सबरीमला हो या कोल्लूर मंदिर: चुनौती आस्था को नहीं पितृसत्ता को है
सबरीमाला की आग केरल से निकल कर कर्नाटक पहुंच गई है और निश्चित तौर पर आने वाले परिणाम गंभीर होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि तानाशाही का आदी पितृवंशीय समाज अपनी सत्ता में किसी की दखल बर्दाश्त नहीं करता.
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राजनीति और क्रिकेट के अलावा इस समय मी टू और सबरीमला ही वो चीज है जो लोगों के बीच चर्चा का विषय है. अभी सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर चल रहा खत्म नहीं हुआ है, ऐसे में जो खबर कर्नाटक से आ रही है, वो विचलित करने वाली है. अब कर्नाटक स्थित उडुपी जिले का कोल्लूर मंदिर लाइम लाइट में है. सबरीमला की ही तरह कोल्लूर में भी मंदिर में महिला के प्रवेश को लेकर विवाद शुरू हो गया है. कोल्लूर के श्री मुकाम्बिका मंदिर के लक्ष्मी मंटपा में एक महिला के प्रवेश का मामला सामने आया है.
मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के विरोध का ताजा मामला कर्नाटक के मुकाम्बिका मंदिर का है
विवाद क्यों हुआ? इसकी वजह बस इतनी है कि, जिस जगह महिला ने प्रवेश किया है. वहां केवल पुजारियों को ही प्रवेश की अनुमति हैं. उस स्थान पर महिला का इस तरह प्रवेश करना पुजारियों को आहत कर गया और विवाद बढ़ गया. जिस महिला ने मंदिर में प्रवेश किया है, उसका नाम टीआर उमा बताया जा रहा है. महिला ने खुद मंदिर के मौजूदा कार्यकारी अधिकारी को बताया है कि उसने बिना किसी की अनुमति के मंदिर के लक्ष्मी मंटपा में प्रवेश किया. आपको बताते चलें कि इस नए विवाद को जन्म देने वाली उमा खुद इस मंदिर की पूर्व कार्यकारी अधिकारी रह चुकी हैं.
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— SuddiTV (@sudditvnews) October 17, 2018
उमा द्वारा मंदिर में प्रवेश किये जाने को लेकर एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है. माना ये भी जा रहा है कि विवाद का कारण इस वीडियो का वायरल होना है. चूंकि मामला आस्था से जुड़ा था इसलिए मंदिर के मुख्य पुजारी के एन नरसिम्हा अडिगा ने भी उमा के खिलाफ सैकड़ों भक्तों की आस्था को ठेस पहुंचाने की बात कही है. साथ ही पुजारी ने ये भी मांग की है कि महिला के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लिया जाए.
इसके अलावा मंदिर के मौजूदा प्रशासक एच हलप्पा ने भी इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए कहा है कि उन कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी जिन्होंने उमा को लक्ष्मी मंटपा में प्रवेश की अनुमति दी है और मीडिया को इस घटना के बारे में बताया है.
महत्वपूर्ण तीर्थ है मुकाम्बिका मंदिर
बताया जाता है कि उडुपी जिले में स्थित ये मंदिर केरल और कर्नाटक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे तीर्थ माना गया है. मंदिर का हिंदू संत और वैदिक विद्वान आदि शंकराचार्य से संबंधित होना इसे और अधिक महत्वपूर्ण बना देता है. आदि शंकराचार्य ने खुद इस मंदिर में देवी की प्रतिमा को स्थापित किया था. मुकाम्बिका देवी जिन्हें शक्ति, सरस्वती और महालक्ष्मी का रूप माना जाता है के बारे में मान्यता है कि ये व्यक्ति को वो सब कुछ प्रदान करती हैं जिसकी उसे चाह होती है.
मुकाम्बिका मंदिर में देव-प्रतिमा ज्योतिर्लिंग के रूप में है जिसमें शिव और शक्ति दोनों का समावेश है. नवरात्रि के दौरान मंदिर भक्तों की भीड़ से भर जाता है. इस मंदिर की एक अन्य खासियत विद्यारंभ है. नवरात्रि के अंतिम दिन यहां विद्यारंभ का आयोजन किया जाता है. इस दिन छोटे बच्चों को उनकी मातृभाषा के अक्षरों की पढ़ाई सरस्वती मंटप में कराई जाती है.
जब मंदिर में महिलाओं का आना मना है
वैसे तो यहां व्यक्ति कभी भी आ सकता है मगर शरद नवरात्रि में आयोजित होने वाली सुवासिनी पूजा वो अवसर है जब यहां महिलाएं नहीं आ सकती हैं. मान्यता है कि इस दौरान किसी भी महिला का मंदिर के लक्ष्मी मंटपा में प्रवेश करना परंपरा के खिलाफ है. इस दौरान यहां केवल मंदिर के पुजारियों को आने की अनुमति होती है. प्रबंधन समिति के अध्यक्ष हरीश कुमार शेट्टी के अनुसार नवरात्रि में लक्ष्मी मंटप में होने वाली सुवासिनी पूजा में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है.
बहरहाल, एक ऐसे समय में जब तमाम तरह की मांगें मनवाने के लिए आंदोलन किये जा रहे हों, और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा हो. कहीं न कहीं देश की महिलाओं द्वारा उस समाज को चुनौती दी जा रही है जिसकी सत्ता पुरुषों के हाथ में थी. साथ ही पुरुषों द्वारा ये विरोध केवल इस बात के लिए किया जा रहा है, क्योंकि उनको भी कहीं न कहीं इस बता का एहसास हो गया है कि, अब वो दिन दूर नहीं जब सत्ता धीरे धीरे उनके हाथ से पूरी तरह निकल जाएगी.
चाहे केरल का सबरीमला हो या फिर कोल्लूर का मंदिर. मस्जिदों में नमाज पढ़ने से लेकर तीन तलाक और हलाला के विरोध तक आज जिस तरह महिलाएं मुखर होकर तमाम तरह का विरोध कर रही हैं, उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि अब तक उन्हें कमजोर और शोषित समझा जा रहा था.
अब जबकि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए जमीनी स्तर पर आकर आंदोलन कर रही हैं देखना दिलचस्प होगा कि इसका परिणाम क्या निकालता है. भविष्य में महिलाओं की स्थिति क्या होगी ये हमें आने वाला वक़्त बताएगा मगर जो वर्तमान है वो साफ बता रहा है कि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए गंभीर हुई हैं और उन्हें पाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं.
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