आदिवासियों को धार्मिक बनाने की 'आत्मघाती-बेवकूफी' से भरी है चाऊ की डायरी
जॉन एलन चाऊ का मकसद साफ था, वो बस आदिवासी लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाना चाहता था. उसे अच्छी तरह पता था कि वो दुस्साहस कर रहा है. आत्मघाती दुस्साहस. और इसीलिए उसके मारे जाने को शहादत कहा जाना थोड़ी ज्यादती है.
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अंडमान और निकोबार के सेंटिनल आइलैंड पर आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए अमेरिका से एक मिशनरी युवक जॉन ऐलन चाऊ पहुंचता है. और वहां के आदिवासी उसकी हत्या कर देते हैं. खबर पूरी दुनिया में फैल जाती है. यूं तो किसी का भी मारा जाना दुखद है. खासतौर पर ऐसे व्यक्ति का जो किसी को नुकसान पहुंचाने का इरादा न रखता हो. लेकिन चाऊ के मिशन का विश्लेषण करने के लिए थोड़े धैर्य की जरूरत है. 27 साल के चाऊ की एक डायरी बरामद हुई है, जिसमें उसने अपने अंतिम क्षणों का जिक्र किया है. जिसे पढ़कर पता चलता है कि चाऊ खुद मान रहा था कि वो एक आत्मघाती मिशन पर है. और जानबूझकर उसने यह रास्ता चुना है. पहले, हम उसकी डायरी के कुछ अंश देखेंगे और फिर अंदाजा लगाएंगे कि चाऊ का ऐसा करना जरूरी था या गैर-जरूरी.
जॉन अमेरिकन टूरिस्ट और एक मिशनरी भी था
ये मामला जिस तरह दुनिया भर के अखबारों की हेडलाइन बना हुआ है, वहां ये बताना भी उतना ही जरूरी हो जाता है कि अंडमान निकोबार के सुदूर सेंटिनल आइलैंड पर आदिवासियों का बेहद विलुप्तप्राय समुदाय रहता है. जिनसे मिलने की इजाजत किसी को नहीं है. ये आदिवासी ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को खुद से संपर्क रखने देते हैं. जो कोशिश करता है, उनपर तीर-कमान से हमला कर देते हैं. जाहिर, वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते होंगे और हर अजनबी को खतरा मानते होंगे.
जॉन के इरादे नेक थे, लेकिन नहीं भी
तो ऐसे में अगर कोई बाहरी व्यक्ति इनके बीच जाता है तो उसका यही हाल होगा, फिर चाहे वो भारत से हो या विदेश से. हालांकि जॉन ऐलन का वहां जाने का मकसद घूमना तो कतई नहीं था. वो ईसाई मिशनरी था और वहां जाकर ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहता था. उसकी डायरी बता रही है कि वो सेंटिनल आइलैंड को 'किंग्डम ऑफ जीसस' बनाना चाहता था. वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि वो क्या करने जा रहा है. और उसके साथ क्या हो सकता है. आइलैंड में दाखिल होने से पहले अपने माता-पिता के नाम लिखे खत में अपना मकसद और अपना डर साफ कर दिया था. जॉन ने लिखा था- 'आइलैंड से मैं न लौटूं, तो मेरी मौत के लिए आदिवासियों या भगवान को दोष न देना. आप लोगों को लगता होगा कि मैं पागल हो गया हूं, मगर इन लोगों को जीसस के बारे में बताना जरूरी है. इन लोगों से मिलना बेमतलब नहीं है. मैं चाहता हूं कि ये लोग भी अपनी भाषा में प्रभु की आराधना करें.' हालांकि, अगले कुछ पन्ने में जॉन यह भी लिख रहा है कि 'गॉड, मैं मरना नहीं चाहता'.
जॉन ऐलन के परिवार ने जॉन के इंस्टाग्राम अकाउंट से एक पोस्ट शेयर की है, जिसमें वह मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को माफ करने की बात कह रहे हैं.
जॉन के माता-पिता ने इंस्टाग्राम पर ये संदेश दिया
जॉन अगर जिंदा होता तो कोई उसे माफ नहीं करता
जॉन अपनी डायरी में कुछ गलतियों को बहादुरी बताकर स्वीकार करता है. जैसे- 'कोस्ट गार्ड और नौसेना की गश्त को चकमा देते हुए 14 नवंबर की रात को अंधेरा होने पर मैं उत्तरी सेंटिनल आइलैंड के नजदीक पहुंच गया हूं.'
