जब तक जनता आस्थावान है, सरकारें भगवान बनी रहेंगी!
दिल्ली से छठ पूजा की कुछ तस्वीरें वायरल हुई हैं जिनमें महिलाएं यमुना के गंदे बदबूदा पानी में खड़ी हैं. गंदे पानी में महिलाओं का इस तरह खड़े होना ये बताता है कि जब बात आस्था की आती है तो हम बड़ी से बड़ी चूक को इग्नोर कर जाते हैं. जिसका फायदा सरकारें उठाती हैं.
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विविधता के कारण त्योहार हिंदुस्तान की खूबसूरती हैं. बात त्योहारों की हो तो दिवाली के फ़ौरन बाद आने वाले पर्व, छठ का शुमार उन त्योहारों में हैं जिसे उसमें उपस्थित रंग और अधिक खूबसूरत बना देते हैं. छठ का पर्व देश भर में पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया. त्योहार बीत चुका है और तमाम अच्छी बुरी बातें हैं जो अब हमारे सामने आ रही हैं और चर्चा का विषय बनी हैं. राजधानी दिल्ली की कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं. तस्वीरें ऐसी हैं जिन्होंने छठ नहीं बल्कि छठ मनाते लोगों के रवैये को सवालों के घेरे में रखा है. तस्वीरें साफ़ तौर पर हमें इस बात का एहसास करा रही हैं और बता रही हैं कि जब तक हम यूं ही आस्थावान हैं, हमारे देश की सरकारें भगवान बनी रहेंगी. कुछ और बात करने से पहले हमारे लिए जरूरी है इन तस्वीरों पर बात करना. वायरल हुई ये तस्वीरें यमुना की हैं जिनमें तमाम औरतें झाग युक्त गंदे पानी में खड़ी होकर सूर्य देवता को जल चढ़ाते हुए, छठ का त्योहार बना रही हैं. तस्वीर देखने पर, तस्वीर का बैक ग्राउंड देखने पर, जिन हालातों में तस्वीर ली गई उसे देखने पर हमें इस बात का एहसास हो जाता है कि इंडिया को न्यू इंडिया बनाने की बातों के बीच हम कितने ही विमर्श क्यों न कर लें मगर वास्तविकता यही है कि विषम परिस्थितियों में हम भी अपने को एडजस्ट कर चुके हैं और 'छोड़ो! जाने दो' की भावना का सबसे बिगड़ा रूप हमारे अन्दर वास कर चुका है.
छठ पूजा के दौरान यमुना के गंदे, बदबूदार झाग वाले पानी में खड़ी होकर पूजा अर्चना करती महिलाएं
दिल्ली से आई छठ की ये तस्वीरें हमारे सामने हैं. तस्वीरों पर यदि ध्यान दिया जाए तो मिलता है कि इसमें हर वो एलिमेंट है जो इस बात की तस्दीख स्वयं कर देता है कि स्थिति बद से बदतर है और दिल्ली बुरी तरह से प्रदूषण की गिरफ्त में है. ऐसी मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद जिस तरह से यमुना के गंदे पानी में औरतें पूरे इत्मिनान से खड़ी हैं. उसने स्वच्छ भारत के उन दावों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है. जो हमारे प्रधानमंत्री अपने अलग अलग मंचों से करते हैं और जनता की तालियां बटोरते हैं.
Devotees offer prayers to the rising sun as toxic foam floats on the surface of polluted Yamuna river during Chhath Puja celebrations, at Kalindi Kunj, in New Delhi.
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— Bikram Acharya (@BikramA22) November 5, 2019
कह सकते हैं कि, ये तस्वीरें वो सच्चाई है जिन्हें देखकर ये पता चलता है कि जब हम खुद ही लापरवाह हैं तो फिर इसमें हमारी सरकारों या फिर हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों का क्या कसूर. हमने बुरा देखकर आंख बंद करने या फिर उसे इग्नोर करने की आदत डाल ली है. ऐसी घटिया व्यवस्था पर लोगों के बीच किसी तरह के कोई आउटरेज का न होना इस बात का सूचक है कि हम यूं ही जिए हैं. हम यूं ही जियेंगे.
