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Updated: 06 फरवरी, 2021 12:30 PM
अंकिता जैन
अंकिता जैन
  @ankita.jain.522
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मेरे पिताजी के समय में उत्तम खेती, मध्यम वाण और जघन्य नौकरी का सिद्धांत प्रचलित था. यही कारण था कि मेरी दादी ने पिताजी को नौकरी नहीं करने दी जबकि उनके पास शिक्षक और बिहार पुलिस दोनों के ऑफर थे. वे चाहती थीं कि एक ही बेटा है तो वह घर पर रहकर पैतृक व्यवसाय यानि खेती संभाले. खेती में मुनाफा नहीं था इसलिए हमने बहुत तंगी भरे दिन गुज़ारे. मैं तो सबसे छोटा था इसलिए मुझे उतना याद नहीं लेकिन मेरी मां ने बहुत कठिनाइयां झेली हैं. परिवार की ज़िम्मेदारी मुझ पर थी. मैं खेती के साथ-साथ पढ़ाई करता था. 2002 में मेरा विवाह हो गया, तब मैं स्नातक में था. मेरे पास लगभग आठ एकड़ ज़मीन है. जिसमें मैं पारंपरिक फसल गेहूं और धान उगाता था. इसके अलावा ऊपरी हिस्से में जो बलवी मिट्टी है उसमें सरसों, आलू, अरहर और मक्का होते थे. सारी पैदावार को व्यापारी आते थे घर पर और ले जाते थे क्योंकि मैं मंडी जाकर बेचता तो पढाई कब करता. इसलिए व्यापारी घर से ही ले जाते थे लेकिन दाम अपेक्षा से कम देते थे, जो जीवन निर्वाह के लिए काफी नहीं होता था.

Farmer Protest, Punjabi Farmer, Poverty, Starvation, Modi Government, Prime Minister, Narendra Modiजिन समस्याओं का सामना किसान कर रहे हैं उन्हें हम शायद ही कभी समझ पाएं

हम किसानों के साथ मार्केटिंग की बड़ी समस्या है. जितना नुकसान हमें मौसम की मार पहुंचाती है उससे कहीं ज्यादा बिचौलिए पहुंचाते हैं, जो किसानों की फ़सल को अनाप-शनाप, औने-पौने दाम में खरीदते हैं. हालांकि अब पहले से कुछ ठीक हुआ है. ई-हाट की जो स्कीम शुरू हुई उसमें काफी मंडी जुड़ी हुई हैं, जिससे किसानों की पहुंच बढ़ी है और बिचौलियों का रोल थोड़ा कम हुआ है. ये अलग बात है कि इस स्कीम के बारे में अभी कम ही किसान जागरुक हैं... समय लगेगा.

मैंने बहुत कोशिश की अपनी खेती को बेहतर बनाने की ताकि मुनाफे की खेती हो सके. इसके लिए मैं पढ़ाई के साथ-साथ कृषि से जुड़ी शिक्षा और ट्रेनिंग लेता रहता था. राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा में ट्रेनिंग होती रहती है, मैंने भी वहां से बहुत कुछ सीखा. नाबार्ड के माध्यम से वहां एक किसान क्लब बना है, उससे जुड़ा था. मेरी कोशिश रहती थी कि मैं एक जागरुक किसान बनूं.

खेती के अलावा मैंने साइड इनकम के लिए गांधी आश्रम से जुड़कर मां के लिए एक चरखा ला दिया. महीनेभर उससे काती गई सूत के बदले सिर्फ 1200-1500 रूपए मिलते थे. गांधी जी के सिद्धांत अच्छे थे, लेकिन आप ही बताइए कोई महिला महिना भर मेहनत करे और उसे 1500 रु मिले तो आज के ज़माने में उसका गुज़ारा कैसे होगा?

वही समय था जब सब तरफ से हार देखती मेरी मां ने मेरे आगे हाथ जोड़ लिए थे और कहा था – बेटा कोई मां नहीं चाहती कि उसका बेटा उससे दूर रहे लेकिन ऐसे जीवन निर्वाह नहीं हो सकेगा. तेरे पिता की स्थिति भी मैं देख चुकी हूं और मैं नहीं चाहती कि तेरी स्थिति भी वैसी हो जाए इसलिए अब खेती छोड़ दो और बाहर जाकर नौकरी करो.

और हां... यह बातचीत बिहार के उस किसान से जिसने 1996 से 2012 तक खेती करके जीवन निर्वाह करने की हर संभव कोशिश की लेकिन असफल रहे और अंततः खेती छोड़नी पड़ी. देश इन किसानों की तकलीफ़ों को भी सुने और हल निकालें.

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अंकिता जैन अंकिता जैन @ankita.jain.522

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