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Updated: 05 मई, 2021 10:14 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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साल 2020. एक बेहद मनहूस और दिल को दहला कर रख देने वाला साल. साल जब चीन के वुहान से एक वायरस जिसका नाम कोरोना वायरस था, चला और उसने ऐसी तबाही मचाई की देखने वाले बस देखते रह गए. दुनिया भर में लोगों ने अपनों को खोया और इसका असर भारत में भी हुआ. अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य करीब एक साल बाद भरात में स्थिति जस की तस बनी हुई है और मौत का ग्राफ दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. साल 2020 में जब दुनिया इस वायरस के कोप से थर थर कांप रही थी यहां भारत में हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तमाम तरह की बातें करते सुना. साल 2020 में मार्च के बाद हमने कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्र से संबोधित होते देखा और एक दिन वो भी आया जब हमने प्रधानमंत्री को ये कहते सुना कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीवन गुजरना है और इस आपदा को अवसर में बदलना है.

साल 2020 में पीएम मोदी की ये बातें हमें जुमला लगीं मगर अब जबकि 2021 में हम भारत में कोविड 19 की दूसरी वेव आते और अपने करीबियों को इलाज और मूलभूत चिकित्सीय सुविधा के आभाव में दुनिया से रुक्सत होते देख रहे हैं महसूस होता है कि पीएम मोदी की आपदा में अवसर की बात केवल जुमला नहीं थी उसके पीछे गहरे अर्थ छिपे हुए थे.

Coronavirus, Covid 19, Disease, Treatment, Death, Disaster, Black Marketing, Prime Marketingकोविड की इस दूसरी लहार में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है लोगों को आपदा को अवसर में बदलते देखना

तो आइए जानें उन 5 लोगों के बारे में जो कोविड की इस दूसरी लहर में न केवल शासन प्रशासन की नजरों में धूल झोंक रहे हैं बल्कि कालाबाजारी को अंजाम देते हुए जमकर आपदा को अवसर में बदल रहे हैं.

1 - प्राइवेट हॉस्पिटल के मालिकान

इतिहास में जब भी कोविड की इस दूसरी लहर के चलते मौत की दास्तां लिखी जाएगी उसमें प्राइवेट हॉस्पिटल के मालिकानों का जिक्र अवश्य होगा. आज जैसे हालात हैं वो तमाम लोग जो किसी अपने के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल का रुख कर रहे हैं उनका भरपूर शोषण प्राइवेट अस्पताल का मैनेजमेंट कर रहा है.क्या देश की राजधानी दिल्ली क्या लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, आगरा और वाराणसी हर जगह स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है. चूंकि प्राइवेट अस्पताल फौरन ही मरीज को अपने आईसीयू में डाल दे रहे हैं. इस आपदा में हम कई ऐसे अस्पतालों के बारे में सुन चुके हैं जो मरीजों से आईसीयू के नाम पर हर दिन के हज़ारों रुपये ऐंठ रहे हैं. इन अस्पतालों में कालाबाजारी का लेवल क्या है इसका अंदाजा इसी को देखकर लगाया जा सकता है कि आईसीयू चार्ज के अलावा मरीज से दवाइयों और हॉस्पिटल में मुहैया हो रही ऑक्सीजन की मोटी कीमत वसूली जा रही है.

2 - एम्बुलेंस सेवाओं के कहने ही क्या

आज इन मुश्किल हालात में जब हर दूसरा व्यक्ति आपदा में अवसर तलाश रहा हो हम एम्बुलेंस सर्विस देने वालों को कैसे खारिज कर सकते हैं. चाहे कुछ मीटर हों या कई किलोमीटर हर यात्रा के लिए इनकी अपनी रेट लिस्ट है, जिसमें छूट की शायद ही कोई गुंजाइश हो. तमाम ऐसे मामले आए हैं जिसमे अपने मरीज को चंद किलोमीटर ले जाने के लिए इन निष्ठुरों ने मोटी रकम वसूली है. ऐसा नहीं है कि ये अस्पताल से अस्पताल भटकते मरीज को ही झेलना पड़ रहा है यदि किसी की मौत हो जाए और उसे एम्बुलेंस से शमशान या कब्रिस्तान ले जाना हो तो इनकी जिस तरह की कालाबाजारी देखने को मिलती है कठोर से कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी पसीज कर मोम बन जाए. आपदा के इस अवसर पर एम्बुलेंस वाले उतने पैसे मांग ले रहे हैं जितने का प्रबंध करना एक आम आदमी के लिए टेढ़ी खीर है.

