कौन कहेगा कि इंसानों के भेस में ये जानवर नहीं हैं !
नेपाल का देवपोखरी त्योहार हर साल बड़ी ही धूम-धाम और संवोदनहीन होकर मनाया जाता है. यहां संवेदनाएं सिर्फ मासूम बच्चों की आंखों में दिखाई देती हैं, जो बेजुबान जानवर के साथ हो रही क्रूरता का मंजर हर साल अपनी आंखों से देखते हैं.
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त्योहार कोई भी हो उसका उद्देश्य होता है एक साथ खुशियां मनाना. लेकिन कुछ त्योहार ऐसे भी हैं जिनमें रिवाजों के नाम पर जानवरों के साथ खुले आम बर्बरता दिखाई जाती है. धर्म, आस्था और ईश्वर के नाम पर सबसे बड़ी कुप्रथा का नाम है बलि, लेकिन यहां अंधी आस्था में डूबे लोग पूजा के नाम पर निरीह जानवरों के साथ क्रूरता की सारी हदें लांघ देते हैं.
हम बात कर रहे हैं नेपाल के देवपोखरी त्योहार जो हर साल खोकन गांव में बड़ी ही धूम-धाम और संवोदनहीन होकर मनाया जाता है. यहां संवेदनाएं सिर्फ मासूम बच्चों की आंखों में दिखाई देती हैं, जो बेजुबान जानवर के साथ हो रही क्रूरता का मंजर हर साल अपनी आंखों से देखते हैं.
900 सालों से मनाया जा रहा है ये त्योहार |
संवेदनाशून्य है देवपोखरी त्योहार
नेपालियों का ये त्योहार देवपोखरी करीब 900 सालों से मनाया जा रहा है, और इस त्योहार का सबसे खौफनाक हिस्सा है एक प्रतियोगिता जिसे एक पोखर में संचालित किया जाता है.
ये है वो पोखर जहां इंसानी बर्बरता को देखने के लिए सारा गांव इकट्ठा होता है |
गांव के बीचों बीच रुद्रायनी मंदिर के करीब एक पोखर है जिसे बहुत पवित्र माना जाता है. इस पवित्र तालाब में 5 महीने की एक बकरी को फेंक दिया जाता है और उसके साथ-साथ पुरुषों का एक दल भी पानी में उतरता है.
पहले पानी में बकरी को फेंका जाता है |
पानी से बकरी को बाहर निकालने का मतलब उसकी जान बचाना नहीं है |
इन लोगों को बकरी को पानी से बाहर निकालना होता है, जो व्यक्ति बकरी को पहले पानी से बाहर निकाल लेता है वो प्रतियोगिता में विजयी माना जाता है. ईनाम के तौर पर त्योहार के जुलूस का नेतृत्व उसे सौंप दिया जाता है.
सिर्फ मनोरंजन के लिए रखी जाती है ये प्रतियोगिता |
लेकिन सुनने में समान्य लगने वाले इस त्योहार का खौफनाक हिस्सा अब शुरू होता है. पानी में फेंकी गई बकरी को निकालने के लिए इन लोगों में खींचतान होती है.
बकरी से साथ किया जाता है अमानवीय व्यवहार |
कोई बकरी को फेंकता है, कोई उसकी गर्दन कसकर पकड़ लेता है, कोई शक्ति प्रदर्शन करते हुए उसका एक पैर पकड़कर हवा में उठा लेता है.
किसी जानवर के प्रति दया का भाव शायद शून्य हो जाता है यहां |
कोई सर को दबोचता है तो कोई गर्दन. औरर ये सब करीब 45 मिनट कर ऐसे ही चलता रहता है. एक बकरी के बच्चे की जान जाने के लिए इतना देर काफी होता है.
एक बकरी का बच्चा 40 मिनट के अंदर ही दम तोड़ देता है |
दरअसल बकरी पर की जाने वाली इस हिंसा का मकसद उसे दुर्बल करना या मारना ही होता है. इतनी मार खाकर बकरी दुर्बल हो जाती है, और अपनी जान बचाने के लिए उछल कूद नहीं करती और और यही वो समय होता है जब बकरी को कोई भी आसानी से तालाब से बाहर निकाल सकता है.
कल्पना कीजिए इस भयावह दृश्य की |
बलि देने की प्रथा में एक जानवर को बलि से पहले पूजा जाता है. लेकिन यहां इस बकरी को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है. ये तस्वीरों में इंसानों के इस प्रवृत्ति को देखकर उसे इंसान कहना गलत लगता है.
क्या ऐसा करने का ये कारण वाजिब है?
अपने मनोरंजन के लिए भगवान के नाम पर खोकन में यह त्योहार हर साल इसी अमानवीय तरीके से मनाया जाता है. लेकिन इसे मनाने के पीछे जो कारण यहां के स्थानीय लोग बताते हैं वो जरा अजीब है. लोग कहते हैं कि तालाब में एक राक्षस रहता था, जिसकी वजह से कई लोगों की मौत तालाब में डूबकर हुई. तालाब को शांत करने के लिए इस त्योहार का आय़ोजन किया जाने लगा. जिससे किसी की मौत न हो.
एक निरीह जानपर के साथ ऐसा व्यवहार करने वाला कोई इंसान कैसे हो सकता है |
कई एनिमल राइट्स संस्थाओं द्वारा इस कृत्य को अमानवीय करार कर इसपर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है. इस त्योहार को बान करने के लिए कई सारी ऑनलाइन पिटीशन भी फाइल की गई हैं. पेटा भी इस मामने में नेपाल के एनिमल राइट्स संस्थाओं का साथ दे रहा है. पर धर्म के नाम पर किए जाने वाले इन आडंबरों के खिलाफ लड़ाई जरा लंबी ही चलती है.
इस बच्चे के चेहरे पर वो दर्द साफ देखा जा सकता है जिसे वो इस खौफनाक नजारे को देखकर महसूस कर रहा है. |
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