पटाखा फोड़ना इज़ सो मिडिल क्लास, फ़ायर क्रैकर इज़ कूल
अभी दिवाली का आगाज भी नहीं हुआ है लेकिन एक वर्ग है जो सामने आया है और पटाखे मुक्त दिवाली (Crackers Free Diwali) की बात कर रहा है. दिलचस्प ये है कि इन लोगों को क्रिस्मस या न्यू ईयर पर होती आतिशबाजी नहीं दिखती. साफ़ है कि इनकी दिक्कत हिंदू त्योहारों से है.
-
Total Shares
बॉस, ऐसे नहीं चलेगा कि दीवाली पर पटाखे न फोड़ो और क्रिसमस पर फ़ायर-वर्क्स चलाइए. क्योंकि दीवाली पिछड़ो का त्योहार है और क्रिसमस महान लोगों का और पटाखे इज़ सो आउट ऑफ़ फ़ैशन एंड फ़ायर वर्क इज़ कूल. बॉस को प्रदूषण की चिंता है और जो होना वाजिब भी है. लेकिन ख़ाली दीवाली पर ये चिंता जो फूटती है, वो वाजिब नहीं है. देखिए आप पटाखों के उत्पादन पर बैन लगाइए. न पटाखे बनेंगे न फोड़े जाएंगे. अब अमीर लोगों का बियाह होता है, जैसे अम्बानी जी के बेटे का, फ़ेक-फ़ेमिनिस्ट सोनम दीदी का और पर्यावरण की रक्षक प्रियंका दीदी का जिनका सिगरेट से अस्थमा नहीं, लेकिन दीवाली के पटाखों से अस्थमा बढ़ जाता है. ऐसे लोगों के बियाह में करोड़ों के पटाखे, अरे सॉरी फ़ायर-वर्क फोड़े जाते हैं तब प्रदूषण क्या तेल-हंडे में चला जाता है और दीवाली में सबको दिखाई पड़ने लगता है.
अभी दिवाली आई भी नहीं है लेकिन पटाखे के न इस्तेमाल करने की बातें शुरू हो गयी हैं
5-5 हाथ लम्बा अपील दीवाली आते ही इन जैसों की तरफ़ से तैरने लगता है. दीवाली की रात में इनको गली वाले कुत्ते की भी चिंता सताने लगती है कि पटाखे की आवाज़ से ये मासूम डर जाएंगे बाक़ी दिन आराम से उनके ऊपर से कार को दौड़ा कर निकल जाते होंगे और पता भी नहीं चलता होगा. क्या हिंदी शब्द भर से ही प्रदूषण बढ़ने लगता है? अंग्रेज़ी नाम आते ही सब चऊचक हो जाता है क्या? ऐसे ही होली में पानी की चिंता सताने लगती है जो ख़ुद हर दिन बाल्टी भर-भर कर अपना स्कूटर और कार धोते हैं. एक दिन की चिंता से तो दुनिया सुधरने से रही.
तो बॉस, आप ये रोक लगाने की नौटंकी बंद कीजिए. क्योंकि जैसे ही किसी चीज़ पर रोक लगती है लोग बिफर कर वही काम और करते हैं इसलिए ढ़ेर होशियार बनिए मत. जो दीवाली मनाते हैं वो बैल तो है नहीं और ऐसा भी नहीं है कि दीवाली में पटाखा फोड़ कर मंगल ग्रह पर रहने चले जाएंगे. तो उनको भी चिंता है पर्यावरण की. वो भी अपने हिसाब से पटाखे नहीं ही फोड़ेंगे और जो फोड़ेंगे तो इसी दूषित हवा में सांस ले कर करेंगे ठीक न.
फिर जिनको अगर फोड़ना ही पटाखा उनको तो आप क्या आपके पिता ही भी नहीं रोक पाएंगे तो काहे का छीछालेदर करवाने पर तुले हैं अपना. आराम से गुझिया खाइए, रंगोली बनाइए और कुछ नहीं कर सकते हैं तो चुप ही रहिए. यहां सब समझदार हैं. धरती माता हमारी भी है. ऐसा नहीं है कि आप उनकी अपनी औलाद हैं और दीवाली मनाने वाले सौतेले. सब इसी धरती माता की संतान है. अब जो लायक औलादें हैं वो बिना बैन के भी पटाखे नहीं ही जलाएंगी और जो नालायक हैं उनका क्या कहें. तो जाइए दम धरिए और चिल कीजिए.
दीवाली आपके लिए भी शुभ हो और सदबुद्धि मिले यही कामना है.
ये भी पढ़ें -
यूपी में सरकारी प्रयासों के बाद अपनी माटी की सुगंध से महकेगी दीवाली...
हिंदू त्योहारों को ही हमेशा अपना निशाना क्यों बनाते हैं 'इंटेलेक्चुअल लिबरल'?
पॉल्युशन की गेंद नीली हुई तो केजरीवाल की, धुंधली वाली मोदी की!
आपकी राय