सस्ते स्मार्टफोन और इंटरनेट ने हर हाथ में पोर्न पहुंचा दिया है
गूगल सर्च कीवर्ड में "भारतीय लड़कियों के साथ बलात्कार", "रेपिंग वीडियो", "रेपिंग स्टोरी", "पब्लिक में रेप", "छोटी लड़की से बलात्कार", "माँ से बलात्कार", "बेटी का बलात्कार करने वाला पिता" और "रेप्ड टू डेथ" शामिल थे.
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15 अप्रैल, 2013 को एक कपड़े की फैक्टरी में काम करने वाले मनोज शाह और उसके साथी प्रदीप कुमार ने पूर्वी दिल्ली में अपने पड़ोसी की पांच वर्षीय बेटी का अपहरण और बलात्कार करने की बात को स्वीकार किया. मनोज की उम्र उस वक्त 22 साल थी और प्रदीप 19 साल का था. पुलिस हिरासत के दौरान उन दोनों ने ये भी बताया कि इस घिनौनी घटना को अंजाम देने के पहले उन्होंने अपने स्मार्टफोन पर पॉर्न देखा था.
इसके पहले कंप्यूटरों या डीवीडी प्लेयरों के साथ-साथ लोगों के पास निजी स्थानों की उपलब्धता सीमित थी. लेकिन पिछले दशक में अश्लील साहित्य की खपत में खतरनाक वृद्धि देखी गई है, साथ ही सस्ते स्मार्टफ़ोन और इंटरनेट के आ जाने से पोर्नोग्राफी हाथों हाथ ही मौजूद हो गया है.
इसे पढ़ें: इस मार्च की एक रिपोर्ट में, इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने कहा है कि जून 2018 तक देश में मोबाइल इंटरनेट के 478 मिलियन उपयोगकर्ता होंगे. मोबाइल का मुख्य रूप से उपयोग 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं द्वारा किया जाता है. ये आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 46 प्रतिशत और गांवों में 57 प्रतिशत है. आईएएमएआई का अनुमान है कि भारतीय शहरों में मोबाइल इंटरनेट की पहुंच 59 प्रतिशत लोगों तक है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह केवल 18 प्रतिशत है. हालांकि इसने सूचनाओं के आदान प्रदान को तो सहज किया ही है, साथ ही विभिन्न सेवाओं को भी न सिर्फ आसान किया है बल्कि बढ़ावा भी दिया है. लेकिन इसके साथ ही इसने पोर्न को लोगों के पॉकेट तक पहुंचाने का भी काम किया है.
आईएएमएआई की रिपोर्ट कहती है कि युवा जिनमें ज्यादातर स्कूल और कॉलेज के छात्र हैं और अशिक्षित उपयोगकर्ता अपना अधिकांश समय ऑडियो और वीडियो स्ट्रीमिंग पर खर्च करते हैं. और जिनके पास अभी भी डेटा कनेक्शन नहीं है उनके लिए हर गली नुक्कड़ में एक मोबाइल "रिपेयर" की एक दुकान मौजूद होती है.
दिल्ली के करोल बाग स्थित गफ्फार मार्केट की गलियों से लेकर दक्षिण मुंबई के मनीष मार्केट और चंडीगढ़ के सेक्टर 22 में कभी न खत्म होने वाले स्टोर्स और कियोस्क, हर जगह आसानी से पोर्न सामग्री मिल जाती है. ये सारे पोर्न लगभग हर स्मार्टफोन में मौजूद मेमोरी कार्ड में लोड कर देते हैं.
सस्ते मोबाइल और इंटरनेट ने पोर्न को हर किसी के पॉकेट में पहुंचा दिया है
चंडीगढ़ में बिहार के एक घरेलू कार्यकर्ता सरजू कहते हैं, "सिर्फ 150 रुपये 4 जीबी वाले मेमोरी कार्ड में दर्जनों भर अश्लील भोजपुरी फिल्में और बाकी बची जगह में पोर्न क्लिप डाल दिए जाते हैं."
आज दुनिया में अनुमानित 1.8 बिलियन वेबसाइटों में से 36वें क्रम पर सबसे लोकप्रिय एक पोर्नोग्राफी वेबसाइट है. और 2017 में इस साइट पर आने वाले ट्रैफिक में से 67 प्रतिशत स्मार्टफोन से था. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि '2017 की समीक्षा' रिपोर्ट के अनुसार इस वेबसाइट पर आने वाले ट्रैफिक में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की थी- 2013 और 2017 के बीच 121 प्रतिशत. और 86 प्रतिशत भारतीयों ने इसे मोबाइल से खोला था. और इस बात की बहुत संभावना है कि भारतीयों का एक बहुत बड़ा वर्ग यौन हिंसा के चित्रण की तरफ आकर्षित रहता है और उसे देखना चाहता है.
गूगल एडवर्ड के मुताबिक, दिसंबर 2012 में निर्भया गैंगरेप और हत्या की घटना के बाद से एक महीने में लगभग 4.1 मिलियन बार मोबाइल फोन का इस्तेमाल "बलात्कार" कीवर्ड खोजने के लिए किया गया था. सर्च कीवर्ड में "भारतीय लड़कियों के साथ बलात्कार", "रेपिंग वीडियो", "रेपिंग स्टोरी", "पब्लिक में रेप", "छोटी लड़की से बलात्कार", "माँ से बलात्कार", "बेटी का बलात्कार करने वाला पिता" और "रेप्ड टू डेथ" शामिल थे. इसमें उन लोगों की संख्या शामिल नहीं है जो लोग बाहर जाकर मोबाइल रिपेयर की दुकानों, सड़क के कोने पर बैठे डीवीडी-वाला या अत्यधिक अनुकूल साइबर कैफे के मालिक खरीदते हैं. ये एक डरावना सच है. आपका ड्राइवर, आपका कूक, पड़ोस वाला डाकिया, सड़क के कोने पर कतारों में खड़े ऑटोरिक्शा वाले, पड़ोसी का नाबालिग बेटा या यहां फिर अगले दरवाजे पर रहने वाला एक "अच्छा" एक्जीक्यूटिव और हमेशा आपके फ्लैट पर किराने का सामान लाने वाला लड़का, आपका काम करने या फिर आपसे बात करने से ठीक पहले हो सकता है कि ये पोर्न देख रहे हों. या फिर आपकी पांच साल आपकी पांच साल की बेटी!
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