोष लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा. केवल कुछ अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को भूलने की वजह से फिर ऐसी जागरूकता किस काम की कि सरकार के तमाम जतन के बावजूद लोग अपनी जान बचाने के प्रति सचेत क्यों नहीं होते.

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 आंकड़ों के मुताबिक देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में कुछ हिस्सा शराब का कारण भी होता है.

भारत में प्रत्येक चार मिनट में एक सड़क दुर्घटना होती है. जिसे देखते हुए टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों वाली कमेटी ने कहा कि मानव जीवन कीमती है उसे बढ़ते सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक विकास के बीच आम लोगों की जिन्दगी बचाने का अथक प्रयास करना चाहिए जिससे की भारत को दुर्घटनाओं की राजधानी बनने से बचाया जा सके. उनका यह वाक्य सही अर्थों में देश को अनुसरण करने योग्य है, क्योंकि देश में नशे की लत की वजह भारत में सड़क दुर्घटनाओं की फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है. जिसके लिए जिम्मेदार भी आम नागरिक ही है जो सड़क परिवहन के नियमों की धज्जियां उड़ाने में बाज नहीं आते और सभी नियमों को धत्ता साबित करते हैं. फिर भी उच्च न्यायलय ने जिस तरीक़े से मामले को संज्ञान में लिया वह काबिलेतारीफ है और यह दर्शित करता है कि व्यवस्था की कार्यप्रणाली अपनी सामाजिक उपदेयता के प्रति वफादार है. और समाज के प्रति अपने जिम्मेदारियों को लेकर सजग है.

नशा जीवन को नाश करता है, इसी को ध्यान रखते हुए न्यायालय ने यह प्रयास किया है. जिसको लेकर सरकार को अपनी प्राथमिकता को तय करनी होगी. इसके साथ ही साथ लोगों को भी अपने जीवन के प्रति न्यायालय के कदम उठाने के बाद जरूर सोचना होगा. अगर आम आदमी सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे पर सचेत हो जाए तो उनके साथ साथ देश का भी कल्याण हो जाए, लेकिन सामाजिक अर्थ के साथ वर्तमान में लोगों का झुकाव भी अन्यत्र हो चुका है.

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 न्यायालय ने जिस तरीके से पंजाब सरकार को शराब लॉबी को लेकर जवाब तलब किया, वह भी गौर करने के काबिल है. 

सड़क परिवहन के विकास के साथ अब सरकार को ही सामाजिक जिम्मेदारी को उठाते हुए न्यायालय के बात पर अमल करना चाहिए, क्योंकि 2015 में प्रति घंटे 57 दुर्घटनाओं में से 17 की मौत होती है. पिछले वर्ष के आंकड़ों के मुताबिक एक लाख 46 हजार लोगों की मौत हुईं. न्यायालय ने जिस तरीके से पंजाब सरकार को शराब लॉबी को लेकर जवाब तलब किया, वह भी गौर करने के काबिल है. न्यायालय ने हाईवे के दोनों तरफ के 500 मीटर तक शराब की दुकानों को बैन करने की बात कही है. साथ ही साथ 31 मार्च 2017 के बाद लाइसेंस रद्द करने की बात भी उठाई है, जो सामाजिक परिदृश्य के लिहाज से उचित भी कहा जा सकता है.

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सरकार को शराब बंदी के लिए कठोर कदम उठाना होगा. शराब बंदी केवल राष्ट्रीय राज्यमार्गो के अलावा सार्वजनिक क्षेत्रों में भी लागू करना होगा, साथ ही साथ लोगों का सहयोग भी मिलना जरूरी है. सरकार की नीतियों को सही डगर पर ले जाना ही उचित समाधान होगा. बिहार और गुजरात जैसे राज़्यों के तहत अगर कार्य होगा फिर स्थिति में बदलाव की सम्भावना कम ही होगी. नश जीवन को नाश करता है इसे जीवन से दूर ही करना होगा. जिसके लिए नियमों का पुलिंदा तैयार करने से भला नहीं होगा. सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार को कड़े नियम बनाने के साथ उसको पालन करवाने के लिए जनता का कारवां जब तक नहीं चलेगा सड़क दुर्घटनाओं पर काबू नहीं पाया जा सकता है. लोगों को अपनी जिन्दगी के प्रति सचेत होना पड़ेगा. तभी फायदा होता दिखाई देगा. सरकार अपना काम करें, और जनता को भी अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहना पड़ेगा.

लेखक

महेश तिवारी महेश तिवारी @mahesh1197

लेखक पत्रकार हैं

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