ये बेबुनियाद फतवे कुछ वैसे ही हैं, जैसे तेज लूज-मोशन या फिर अपच के चलते हुई उल्टी
देवबंद के फतवे को सुनकर कई प्रश्न हैं जो खुद-ब-खुद दिमाग में आ जाते हैं और किसी भी साधारण व्यक्ति को प्रभावित करते हैं. देखना ये है कि देवबंद के इस फतवे के बाद देश का आम मुसलमान खुद कितना प्रभावित होता है और किस तरह अपनी सूरत बदलता है.
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अपने आप से जंग लड़ते हम लोग बड़े भोले हैं. भोले लोगों में भी भारत का मुसलमान सबसे ज्यादा भोला है. ये इतना भोला है कि इसके अपने भोलेपन ने इसका जीना दुश्वार कर दिया है. वर्तमान परिदृश्य में कहा जा सकता है कि अगर ज्यादा खाने के चलते दस्त आए तो उस पर फतवा, कब्ज हो तो उसपर फतवा, मोबाइल में पोर्न देखने से लेकर फेसबुक चलाने और ट्विटर पर ट्वीट करने तक और शादी में ग्रुप फोटो खिचाने से लेकर गाय पर निबंध लिखने तक, ये बेचारा जो भी करता है उसपर किसी "इमाम साहब" का फतवा आ जाता है. कहा जा सकता है कि भारतीय मुसलामानों के पिछड़ेपन का एक सबसे बड़ा कारण ये फतवे भी हैं, जिनके चलते ये लगातार गर्त के अंधेरों में जा रहा है.
यदि भारत का मुसलमान देखे कि उसके पिछड़ेपन का कारण क्या है तो जवाब उसे खुद मिल जाएंगे
व्यक्तिगत रूप से फतवों से ज्यादा मुझे वो मुसलमान 'क्यूट' लगते हैं जो पेन कॉपी लेकर किसी भी मदरसे में बैठे मौलवी से फतवा मांगते हैं और वो मौलवी उल्टी या दस्त की तरह झट से फतवा उगल देते हैं. इस बात को यदि आप समझना चाहते हैं तो इसके लिए आपको एक खबर को समझना होगा. खबर सहारनपुर के दारूम उलूम देवबंद से है. देवबंद ने फतवा जारी करके सोशल मीडिया पर मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं की फोटो अपलोड करने को नाजायज बताया है.
आपको बताते चलें कि दारूम उलूम देवबंद से एक व्यक्ति ने यह सवाल किया था कि क्या फेसबुक, व्हाट्सऐप एवं सोशल मीडिया पर अपनी या परिवार की महिलाओं की फोटो अपलोड करना जायज है. इस सवाल के जवाब में फतवा जारी करके देवबंद का मत है कि मुस्लिम महिलाओं एवं पुरूषों को अपनी या परिवार के फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करना जायज नहीं है, क्योंकि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता. ज्ञात हो कि इस सम्बन्ध में मदरसे के मुफ्ती तारिक कासमी का कहना है कि जब इस्लाम में बिना जरूरत के पुरुषों एवं महिलाओं के फोटो खिंचवाना ही जायज न हो, तब सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करना जायज नहीं हो सकता.
फोटो के सम्बन्ध में व्यक्ति का प्रश्न और प्रश्न के उत्तर में आया फतवा भारतीय मुसलमान की मनोदशा का खुद-ब-खुद बखान करता है. इन दोनों को देखकर ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आज 21 वीं शताब्दी के इस दौर में जब दुनिया के लोग तमाम तरह के रचनात्मक कार्य कर रहे हैं. ऐसे में भारतीय मुसलमान का सोशल मीडिया पर फोटो डालने को लेकर आया प्रश्न और इस पर आया उत्तर ये साफ बता देता है कि आज भारत का आम मुसलमान कहां खड़ा है और वो किस 'रचनात्मकता' में लिप्त है.
कह सकते हैं कि ऐसे फतवे मुसलमानों के विकास में सबसे बड़े बाधक हैं
खैर, भले ही व्यक्ति का सवाल और उस सवाल पर निकला फतवा भारतीय मुसलमान को दुनिया के सामने हंसी का पात्र बना दे मगर ये दोनों ही बातें किसी भी समझदार व्यक्ति को विचलित करने के लिए काफी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ये उस व्यक्ति की अपने प्रति अस्थिरता को दर्शा रहा है जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बीवी की फोटो डाल कर लाइक, कमेन्ट के रूप में तमाम तरह के रिएक्शन जुटाना चाह रहा है मगर उसे ये भी डर है कि कहीं इससे उसका 'अल्लाह' खफा न हो जाए.' ये उस व्यक्ति या संस्थान की योग्यता पर भी सवालिया निशान लगा रहा है जो धर्म की ठेकेदारी कर उसे लगातार संकट में डाल रहे हैं. साथ ही ये महिलाओं के हित में तो बिल्कुल भी नहीं है.
अंग्रेजी में एक कहावत है 'charity begins at home' तो ये कहावत यहां दोनों लोगों पर लागू हो रही है उसपर भी जिसने सवाल किया और उसपर भी जिसने जवाब दिया.यदि इस्लाम में किसी भी तरह की छवि को हराम करार दिया गया है तो सवाल ये है कि आए रोज हम इन मौलवियों और मौलनों को टीवी वेबसाईट से लेकर अखबारों तक में क्यों देखते हैं. क्यों ये फोटो सेशन के लिए इतने दीवाने होते हैं? क्यों इन्हीं मीडिया में दिखते और छपते रहने का शौक है? क्यों इन मौलवियों को कैमरे से इतना प्यार है? सवाल ये भी है कि ऐसे वक्त इनका इस्लाम और इस्लाम की ये वाली सीख कहा चली जाती है. मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि अब भी उन्हें ऐसे उत्तर सुनने को मिल रहे हैं
यदि हम फतवा देने वाले लोगों को कुंठित मानसिकता का समझते हैं तो हमें ये भी देखना होगा कि जो इन फतवाधारी मौलानाओं से सवाल कर रहा है वो खुद कैसा है. सहारनपुर से जो ये नया फतवा निकल कर बाहर आया है उसको देखकर बस यही लगता है कि यहां फतवा लेने और फतवा देने वाले दोनों लोगों कि मानसिकता बिल्कुल एक सी थी. अगर उन्हें कट्टरपंथी कहा जा रहा है तो ये भी कम नहीं हैं.
अंत में इतना ही कि यदि इस देश के मुसलमान को आगे बढ़ना है तो उसे सबके साथ रहकर चलना होगा. यदि वो सबसे साथ चलता है तो ये उसके लिए बहुत अच्छी बात है वरना जैसे ये पूर्व में पिछड़ा था वैसे ही ये भविष्य में भी अपनी हरकतों और व्यवहार से लगातार पीछे होते चला जाएगा. साथ ही एक आम आदमी के तौर पर हमें इन्तेजार उस वक़्त का भी रहेगा जब इस देश का आम आदमी उकताकर खुद इन लोगों के खिलाफ फतवा दे और इनके बेबुनियाद फतवों को सिरे से खारिज कर दे.
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