तलाक के बाद क्या पत्नी ही मोहताज होती है? पति को भी है गुजारे-भत्ते का हक!
तलाक के मामले में जो कुछ भी कोर्ट ने पति के साथ किया है वो भले ही सुनने वालों को हैरत में डाल दे लेकिन इसकी सराहना इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि अब तक जैसा देखा गया था कि जब जब तलाक हुआ मुआवजा या गुजाराभत्ता हमेशा [पुरुषों ने ही दिया.
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विदेशों में तलाक कॉमन भी है और कूल भी. लेकिन जब बात हिंदुस्तान जैसे देश की हो तो यहां चूंकि विवाह कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं बल्कि एक संस्था है. इसलिए चाहे स्त्री हो या पुरुष बात कितनी भी क्यों न बढ़ जाए प्रयास यही रहता है कि शादी बचाली जाए. ऐसा क्यों होता है इसकी एक बड़ी वजह तलाक के बाद दिया जाने वाला गुजाराभत्ता या मुआवजा भी है. जिक्र मुआवजे का हुआ है तो अब तक का जैसा दस्तूर रहा है जो मामले हमने देखे हैं प्रायः उनमें पुरुष ही मुआवजा देते हुए नजर आए हैं. तो क्या ये यूं ही चलेगा? क्या तलाक मामलों में हमेशा पुरुष ही मुआवजा देगा? माकूल जवाब बॉम्बे हाई कोर्ट ने दे दिया है. अपनी तरह के एक अनोखे फैसले के कारण बॉम्बे हाई कोर्ट सुर्खियों में है. कोर्ट में तलाक का एक मामला आया था जहां पूर्व पति की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने महिला से कहा है कि वो पति को गुजाराभत्ता दे. महिला क्योंकि टीचर है इसलिए वह जिस स्कूल में पढ़ाती है, कोर्ट ने उसे भी निर्देशित किया है कि वह हर महीने महिला की सैलरी से 5 हजार रुपये काट कर उसे कोर्ट में जमा करवाए.
तलाक पर जो फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया और जिस तरह कोर्ट ने पुरुष की बात सुनी वो कई मायनों में ऐतिहासिक है
दरअसल ये सब हुआ है महाराष्ट्र के नांदेड़ में. जहां स्थानीय अदालत ने महिला को अपने पूर्व पति को हर महीने 3,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. स्थानीय अदालत के इस फैसले के खिलाफ महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और अब उस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा है.
मामले के मद्देनजर जो जानकारी आई है उसके अनुसार 17 अप्रैल 1992 को दोनों का विवाह संपन्न हुआ था. दोनों की शादी को कुछ ही साल हुए थे और घरेलू कलह की शुरुआत हो गई. बाद में महिला ने क्रूरता को आधार बनाया और शादी को भंग करने की मांग की जिसे 2015 में स्थानीय कोर्ट से भी मंजूरी मिल गयी.
चूंकि दोनों का तलाक हो गया था महिला का पति नांदेड़ की निचली अदालत की क्षरण में आया और उसने एक याचिका दायर की. याचिका में व्यक्ति ने इस बात का जिक्र किया कि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. अपनी याचिका में व्यक्ति ने पत्नी की नौकरी को मुद्दा बनाया और मांग की कि पत्नी हर माह 15,000 रुपये उसे स्थायी गुजारे भत्ते के रूप में दे. अपनी याचिका में पति ने ये तर्क भी दिया था कि उसके पास किसी तरह की कोई जॉब नहीं है नौकरी नहीं है जबकि उसकी पत्नी पढ़ी लिखी है.
याचिका में पति के तर्क काफी रोचक हैं!
तलाक के मद्देनजर जो याचिका व्यक्ति ने कोर्ट में दायर की उसमें गुजारा भत्ता पाने के लिए जो तर्क उसने दिए हैं वो खासे रोचक हैं. याचिका में व्यक्ति ने इस बात का जिक्र किया है कि उसने पत्नी को पढ़ाने में अपना काफी योगदान दिया है. वहीं उसने इस बात पर भी बल दिया कि पत्नी पढ़ लिख सके इसके लिए उसने अपनी अपनी कई महत्वाकांक्षाओं को किनारे किया और अकेले ही घर का दारोमदार संभाला. वहीं उसने ये दलील भी दी कि इन सब कारणों के चलते उसकी तबियत ठीक नहीं रहती इसलिए जीवन चल सके उसे गुजाराभत्ता दिया जाए. मामले में दिलचस्प तथ्य ये भी है कि महिला 30 हजार रूपये कमाती है.
वहीं पति की याचिका पर महिला ने भी जबरदस्त काउंटर दिया था. महिला का कहना था कि उसकी आय पर उसकी बेटी निर्भर ैहै. वहीं महिला ने ये भी बताया था कि पति के पास किराने की दुकान और ऑटो रिक्शा है इसलिए उसकी गुजारे भत्ते की मांग ख़ारिज की जानी चाहिए.
पति की दलीलों के बाद निचली अदालत ने साल 2017 में आदेश दिया कि महिला को अपने पति को 3,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान करना होगा. बात वर्तमान की हो तो कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 का हवाला दिया जिसमें बेसहारा पत्नी या पति के लिए गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है.
बहरहाल ये अपनी तरह का एक अनोखा मामला है और इसलिए भी विचलित करता है क्योंकि अब तक हमने तलाक के किसी भी मामले में पुरुष को ही गुजाराभत्ता देते देखा है कहीं न कहीं कोर्ट ने एक नयी पहल को अमली जामा पहनाया है और इसकी तारीफ होनी चाहिए.
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