15 नवंबर- 'मित्रों की मदद लेकर नाव से यहां (सेंटिनल आइलैंड) पिछली रात पहुंच गया, अब आदिवासियों से संपर्क करना चाहता हूं'
कोस्ट गार्ड से बचने के लिए जॉन कितना जतन कर रहा था, डायरी की कुछ और लाइनों में पता चलता है- 'पिछली रात करीब 08.30 बजे निकला और 10.30 बजे पहुंच गया, लेकिन जैसा कि हम पूर्वी किनारे से होते हुए उत्तर में गए, तो हमने दूर से उत्तरी किनारे के पास नाव की रोशनी देखी. पूर्वी किनारे से होते हुए दक्षिण की ओर बढ़े और उनसे बच गए. फिर दक्षिणी किनारे गए और फिर पश्चिमी किनारे साथ गए. ईश्वर खुद हमें कोस्ट गार्ड और नेवी पेट्रोल से बचा रहा था'.
कोस्ट गार्ड और नेवी पेट्रोल की नजरों से बचते हुए जॉन वहां तक पहुंच गया, जहां जाने की मनाही थी. और इसलिए उसने अपनी डायरी में खुद को 'दिशाहीन दुस्साहसी' भी कहा.
जॉन की डायरी के कुछ पन्ने
जॉन उत्तरी सेंटनील आइलैंड पहुंच चुका था और किनारे पर आदिवासियों के आने का इंतजार कर रहा था. आदिवासियों सं संपर्क करने के लिए जब वो उनके पास गया तो वहां उसपर हमला हो गया. जॉन ने लिखा- 'मुझपर आदिवासियों ने हमला किया है, एक बच्चे ने मुझ पर तीर से हमला किया है. वो 10 साल के आसपास का या हो सकता है किशोर हो, क्योंकि वो मौजूद बड़ों से छोटा लग रहा था. तीर सीधा बाइबल पर लगा जिसे मैंने अपने सीने से लगा रखा था'.
आदिवासियों से संपर्क करने की जॉन की यह पहली कोशिश थी. लेकिन पहले हमले को देखकर उसने लौटना बेहतर समझा. वह आदिवासियों के लिए एक फुटबॉल और मछलियां भी लेकर गया था. लेकिन वो यह सब वहीं छोड़कर अपनी नाव पर लौट आया.
अगले दिन वह दोबारा आइलैंड पर पहुंचा पर इस बार वह वापस नहीं लौट सका. जॉन को उस आइलैंड के नजदीक छोड़ने पहुंचे मछुआरों ने बताया है कि 17 नवंबर को तड़के उन्होंने आदिवासियों को जॉन का शव घसीटते हुए देखा. जॉन का शव अभी तक नहीं मिला है, इस बात की संभावना जताई जा रही है कि आदिवासियों ने उसे उसे रेत में ही दफना दिया.
आदिवासियों ने जॉन को सिर्फ एक खतरे के रूप में देखा
जॉन की मृत्यु के साथ सहानुभूति है पर ये शहादत नहीं है
जॉन का मकसद साफ था, वो बस आदिवासी लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाना चाहता था. जॉन ने जो किया वो किसी भी सूरत में आत्महत्या से कम नहीं था. ऐसे खतरनाक इलाके में जाना शेर के पिंजरे में कूदने जैसा है, जहां मौत मिलेगी ये तय होता है.
13वीं शताबदी में जब मार्कोपोलो को इन आइलैंडों का पता चला तो उन्होंने लिखा था 'वे सबसे हिंसक और क्रूर पीढ़ी हैं जो शिकार की हुई हर चीज खा जाते हैं'. 1563 में, एक नाविक, मास्टर सीज़र फ्रेडरिक ने चेतावनी दी थी- 'यदि कोई जहाज, दुर्भाग्यवश इन आइलैंडों पर रुकता है, तो वहां से किसी का जिंदा वापस आना नामुमकिन होता है'. सवाल, ये है कि छोटे-छोटे आइलैंडों पर रहने वाली ये जनजातियां किसी भी अजनबी को खतरे की तरह देखती हैं तो उसमें हर्ज क्या है. यदि शेर हिंसक है, तो इसमें हर्ज क्या है. हम क्यों सभी को 'सभ्य' और 'धार्मिक' बनाने की जिद पकड़े हुए हैं. क्या जनजातियों का अपने मूल वातावरण में रहना गलत है. उन्हें किसी भी खास धर्म के दायरे में लाना क्या जरूरी है.
एक ईसाई मिशनरी को मारकर उन आदिवासियों ने 'पाप' किया है या नहीं, ये आप तय करते रहिए. लेकिन उन आदिवासियों ने तो अपने नजदीक आने वाले एक संभावित खतरे को ही दूर किया है. हमारी सरकार की गलती ये है अंडमान की सेंटिनल जनजाति को खतरे में मानकर उनके आइलैंड जाने की मनाही थी, उस प्रतिबंध को अगस्त 2018 में ही हटा दिया गया. जब ऐसे प्रतिबंध हटेंगे तो एडवेंचर करने वाले तो ललचाएंगे ही. परिणाम सबके सामने है. गलती उस युवा मिशनरी की है, तो जिम्मेदारी हमारी सरकार को भी लेनी होगी.
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