Fatal Foam
Devotees offer prayers to the rising sun as toxic foam floats on the surface of the polluted #Yamuna river during #ChhathPuja celebrations, at Kalindi Kunj, in #NewDelhi on Sunday. pic.twitter.com/oyr76futJ9
— Aɴᴜᴊ Yᴀᴅᴀᴠ (@ianujydv) November 5, 2019
बात यमुना के गंदे, बदबूदार, झाग वाले पाने में छठ मनाती महिलाओं और उनके पर्यावरण के प्रति इग्नोरेंस से शुरू हुई है. मगर केवल यमुना ही क्यों? पूर्व में हम कई ऐसी खबरें सुन चुके हैं जहां किसी धार्मिक अनुष्ठान में प्रशासनिक चूक के चलते भगदड़ मची और लोग मरे. क्या एक्शन लिया गया? जवाब है कुछ नहीं. आप ऐसी किसी भी जगह का अवलोकन कर लीजिये और देखिये तो मिलेगा कि चीजें ठीक वैसी ही हैं जैसी उस वक़्त थीं जब हादसा हुआ लेकिन आज उस जगह पर उम्मीद से दोगुने लोग आ रहे हैं.
#ChhathPuja2019 | Pictures of thousands of devotees in Delhi offering Chhath prayers while standing knee-deep in toxic foam in Yamuna river have not only shocked the nation, but the entire world. pic.twitter.com/nq3nLvb3bk
— ராதா இல்லாபடம் சாதா! (@RATHA_RADHA) November 5, 2019
इस बात को हम उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में अर्धकुंभ के दौरान हुए हादसे से भी समझ सकते हैं. बात फरवरी 2013 की है. इलाहाबाद में 2013 के अर्धकुंभ के दौरान 10 फरवरी 2013 को प्रयागराज जंक्शन पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 36 लोगों की जान चली गई थी. ध्यान रहे कि वर्ष 2013 में इलाहाबाद में अर्धकुंभ मेले का आयोजन किया गया था.जिसमें करीब 10 करोड़ लोग शामिल हुए थे.
2013 में इलाहाबाद में हुई हादसे में मातम मनाते लोगों के परिजन
बताया ये भी जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन, यानी 10 फरवरी को इलाहाबाद स्टेशन पर 20 लाख से ज्यादा लोग आए थे. इतनी भीड़ के आने से पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था चरमरा गई और अचानक वहां भगदड़ मच गई.
तब घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने बताया था कि, वहां लोगों के बीच यह खबर पहुंची कि प्लेटफार्म नंबर छह की ओर जाने वाली ओवरब्रिज की रेलिंग टूट गई है, जिसके बाद वहां अचानक भगदड़ मच गई. हादसा कितना बड़ा था इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि, हादसे में 36 लोगों की जान चली गई थी. मरने वालों में 26 महिलाएं, नौ पुरुष और एक बच्चा शामिल था.
इलाहाबाद में 2013 के दौरान हुई ये घटना बस एक उदाहरण है. तमाम मामले हैं जिन्हें हमने देखा और देख कर आंख बंद कर ली. ये वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन मुद्दों पर हमें मुंह खोलना चाहिए हम उन मुद्दों पर चुप हैं और उन मुद्दों पर बात कर रहे हैं जिनका हमसे कोई लेना देना नहीं है.
बात सीधी और एकदम साफ़ है. जब हमें ही अपने अधिकारों से मतलब नहीं है तो फिर हमारे नेताओं को क्या पड़ी है कि वो आगे आएं और हमारे मुद्दों को उठाएं. हमारे नेता भी हमारी फितरत से वाकिफ हैं उन्हें भी पता है कि आज हम भले ही थोड़ा शोर कर लें मगर जब अगली सुबह होगी स्थिति पहले जैसी हो जाएगी.
अंत में बस इतना ही कि या तो खुद लोग अपने अधिकारों के लिए अपने अन्दर बॉयकॉट की भावना का सृजन करना होगा वरना जब तक देश की जनता आस्थावान है सरकारें भगवान बनी रहेंगी और जो क्रम चल रहा है वो अपनी गति से चलता रहेगा.
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