कैशलेस सोसाइटी के साथ 'शेमलेस' समाज भी
31 दिसम्बर की रात या कहें की साल 2017 की शुरुआत ही ऐसी घटना से हुई जो पूरे समाज को शर्मशार करने के लिए काफी है. महिलाओं को लेकर देश में कितने इंतजाम हैं इसकी पोल तो आंकड़े खोल रहे हैं, फिर हम कैशलेस हो रहे हैं या 'शेमलेस'?
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आज भारतीय सोसाइटी को कैशलेस होने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है, देश कैशलेस होने की दिशा में बढ़ भी रहा है. यहाँ तक तो ठीक था मगर हमारा समाज जिस तेजी से 'मूल्यविहीन' होता जा रहा है वो काफी चिंतनीय है. 31 दिसम्बर की रात या कहें की साल 2017 की शुरुआत ही ऐसी घटना से हुई जो पूरे समाज को शर्मशार करने के लिए काफी है. बैंगलोर में नए साल का जश्न मनाने गईं कई लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटना सामने आई. इस घटना के बाद पुलिस और नेताओं के रुख और भी संवेदनहीन रहे जहाँ ऐसी ख़बरें आईं कि कई मामलों में पुलिस ने पीड़िताओं के मामले दर्ज करने में भी आनाकानी की तो वहीं कुछ नेताओं ने इस तरह की घटनाओं के लिए लड़कियों के कपड़ों को जिम्मेदार ठहरा दिया. वहीं, इन घटनाओं के बाद देश की राजधानी दिल्ली से भी उसी दिन छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आईं.
आंकड़ों को देखें तो 2012 से अभी तक महिलाओं के खिलाफ अपराध 4 गुना बढ़ गए हैं |
हर बार ऐसी किसी घटना के बाद कई तरह के वादे किए जाते हैं, महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के दावे किए जाते हैं मगर इस तरह की घटनाओं में कोई कमी आई हो ऐसा नहीं लगता. 16 दिसम्बर 2012 की घटना ने उस वक़्त पूरे भरत को हिला कर रख दिया था, दिल्ली की बदनामी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो चुकी थी, लोगों में इस घटना को लेकर जबरदस्त गुस्सा था. महिलाओं के लिए हालात बेहतर हों इसके लिए कई उपाय भी किए गए, मगर इन उपायों का असर क्या हुआ ये कुछ आंकड़ों से पता चल जाएगा. साल 2012 में जहाँ दिल्ली में बलात्कार के 706 मामले दर्ज किये गए थे तो वहीं ये आकड़ें 2013 में दोगुने से भी ज्यादा 1636 तक पहुँच गए. 2013 के बाद भी बलात्कार के मामले में जबरदस्त वृद्धि देखी गई जहाँ साल 2014 में यह आकड़ें 2166 तक पहुँच गए तो 2015 में बलात्कार के 2199 मामले दर्ज किये गए. ये आकड़ें अपने आप में सारी कहानी बयां करने के लिए काफी हैं कि नारी सुरक्षा के नाम पर किए गए तमाम उपाय कितने कारगर रहे हैं.
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इस तरह कि घटनाएं जहाँ एकतरफ सरकार के सुरक्षा इंतजामों की पोल तो खोलते ही हैं साथ ही समाज की उस तस्वीर को भी पेश करते हैं जहाँ नित्य ही हमारे नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है. आज उस भारतीय संस्कृति का ह्वास होता जा रहा है जहाँ महिलाओं का सम्मान मूल में होता था, उसी देश में आज महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं. ये हमारे मूल्यविहीन समाज की ही झलकी है जहाँ आज देश के अधिकतर शहर महिलाओं के लिए असुरक्षित माने जाने लगें हैं. बैंगलोर जो कभी काफी शांत शहर मन जाता था में भी हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध में बेतहाशा वृद्धि देखी गई है. एक और बात जो ऐसी घटनाओं के बाद अक्सर सुनने को मिलती है वो है महिलाओं के पहनावे को लेकर, अगर वाकई इन घटनाओं का पहनावे से कोई लेना देना होता तो गांव में या मासूम बच्चियों के साथ इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए थी. या विदेशों में जहाँ कपड़ों को लेकर काफी खुलापन होता है में आए दिन इस तरह की घटनाएं होनी चाहिए थीं मगर वहां भारत के मुकाबले इस तरह कि कम ही घटनाएं होती हैं. इस तरह की घटना को अंजाम देने वाले विकृत मानसिकता से पीड़ित लोग होते हैं जो समाज में आ रहे नैतिक पतन के कारण पनप रहे हैं.
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ये सही है कि सुरक्षा के बेहतर इंतजाम कर सरकार इस तरह कि घटनाओं में कमी ला सकती है, मगर इन घटनाओं को रोकने के लिए हमें अपने युवाओं में नैतिक मूल्यों की तरफ मोड़ना होगा क्योंकि बिना उसके इस तरह की घटनाएं रोकना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन प्रतीत होता है.
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