विवाहित महिला से घर के काम करवाना क्रूरता नहीं, नौकरानी से तुलना नहीं कर सकते- बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा है कि, विवाहित महिला को घर का काम करने के लिए कहने का मतलब क्रूरता नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि महिला के साथ नौकरानी जैसा व्यवहार किया जाता है...क्या आप इस बात से सहमत है?
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बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) का कहना है कि "विवाहित महिला (Married woman) से घर का काम करने के लिए कहना क्रूरता नहीं है. अगर वह अपने परिवार के लिए काम करती है तो इसका यह मतलब नहीं है कि उसके साथ नौकरानी (Maid) जैसा व्यवहार किया जा रहा है. अगर उसे घर का काम करना पसंद नहीं था तो शादी से पहले ही बता देना चाहिए था, ताकि वे शादी से पहले सोच समझकर विचार कर लेते. अगर यह शादी के बाद की बात है तो अब तक इसका समाधान हो जाना चाहिए था."
पहली बात तो यह है कि, भले ही घर का काम कराना क्रूरता नहीं है मगर इस तरह बहू को नौकरानी जरूर बनाया जा सकता है. अदालत ने पति से क्यों नहीं पूछा कि तुम घर संभालने में अपनी पत्नी का कितना हाथ बटाते हो? शादी से पहले तुमने क्यों नहीं बताया कि तुम्हें घर संभालना नहीं आता. कोर्ट ने इनडायरेक्टली तरीके से घर की महीला को नौकरानी ही तो बताया है.
विवाहित महिला से घर का काम करने के लिए कहने का मतलब यह नहीं है कि उसके साथ क्रूरता की जा रही है
दूसरी बात यह है कि घऱ की नौकरानी भी किसी घर की महिला है. मगर उससे बहू की तुलना की भी नहीं जा सकती, क्योंकि नौकरानी को तो महाने के अंत में काम के बदले पैसे मिलते हैं मगर बहू तो परिवार के लिए मुफ्त में काम करती है, क्योंकि यह उसका फर्ज माना जाता है.
दरअसल, औरंगाबाद खंडपीठ के न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति राजेश एस पाटिल की खंडपीठ धारा 482 के तहत एक आवेदन पर विचार कर रही थी. पीड़ित महिला ने अपनी शिकायत में कहा था कि "शादी के एक महीने तक उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया. फिर उसे घरेलू सहायिका के रूप में देखा जाने लगा. उसके पति के परिवार ने कार खरीदने के लिए 4 लाख दहेज की मांग की. जब मांग पूरी नहीं हो पाई तो उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और उसे मारा-पीटा गया."
इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि महिला ने केवल इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, मगर उसने कथित मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का विवरण नहीं दिया है. ऐसा लग रहा है कि महिला की तरफ से जानबूझकर बातों को साफ नहीं रखा गया है. सबूत यह नहीं दिखाते हैं कि पत्नी अपने माता-पिता के घर क्यों गई? अगर महिला पर कथित हमला हुआ तो रिपोर्ट दर्ज करने के लिए वह दो महीने से अधिक समय तक चुप क्यों रही? इतना कहने के बाद कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498 ए के तहत पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया.
क्या आप कोर्ट के फैसले से सहमत हैं?
क्या एक महिला तभी आदर्श मानी जा सकती है जब उसे घऱ का काम आता हो. जब इसे खाना बनाना आता हो, जब उसे रसोई संभालने आती हो. बिना इन गुणों के क्या किसी महिला को कोई मोल नहीं? हो सकता है कि वह गृहस्थी संभालने के अलावा वह किसी औऱ गुण में निपुण हो तब? कहने को तो हम मॉडर्न युग में जी रहे हैं मगर आज भी एक महिला की पहचान घर के काम करने से है. क्या इस फैसले से समाज की दूसरी महिलाओं पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा?
"If a married lady is asked to do household work definitely for the purpose of the family, it cannot be said that it is like a maid servant. If she had no wish to do her household activities, then she ought to have told it prior to the marriage" : Bombay HC (Aurangabad Bench)
— Live Law (@LiveLawIndia) October 27, 2022
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