पीरियड्स को टैबू मानने वाले समाज में तो इस बच्ची का जीवन नर्क होना तय था
एमिलि को ना सिर्फ पीरियड्स शुरू हो गए हैं बल्कि उसे प्यूबिक हेयर भी आ गए हैं. साथ ही जब वो सिर्फ दो साल की थी तभी उसके ब्रेस्ट भी विकसित होने शुरू हो गए थे और मुंहासे भी आने लगे थे.
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पीरियड्स एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है. हर लड़की के शरीर में उम्र के साथ हॉर्मोन का स्राव इसे कंट्रोल करता है. ये सीधी-साधी सी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. पीरियड्स के पीछे का सारा खेल हॉर्मोन पर निर्भर करता है. इसमें हॉर्मोन के स्राव में कमी या ज्यादा होने पर इंसान का कोई बस नहीं चलता.
लड़कियों में पीरियड्स आने की औसत उम्र 12-14 साल मानी जाती है. हर लड़की को अपना पहला पीरियड्स तो याद ही होगा. पहली बार कपड़े में लगे खून के धब्बे को देखकर हर लड़की घबरा जाती है. दौड़े-दोड़े मम्मी के पास जाना कि मम्मी देखो ये क्या हो गया. भारत में आम प्रचलन है कि मम्मी पीरियड्स की बात सुनकर बेटी को ताकीद करती है कि किसी को इसके बारे में बताना मत! जैसे ये कोई टैबू हो. मेरी दोस्त के साथ यही हुआ.
मुझे तो ये आजतक नहीं समझ आया कि आखिर बेटी की पीरियड की बात छुपाने के पीछे का तर्क क्या है. आखिर किसी बाहर के व्यक्ति को बताने में दिक्कत क्या है? क्या सोचकर मम्मियां इस सच को जमाने से छुपाने से मना करती हैं? इस सच का सामना हम में से बहुत सी लड़कियों ने किया होगा. ये तो बात हुई लड़कियों के नॉर्मल एज यानी 12-14 के बदलाव की.
एमिलि के मां उसका इलाज कराने के लिए फंड जुटा रही हैं
जब इस सामान्य प्रक्रिया के सामान्य समय में शुरू होने पर उन्हें दिक्कत होती है तो फिर अनुमान लगाइए कि किसी दुर्लभ बीमारी के कारण अगर 5 साल की बच्ची के पीरियड्स शुरू होने लगें तो क्या होगा! शायद घर में कोहराम मच जाएगा. लड़की को कोई बीमारी होगी ये तो बाद में ध्यान आएगा पहले तो इसी बात से सब हैरान रहेंगे कि आखिर मेरी बच्ची ने ऐसा क्या कर दिया! उसके बाद हो सकता है क्योंकि हम धार्मिक प्रतिबद्धता वाले देश हैं तो समाज, पास-पड़ोस से छुपाकर लड़की को डॉक्टर के पास नहीं बल्कि किसी ओझा या बाबा के पास ले जाया जाएगा.
बीमारी से पहले बदनामी का ख्याल आएगा. ये भी हमारे समाज की एक सच्चाई है.
खैर चलिए अब आपको बताएं एक ऐसी दुर्लभ बीमारी के बारे में जो अमूमन महिलाओं को 30 की उम्र के बाद होता है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में रहने वाली पांच साल की एमिलि डोभर, शरीर में एड्ररेलीन ग्लैंड के डिसऑडर से ग्रसित हैं. इंडिपेंडेंट में छपी खबर के मुताबिक एमिलि को ना सिर्फ पीरियड्स शुरू हो गए हैं बल्कि उसे प्यूबिक हेयर भी आ गए हैं और शरीर से पसीने की बदबू भी आने लगी है जो सिर्फ वयस्कों के लक्षण माने जाते हैं. साथ ही जब वो सिर्फ दो साल की थी तभी उसके ब्रेस्ट भी विकसित होने शुरू हो गए थे और मुंहासे भी आने लगे थे.
बच्ची का बचपना इस बीमारी ने छीन लिया
एमिलि जन्म के समय तो नॉर्मल थी लेकिन जल्दी ही वो असामान्य तरीके से बड़ी होने लगी. आलम ये हो गया कि 4 महीने की उम्र में वो एक साल की बच्ची जैसे दिखने लगी. बच्ची के कष्ट का आलम ये है कि रोजाना सुबह जब वो जगती है तो उसके हाथों और पैरों की कलाई में जोरदार दर्द होता रहता है. उसके ब्रेस्ट और हड्डियों तक में दर्द रहता है.
एमिलि, एडिसन्स सिंड्रोम से ग्रसित है. इसे एड्रेनल की कमी या हाइपोकॉर्टिसोलिज्म भी कहते हैं. इस बीमारी में महिलाओं का एड्रेलन ग्लैंड पर्याप्त मात्रा में स्टेरॉइड हॉर्मोन, कॉरटिसोल और एल्डोस्टेरोन का उत्पादन नहीं कर पाता. हालांकि ये डिसऑर्डर अमूमन व्यस्कों में होता है जो 30 की उम्र में होते हैं. लेकिन एमिलि जैसे बच्चों को अगर ये बीमारी हो जाए तो उनके पीरियड्स आने शुरू हो जाते हैं. ऐसा एमिलि के केस में हो रहा है.
दुखद ये है कि इस बीमारी में दी जाने वाली दवाई बहुत ही ज्यादा कड़ी होती है. जिसकी वजह से मेनोपॉज के लक्षण आने शुरू हो जाते हैं. एमिलि के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. हैरानी की बात तो ये है कि जन्म के समय ऐमिलि बिल्कुल स्वस्थ थी.
एमिलि के माता-पिता अपनी बच्ची के इस बीमारी से दुखी और परेशान तो हुए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. हमारी भारतीय परंपरा की तरह उन्होंने इसे टैबू नहीं माना. बल्कि इस बीमारी की बीमारी की तरह लिया और बच्ची को डॉक्टर के पास लेकर दौड़ते रहे. न्यू साउथ वेल्स के डॉक्टरों के लिए एमिलि का इलाज और उसको डायग्नोस करना किसी चैलेंज से कम नहीं था. तीन साल के लगातार ट्रीटमेंट और हजारों तरह के टेस्ट के बाद अब डॉक्टरों को पता चला कि एमिलि दरअसल एडिसन सिंड्रोम से ग्रसित है.
हॉर्मोन की गड़बड़ी से होने वाले इस इलाज के लिए एमिलि के माता-पिता ने चंदा जुगाड़ करना शुरू कर दिया है. इसके लिए उन्होंने gofundme नाम का पेज बनाया है. पूरी दुनिया से लोग बच्ची के इलाज के लिए एमिलि के माता-पिता की सहायता कर रहे हैं. भारत में भी अब इस तरह की जागरुकता आने की सख्त जरुरत है. जब प्राकृतिक व्यवहारों को लोग खुले दिल से अपनाएं. खासकर पीरियड्स जैसी चीज के लिए, जिसमें किसी भी तरह की दिक्कत लड़की के लिए हमारी सोच से ज्यादा नुकसान दायक हो सकती है.
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