फैशन नहीं, ये क्रूरता है!
जानवर वहीं जी सकते हैं जहां वो प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, उन्हें उनके स्थान से अलग करके जबरदस्ती शहरों में रखना वैसे भी उनपर अत्याचार करने जैसा ही है.
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मुंबई को मायानगरी कहा जाता है तो जाहिर है माया का असर भी इस शहर पर खूब है. वो चाहे फैशन हो या स्टेटस, लोग इसे मैंटेन करने में दिन-रात लगे रहते हैं. पर स्टेटस मैंटेन करने के चक्कर में वो जो कर रहे हैं उसे क्रूरता ही कहा जा सकता है.
जानवर पालना लोगों का शौक होता है, बहुत से लोग कुत्ते-बिल्ली पालते हैं, लेकिन जानवारों की ऐसी प्रजाति अपने पास रखना जो कहीं नहीं हो, उससे बढ़ता है स्टेटस. आपको वोडाफोन के विज्ञापन में आने वाला पग याद होगा, उसके बाद पग्स की डिमांड तेजी से बढ़ी, पग्स को पालना लोगों का स्टेटस सिंबल हो गया. और जैसे ही मार्केट में ऐसे किसी जानवर की डिमांड बढ़ती है, वैसे ही दूसरी तरफ इन जानवरों के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ने लगती हैं. यानी डिमांड है तो सप्लाई के लिए जानवरों को पकड़ना, उनकी स्मग्लिंग, और प्रतिकूल परिस्थितियों में उनकी ब्रीडिंग कराई जाती है.
पग्स पालने का चलन एकदम से बढ़ गया था
हिदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एनिमल एक्टिविस्ट और जूलॉजिस्ट्स का कहना है कि- इन जानवरों की ब्रीडिंग और उनका व्यापार एक गंभीर समस्या है. लोग इन जानवरों को स्टेटस सिंबल मानकर, या अच्छा भाग्य पाने के लिए या फिर सिर्फ शेखी बघारने के लिए खरीदना चाहते हैं, ये वो जानवर हैं जिनमें से कई तो लुप्त होने की कगार पर हैं. जानवरों और ईकोसिस्टम के लिए ये घातक हैं.'
भारत में बढ़ रहा है बाजार
लोग अपना पैसा जानवरों पर लुटा रहे हैं. ये जानवर हैं- ब्राज़ील के पॉकेट मंकी, दक्षिण एशिया के कुछुए, दक्षिण अमेरिका और कैरीबियन के इगुआना, इंडोनेशिया की कोरल रीफ की मछलियां. इन जानवारों को गैरकानूनी तरीके से लाया जाता है, फिर क्रूरता से इनकी ब्रीडिंग कराई जाती है और फिर बढ़िया कीमत में इन्हें मुंबई, पुणे, बैंगलोर और दिल्ली में बेच दिया जाता है.
पॉकेट मंकी, ये बंदर इतने छोटे होते हैं कि जेब में आ जाएं
देसी पक्षियों को पहाड़ी और जंगली इलाकों से पकड़ा जाता है, इन्हें बॉक्स में छिपाकर रखा जाता है, और फिर इधर-उधर ले जाया जाता है. अपने स्थान पर जब ये पक्षी पहुंचते हैं, तो अगर ये मरे नहीं होते, तो घायल, डरे हुए और भूखे होते हैं. इन पक्षियों में मैना, तोते, उल्लू, मोर आदि पक्षी शामिल हैं.
पर इन्हें पालने में समस्या क्या है
जानवर पालने में वैसे तो कोई समस्या नहीं होती, लेकिन बहुत से कारण हैं जो इनके जीवन को मुश्किल बनाते हैं, यानी समस्या ही समस्या-
* कुछ प्रताजियां स्थानिक होती हैं यानी ये जानवर केवल अपने प्राकृतिक निवास स्थान पर ही रह सकते हैं, और अगर उन्हें वहां से हटाया जाता है तो वो उनके लिए जानलेवा हो सकता है.
* कई विदेशी प्रजातियां लुप्तप्राय या कमजोर प्रजातियों पर नजर रखने वाली इन्वेंटरी इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में हैं.
सौभाग्य के लिए कछुए पालते हैं लोग
* ब्रीडिंग यानी प्रजनन भी एक समस्या है. दो साल पहले जब मुंबई, पुणे और बैंगलोर में पॉकेट बंदरों की डिमांड बढ़ गी थी तो ब्रीडिंग करवाने वालों ने बंदरों की मेटिंग साइकल बदलने के लिए उन्हें स्टेरॉइड्स देने शुरू कर दिए थे. इन छोटे बंदरों की साल में कई बार ब्रीडिंग कराई जाती थी, क्योंकि एक एक बंदर की कीमत 3.5 लाख थी.
* इन जानवरों का खाना भी खास होता है, कुछ लोग भले ही विदेशों से वो खाना मंगवा सकते हैं, लेकिन ज्यादातर उन्हें लोकल फल ही खिलाते हैं. जो इनके लिेए अच्छा नहीं होता.
इस तस्वीर को देखिए और कहिए कि किस कीमत पर इंसान अपने शौक पाल रहा है. कुछ विदेशी पक्षी ऐसे हैं जिन्हें बोतलों में छुपाकर लाया जाता है. जिससे ये जगह कम घेरें और आवाज न करें. कई पक्षी दम घुटने के चलते मारे जाते हैं. पर मुनाफाखोर फिर भी फायदे में रहते हैं.
वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत स्वदेशी पशुओं और पक्षियों के कब्जे और व्यापार पर रोक लगाई गई है, लेकिन ये कानून लोगों के शौक से बढ़कर नहीं. लोग शौक-शौक में जानवर ले आते हैं, और जब मन भर जाता है तो उन्हें छोड़ देते हैं. पर एक बात और भी है, ऐसे जानवर या पक्षी जिन्हें शुरू से पिंजरों में रहने की आदत होती है उनके लिए बिना पिंजरे के सड़क पर एक दिन भी रहना मुश्किल होता है, वो आसानी से शिकार बन जाते हैं. और जान से जाते हैं.
जानवर वहीं जी सकते हैं जहां वो प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, उन्हें उनके स्थान से अलग करके जबरदस्ती शहरों में रखना वैसे भी उनपर अत्याचार करने जैसा ही है. जरा सोचिए कि आप कितने दिन अंटार्टिका में जिंदा रह सकते हैं, तो इन जानवरों को उनके घरों से दूर लाकर उन्हें जबरन जिंदा रखना कौन सा फैशन है? अपने लोगों के शौक पूरा करते-करते ये जानवर एक दिन खुद खत्म हो जाते हैं, और रह जाता है लोगों का झूठा स्टेटस.
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