दिल्ली स्मॉग: क्या आपको भी मौत नजर नहीं आती ?
दिल्ली और आस पास में फैला स्मॉग ये बताने के लिए काफी है कि यदि हम अपने पर्यावरण के प्रति गंभीर न हुए तो वो दिन दूर नहीं जब शायद हमारे अस्तित्व को ही खतरा हो जाए.
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मैं सोचता हूं आने वाला वक्त कैसा होगा. आप कहेंगे कितना खलिहर है ये शख्स, हमें आज की फुर्सत नहीं और ये आने वाले वक्त को लेकर ख्याल बुन रहा है. खलिहर का पता नहीं, लेकिन फिक्रमंद जरूर हूं. फिक्र इस बात की है कि कल को हमारे बच्चों की मुस्कान हम देख पाएंगे या नहीं? अगर उनके चेहरे पर भी ये मास्क रहा तो उनके मासूम चेहरों की खिलखिलाहट हम कैसे महसूस करेंगे? क्या उस वक्त वो नंगी आंखों से दुनिया को देख सकेंगे? या फिर आंखों को बचाने के लिए कोई मोटा चश्मा होगा? क्या उस मोटे चश्मे के पार हम उनके नजरों की चमक को महसूस कर पाएंगे?ये सारे सवाल आज दिन भर जहन में तैरते रहे.
वजह दिल्ली पर पड़ी इस धूंए की चादर (स्मॉग थी. दिन चढ़ते पता चला नासा ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें ये चादर पड़ोस में पाकिस्तान तक फैली नजर आ रही है. मन में ख्याल आया क्यों न आने वाले वक्त का अंदाजा लगाया जाए. वैसे भी कई लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि आने वाले कुछ सौ सालों में पृथ्वी आग के गोले में तब्दील हो जाएगी. तो जब तक ये आग के गोले में तब्दील नहीं होती उससे पहले की जिंदगी कैसी होगी वो मैंने सोची है.
आज प्ररि दिल्ली स्मॉग से घिरी है
सोचिए आज से 400 साल बाद लोग कैसे जी रहे होंगे. पानी जो कि दिन पर दिन पाताल लोक की ओर बढ़ रहा है. नजाने उस वक्त हमारी पहुंच में होगा या फिर पाताल को टच कर गया होगा. अगर ऐसा हुआ तो जिस क्षेत्र में पानी बहुतायत में होगा वहां जंग छिड़ी होगी. लोग एक दूसरे को मार रहे होंगे. अगर अमेरिका तब भी सबसे शक्तिशाली रहा तो उसके जवान उस धरती को रौंद रहे होंगे. लोग जहां तहां मर रहे होंगे. पानी से सस्ता खून होगा जो, सड़कों पर रिस नहीं बल्कि बह रहा होगा। लेकिन उसे पीने से जान नहीं बचेगी.
अगर इस जंग से दूर कहीं सो कॉल सिविलाइज्ड लोग होंगे तो वहां भी किसी का चेहरा न दिखेगा. सब मास्क और चश्मा लगाए बस भाग रहे होंगे. अगर सिविलाइज्ड होंगे तो सड़कों पर कार न होगी. जो कार चलाएगा उसको कैद होगी. सरकार में सिर्फ एक मंत्रालय होगा जो बचे कुचे पर्यावरण को कैसे न बिगाड़ें की थ्योरी पर काम करेगा. क्योंकि पर्यावरण में अब सुधार की गुंजाइश न होगी. बस बर्बाद गुलिस्तां को बचाने की कवायद मात्र करनी होगी.
बच्चों को स्कूल में पॉल्युशन में जीने के तरीके सिखाए जाएंगे. उन्हें बताया जाएगा कैसे इस दुनिया पर फूल हुआ करते थे, नदियां बहा करती थीं, लोग पार्कों में घूमने जाते थे, वहां खुल कर सांस लेते थे. पानी को जंग नहीं थी. लोग जीते थे, क्योंकि आज की तरह मरना आसान न था. उन्हें बताया जाएगा कि पहले बरसात होती थी. ये जो गर्मियां अब हमेशा रहती हैं ये साल के कुछ महीनों की होती थीं. पृथ्वी ऐसी थी-वैसी थी और फिर इसे तुम्हारे पूर्वजों ने तबाह कर दिया.
स्मॉग के चलते पूरी दिल्ली में जनजीवन अस्त व्यस्त हुआ है
अभी कुछ दिनों पहले सुना कि किसी देश ने रोबोट को नागरिकता दी है. मुझे तो उस देश की सोच पर गर्व हो रहा है. वो देश आज से ही अपने देश में नागरिकों की संख्या को लेकर सतर्क हो गया है. आने वाले वक्त में जब इंसान नहीं होगें तो उनका देश कौन चलाएगा. ऐसे में किसी ऐसे को नागरिकता दी जाए जो इंसानी न हो, जो मशीनी हो. उसे न हवा के खराब होने की चिंता हो, न प्यास से मर जाने का डर.
ये जो कुछ भी होगा ये आज की देन होगी. हमारी देन होगी जो हम रच रहे हैं. ये हमारी गाड़ियां, कारखाने, चिमनियां सब धरी रह जाएंगी. इन्हें चलाने वाला कोई न होगा. बस होगी तो मौत। जो एक ओर से चलेगी, मुंह बाए-सबको लीलते। सब स्वाहा-सब खत्म.
दरअसल मेरी बहुत खराब आदत है. वो ये है कि मैं अति तक सोचता हूं. इतना अति कि आप पचा न सकें. लेकिन विश्वास मानिए जो आज अति लग रहा है, ये सच्चाई के नजदीक भी हो सकता है. जिन लोगों को इस खलिहर पर भरोसा नहीं, तो जरा सा अपने खालीपन से बने व्यस्त जीवन से वक्त निकालें और देखें अपने आस-पास. क्या तुम्हें मौत नहीं दिखती?
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