कहीं किसान ही न रोक दे मोदी रथ !
किसानों द्वारा लगातार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करना सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है और अगर इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो आने वाले समय में इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.
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कृषि उत्पादों के उचित मूल्य और अन्य मांगों को लेकर किसान एक जून से पश्चिमी मध्यप्रदेश में आंदोलन कर रहे हैं. इस आंदोलन ने 6 जून को उग्र रूप धारण कर लिया जब पुलिस फायरिंग में 5 किसानों की मौत हो गयी. रिपोर्ट पर गौर करें तो पूरे वाक्ये को हम इस तरह बयान कर सकते हैं-
मंदसौर से नीमच जाने वाली सड़क पर किसानों ने चक्का जाम कर दिया था जिनकी संख्या हजारों में थी और यहीं से हिंसा भड़की. उग्र किसानों ने कुछ ट्रकों और बाइक में आग लगा दी. पुलिस और सीआरपीएफ ने हालात को संभालने की कोशिश की लेकिन वहां जुटी भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया, और इसके बाद फायरिंग में करीब 5 किसानों की जान चली गयी. इस घटना के बाद हिंसा और भड़क गयी. जो आंदोलन 1 जून को शुरू हुआ था वो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. 7 जून को भी किसानों ने मंदसौर जिले के एसपी और कलेक्टर के साथ मारपीट की और कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया.
उग्र किसानों ने गाड़ियों में लगाई आग
एक नजर मध्यप्रदेश के किसानों की बदहाली पर
प्रदेश के करीब 72% कृषिगत क्षेत्र बारिश पर निर्भर हैं. अगर बारिश कम या नहीं के बराबर होती है तो किसानों को इसका खामियाजा उठाना पड़ता है. क्योंकि इसके चलते उनकी फसल बर्बाद हो जाती है. आंकड़ों के अनुसार पिछले 16 साल में इस प्रदेश में 21,000 किसानों ने खुदखुशी की है. 2016-17 के दौरान करीब 1982 किसानों ने खुदखुशी की और जो 2001 के बाद सबसे अधिक हैं. प्रदेश का करीब 33 प्रतिशत प्याज सरकार द्वारा किसानों से खरीदा गया था जो उचित भंडारण के अभाव में सड़ गया. किसानों को प्याज 2 से 3 रुपये प्रति किलो बेचने पर बाध्य होना पड़ा था, क्योंकि खरीदी मूल्य 8 रुपये प्रति किलो दर का ऐलान सरकार ने देर से किया था.
ज्यादातर खुदकुशी छोटे और सीमांत किसानों ने की है. मध्यप्रदेश की सरकार ने दिसंबर 2016 में हाल के वर्षो में पहली बार ये स्वीकार किया कि कर्ज के दबाव के कारण किसान खुदकुशी कर रहे हैं.
क्या हैं किसानों की मांगे-
- अगर किसानों की मांगों पर गौर करें तो उनकी प्रमुख मांगे हैं कि-
- उनका कर्जा माफ किया जाए.
- उनको उचित समर्थन मूल्य मिलना चाहिए.
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए.
- किसानों को पेंशन दी जाए.
- मंडी में फसल का रेट तय हो.
मध्यप्रदेश से पहले अन्य राज्यों के किसान भी अपना विरोध जता चुके हैं. महाराष्ट्र में भी पिछले कई दिन से आंदोलन जारी है. महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने 31 अक्तूबर तक किसानों से कर्ज माफी का वादा किया है. तमिलनाडु के किसानों ने पिछले दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया था. उन्होंने मानव कंकाल की माला पहनकर विरोध जताया था. कई दूसरे राज्य के किसान भी अपनी मंशा पहले भी जता चुके हैं की कर्जमाफी नहीं मिली तो वो भी आंदोलन, विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं.
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों के बीच नाराजगी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक नयी चुनौती है. 2014 में सरकार बनने के बाद से ही मोदी कई बार ये बता चुके हैं कि कृषि क्षेत्र में सुधार उनके लिए काफी प्रमुखता रखता है. बीजेपी पिछले 14 सालों से मध्यप्रदेश में काबिज है. मध्यप्रदेश बीजेपी का गढ़ माना जाता है. लेकिन हाल के दिनों में किसानों द्वारा लगातार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करना सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है और अगर इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो आने वाले समय में इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.
जिन 5 किसानों की मौत मंदसौर में हुई है उसमें 4 पाटीदार समाज से थे. इसका प्रभाव आने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है क्योंकि पाटीदार गुजरात में पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सपोर्ट करते रहे हैं.
इन सब के बीच अब देखना ये है कि नरेंद्र मोदी इस विषय में क्या करते हैं. मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में तो बीजेपी की ही सरकार है. 2019 में लोकसभा का चुनाव होना है और ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है.
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