6 नर्क, जिनके आगे दिल्ली का स्मॉग कुछ भी नहीं
भले ही स्मॉग से दिल्ली के लोगों की जिंदगी नर्क होती जा रही है. लेकिन देश में 6 और भी शहर हैं, जहां के लोगों की जान तो जोखिम में है, लेकिन उस पर हल्ला सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही होता है.
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हाल ही में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में 122वें ओवर के दौरान भारत और श्रीलंका के बीच खेले जा रहे मैच को रोक दिया गया. इस मैच को इसलिए रोका गया क्योंकि श्रीलंकाई खिलाड़ियों ने अंपायर से शिकायत की थी कि वह स्मॉग (smog) की वजह से खेल नहीं पा रहे हैं. श्रीलंका के खिलाड़ी मास्क पहन कर मैच खेल रहे थे. मीडिया में खूब हल्ला मचा. होना भी चाहिए, आखिर ये देश की राजधानी जो है. लेकिन उन शहरों का क्या, जो दिल्ली नहीं हैं. लेकिन वहां बसने वाले लोगों की जिंदगी हमेशा जोखिम भरी रहती है. वजह प्रदूषण ही है. देश में 6 ऐसे शहर हैं जो अलग-अलग तरह के प्रदूषण का नर्क भोग रहे हैं:
बिहार के कुल 38 जिलों में से 17 जिलों के पानी में आर्सेनिक का स्तर जानलेवा पाया गया.
1- बक्सर: कैंसर की वजह बनता आर्सेनिक
बिहार में काफी समय से अपना पैर जमाए आर्सेनिक लोगों की जान ले रहा है. अमेरिका में पीने के पानी में आर्सेनिक का स्तर यदि प्रति अरब 10 पार्ट्स हो तो खतरनाक माना जाता है, जबकि भारत में यह पैमाना उससे पांच गुना ज्यादा यानी प्रति अरब 50 पार्ट्स माना गया. लेकिन बिहार के बक्सर में तो यह स्तर प्रति अरब 1500 पार्ट्स तक है. पटना के महावीर कैंसर संस्थान में रोजाना 60-100 ऐसे मरीज आते हैं, जो इस प्रदूषण की वजह से कैंसर पीड़ित हो चुके हैं. रिपोर्टस की मानें तो बिहार के कुल 38 में से 17 जिलों में जमीन से निकलने वाले पानी में सामान्य से अधिक आर्सेनिक पाया जाता है.
कोयले की खान में काम करने वालों को ट्यूबरक्युलोसिस रोग होने का खतरा रहता है.
2- बर्मो: सांसों में जमता 'ब्लैक डायमंड'
पूर्वी झारखंड का बर्मो जिला वैसे तो प्रचुर मात्रा में कोयले यानी ब्लैक डायमंड के लिए ख्यात है, लेकिन ये उतना ही टीबी के लिए कुख्यात भी है. Fly ash या कोयले की धूल ने यहां के निवासियों की सांसों में ऐसा घर बनाया है कि उसका असर अस्पतालों में देखने को मिलता है. छह साल की उम्र से छोटे 15 फीसदी बच्चों पर इस प्रदूषण का सीधा असर है. अस्पताल पहुंचने वाले 60 फीसदी मरीजों में कोयले से होने वाले प्रदूषण की वजह से ही कोई न कोई बीमारी होती है. यहां के जरांगडीह इलाके के 10 फीसदी लोग टीबी के शिकार हैं. और उसकी वजह निर्विवाद रूप से कोयला ही है. इस प्रदूषण का सामाजिक असर यह पड़ा है कि लोग शादियों के लिए इस इलाके की ओर मुंह नहीं करते हैं.
पुणे के 123 लोगों के खून के सैंपल की जांच में 30 फीसदी लोगों में लेड की अधिकता मिली है.
3- पुणे: लेड का हो रहा जानलेवा असर
पुणे के लोगों में लेड का स्तर खतरनाक होता जा रहा है. पुणे के 123 लोगों के खून के सैंपल की जांच के बाद की गई एक एनालिसिस से भी यह बात सामने आई है. इन 123 लोगों में से करीब 30 फीसदी लोगों के खून में लेड का स्तर सामान्य से अधिक पाया गया. इन लोगों के खून की जांच साल भर की अवधि में की गई. इन लोगों ने या तो खुद से यह जांच कराई थी या फिर किसी डॉक्टर के परामर्श पर वह जांच के लिए गए थे.