3- मेडिकल / सर्जिकल सामान उपलब्ध कराने वाले भी धो रहे हैं बहती गंगा में अपने हाथ.

मुद्दा आपदा में अवसर का है और बात लूट घसोट और कालाबाजारी की चली है तो हम मेडिकल स्टोर वालों के साथ साथ उन लोगों को क्यों नजरअंदाज करें जो मरीजों को सर्जिकल का सामान मुहैया करा रहे हैं. चाहे आप ऑक्सि मीटर के लिए इनके पास जाएं या फिर ऑक्सीजन किट, ऑक्सीजन सिलिंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए इनसे पूछें कीमत 5 गुनी हैं.

ये अपने आप में विचलित करने वाला है कि जो सामान आज से 15-20 पहले साधारण कीमतों पर थे वो आज कैसे आसमान पर पहुंच गए. हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ये सब उस वक़्त में हुआ है जब कोविड की दूसरी लहर का पीक आना अभी बाकी है.

बात मेडिकल स्टोर वालों की हुई है और उनके द्वारा की जा रही कालाबाजारी पर चर्चा हो रही है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि ये वही लोग हैं जो एक जमाने में दवाइयों की खरीद पर 10% या 15% की छूट देते थे लेकिन आज इनका रवैया पूरी तरह बदल चुका है. ज़रूरी दवाइयां और मेडिकल से जुड़े सामान या तो इन्होंने स्टॉक कर लिए हैं या फिर ये मुंह मांगी कीमतों पर सामान देकर कालाबाजारी की आग को हवा दे रहे हैं.

4- शमशान और कब्रिस्तान का भी फंडा वही 'आपदा के मौके पर लूट सको तो लूटो'

कहते हैं कि मृत्यु व्यक्ति की तकलीफ या ये कहें कि चिंताओं पर लगाम लगा देती है. लेकिन कोविड का मामला ऐसा नहीं है. चाहे शमशान हो या कब्रिस्तान हर जगह हाल बुरे हैं. इतनी लाशें हैं कि क्या ही कहा जाए ऐसे में इन जगहों पर भी जमकर फायदा उठाया जा रहा है. जिस किसी को भी अपने परिजन का अंतिम संस्कार जल्दी कराना है पैसा फेंके काम हो जाएगा.

चाहे कब्रिस्तान हो या शमशान यहां लोग लगे हैं और उन लोगों की मदद कर रहे हैं जो परेशान हाल हैं. इससे पहले कि आप इन लोगों को दुआएं दें जान लीजिए इनके द्वारा मुहैया कराई जारही मदद मुफ्त नहीं है इसकी कीमत है और ये कीमत बहुत है.

5- वो गिद्ध जिन्होंने ऑक्सीजन किट, सिलिंडर को कर लिया है स्टॉक

आपदा को अवसर में बदलने वाली इन बातों के सबसे अंत में हम उनलोगों का जिक्र करना चाहेंगे जो हैं तो मानव योनि में लेकिन जो किसी गिद्ध से कम नहीं हैं. जिस तरह किसी मरते हुए पशु को देखकर गिद्ध उसके ऊपर मंडराने लगते हैं वैसा ही हाल ऐसे लोगों का है. जब देश में ऑक्सीजन की किल्लत शुरू हुई इन लोगों ने तमाम ज़रूरी चीजों को स्टॉक कर लिया. आज जब लोग मदद की डिमांड कर रहे हैं तो ऐसे ही लोगों की बड़ी संख्या सामने आ रही है और मदद के नाम पर मोटे पैसे अपनी जेब में डाल रही है.

ऑक्सीजन का वो छोटा सिलिंडर जो कभी 6 हज़ार रुपए में मिल जाता था आज उसे ये लोग 25 से 30 हज़ार के बीच बेच रहे हैं इसी तरह ऑक्सीजन का वो जंबो सिलिंडर जिसकी कीमत 15 हज़ार हुआ करती थी आज इन लोगों की बदौलत 80 हज़ार से 1 लाख के बीच मिल रहा है.

मामले में दिलचस्प ये भी है अब ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर मशीन इनकी नजर में आ गई है और इन्होंने उसकी कालाबाजारी शुरू कर दी है. जो मशीन अभी कुछ दिनों पहले तक 50 हज़ार में आसानी से मिल जाती थी आज ये लोग उस मशीन को सवा लाख से डेढ़ लाख के बीच बेचकर आपदा को अवसर में बदल रहे हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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