एक वरिष्ठ पैथोलोजिस्ट अजीत गोलविल्कर ने कहा कि लेड की अधिकता से लोगों की सुनने की क्षमता और IQ level में कमी देखने को मिली. इसके अलावा किडनी पर भी इसके बुरे असर हुए. प्रति डेसीलीटर 10 माइक्रोग्राम लेड तक के स्तर से कोई खतरा नहीं होता है, लेकिन स्तर इससे अधिक होते ही खतरे की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है. कई लोगों में यह स्तर 50-60 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर भी पाया गया.
अमृतसर के पानी में 142 सैंपल में से 19 में भारी मात्रा में यूरेनियम मिला.
4- अमृतसर: पानी में मिला यूरेनियम
पंजाब के अमृतसर में यूरेनियम ने कहर बरपाया हुआ है. गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर जसपाल सिंह की रिसर्च से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. अमृतसर जिले में जमीन के पानी की जांच की गई तो 142 सैंपल में से 19 में भारी मात्रा में यूरेनियम पाया गया यानी इनमें यूरेनियम की मात्रा 60 माइक्रोग्राम से भी अधिक थी. मुक्तसर के हर एक लाख निवासियों में से 75 यूरेनियम प्रदूषण के शिकार हैं. एटोमिक एनर्जी रेग्युलेटरी बोर्ड ऑफ इंडिया ने माना है कि 60 माइक्रोग्राम से अधिक यूरेनियम का स्तर खतरनाक है. वहीं दूसरी ओर, 58 सैंपल में 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर यूरेनियम पाया गया, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने माना है कि 30 माइक्रोग्राम से अधिक का स्तर खतरनाक है. रिसर्च में सामने आया यूरेनियम का सबसे अधिक स्तर 550 माइक्रोग्राम पाया गया. यूरेनियम के इस खतरनाक स्तर की वजह से कैंसर हो रहा है.
राजस्थान में करीब 7.5 हजार लोग फ्लोराइड की अधिकता से होने वाली फ्लोरोसिस बीमारी से पीड़ित हैं.
5- जयपुर: फ्लोराइड बना रहा है अपाहिज
राजस्थान के अलग-अलग इलाकों में फ्लोराइड का स्तर काफी अधिक मापा गया है. जयपुर के आस-पास यह सबसे ज्यादा है. इसके अलावा कोटा, अजमेर और उदयपुर में भी फ्लोरोसिस के मरीज देखे जा सकते हैं. दरअसल, रेगिस्तान की वजह से पानी का भारीपन काफी अधिक बढ़ जाता है और उसमें फ्लोराइड की मात्रा भी. राजस्थान के सभी 33 जिलों में इस रोग से पीड़ित लोग हैं. पूरे राज्य में करीब 7.5 हजार लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं.
इसका अधिकतम स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जबकि राजस्थान में यह स्तर दोगुने से भी अधिक तक जा पहुंचा है. फ्लोरोसिस की वजह से हड्डियां में टेढ़ापन आ जाता है और इस रोग से ग्रसित व्यक्ति की हालत एक अपाहिज व्यक्ति की तरह हो जाती है. इससे दातों में पीलापन आना शुरू होता है और फिर दातों की कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं.
वापी में जमीन के पानी में मरकरी का स्तर WHO द्वारा निर्धारित सीमा का 96 गुना तक हो गया था.
6- वापी: मरकरी (mercury) से जिंदगी हुई कठिन
कहते हैं इंडस्ट्रीज लगने से क्षेत्र का विकास होता है, लेकिन गुजरात के वापी पर यह बात लागू नहीं हो पाई. गुजरात का वापी इंडस्ट्रीज की वजह से तो चर्चा में रहता ही है, साथ ही खतरनाक प्रदूषण के लिए भी. 2012 में मरकरी (पारा) के खतरनाक स्तर की वजह से वापी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, जिसके बाद इससे निपटने के उपाय खोजे जाने लगे. वापी में जमीन के पानी में मरकरी का स्तर WHO द्वारा निर्धारित सीमा का 96 गुना तक हो गया था. कंप्रेहेंसिव इनवायरमेंट पॉल्यूशन इंडेक्स के आंकड़ों के अनुसार अब वापी में काफी सुधार आया है. प्रदूषण के मामले में कंप्रेहेंसिव इनवायरमेंट पॉल्यूशन इंडेक्स ने 2013 में इसे 85.31 का स्कोर दिया था, जो 2016 तक घटकर 68.2 हो गया.
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