2 मार्च को दी जाने वाली फांसी समाज को बदलने की ताकत रखती है!
POCSO एक्ट के तहत भारत में पहली फांसी 2 मार्च को दी जा सकती है. 4 साल की एक बच्ची से रेप करने वाले दरिंदे को मिलने वाली ये फांसी यकीनन एक सबक की तरह देखी जा सकती है.
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कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूरत में एक सभा में कहा था कि अब रेप की संख्या भारत में कम हो गई है और आरोपियों को 3 दिन, 7 दिन, 11 दिन में फांसी की सज़ा हो रही है. नरेंद्र मोदी ने बात तो सही कही. अगर फांसी की सज़ा की बात करें तो अब नाबालिग से रेप के मामले में कई अदालतों ने जुर्म के एक हफ्ते के अंदर ही सज़ा सुना दी, लेकिन फांसी देने का इंतजार हो रहा था.
हिंदुस्तान में पहली बार POCSO एक्ट के तहत नाबालिग से रेप के मामले में किसी दोषी को फांसी की सज़ा होने वाली है. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 4 साल की बच्ची से रेप के दोषी टीचर को फांसी 2 मार्च को फांसी देने का आदेश दिया है. जान लीजिए कि मध्यप्रदेश ही वह पहला राज्य है, जहां नाबालिग से रेप के लिए शिवराज सिंह चौहान सरकार ने फांसी की सजा का प्रावधान किया था.
क्या है पूरा मामला?
मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने महेंद्र सिंह गोंड नामक शिक्षक को फांसी की सजा सुनाई है. 30 जून 2018 को महेंद्र ने 4 साल की बच्ची का अपहरण किया और रेप कर उसे जंगल में फेंक दिया. उसे लगा कि लड़की मर गई है. पर लड़की के घरवालों ने उसे ढूंढ निकाला और अस्पताल ले गए. लड़की की हालत इतनी बुरी थी कि उसे वहां से एयरलिफ्ट करवाकर इलाज के लिए दिल्ली लाया गया. AIIMS में उस बच्ची का इलाज हुआ.
बच्ची की आंत तक चोटिल हो चुकी थी और इसलिए ये समझना मुश्किल नहीं है कि उसकी हालत कितनी खराब थी. बच्ची के थोड़े बेहतर होने पर उसका बयान वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए रिकॉर्ड किया गया और तब पता चला कि असल में उसका स्कूल टीचर महेंद्र सिंह गोंड ही इस काम के लिए जिम्मेदार है. तीन महीने की सुनवाई के बाद सबसे पहले 19 सितंबर को सेशन कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई. और करीब 4 महीने में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 25 जनवरी 2019 को इस केस का निपटारा कर दिया. और गोंड की फांसी की सज़ा बरकरार रखी. जबलपुर सेंट्रल जेल के सुप्रीटेंडेंट गोपाल तामरकर का कहना है कि उन्हें सतना कोर्ट से एक ईमेल आया है, जिसमें लिखा है कि फांसी 2 मार्च को सुबह 5 बजे होगी.
4 साल की मासूम को इलाज के लिए एयरलिफ्ट किया गया, तो बलात्कारी महेंद्र सिंह गोंड को सिर्फ फांसी दिए जाने की मांग हो रही थी.अभी भी रुक सकती है आरोपी की फांसी-
अगर आरोपी के परिवार से कोई सुप्रीम कोर्ट जाता है तब फांसी रुक सकती है, या फिर अगर आरोपी के परिवार वाले राष्ट्रपति से रहम की भीख मांगते हैं तो भी फांसी रुक सकती है. भले ही फांसी रोकने के कई तरीके अभी भी दोषी के पास हों, लेकिन सही मायने में ऐसे मामलों में सख्त सज़ा जरूरी है. अगर नए कानून का सही तरह से अमल करना है तो ऐसे मामले में दोषी को फांसी की सज़ा देना बहुत जरूरी है.
क्यों जरूरी है फांसी देना?
कानून तो 2018 में बनाया गया है, लेकिन अगर उसके पहले या बाद के आंकड़ों को देखा जाए तो समझ आएगा कि आखिर फांसी कितनी जरूरी है.
1. नाबालिगों के रेप (12 साल से कम उम्र की बच्चियां) ..
NCRB के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में नाबालिगों के साथ 16863 रेप हुआ. यानी हर दिन 46 बच्चियों का रेप. यानी हर घंटे 2 और हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ भारत में रेप हो रहा है. इसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों की संख्या 1596 थी. ये डेटा 2017 के अंत में आया था. तब से लेकर अब तक नाबालिगों और बच्चियों के साथ रेप के मामले काफी बढ़ गए हैं.
नाबालिगों से रेप की संख्या बढ़ती जा रही है और उसे रोकने के लिए कड़े फैसले लेना जरूरी है.
अगर इस डेटा को भी मान लिया जाए तो साल में 12 साल से कम उम्र वाली बच्चियों के रेप की घटनाएं 1596 थीं, यानी हर दिन 4 से 5 बच्चियों का रेप हुआ है.
2. कितनों को मिलती है सज़ा?
अगर सभी रेप केस की बात करें तो 2016 में NCRB के डेटा के अनुसार 38,947 मामले हुए. यानी हर दिन 107 मामले. 2014 - 2016 में पोस्को एक्ट के तहत ही 1,04,976 मामले दर्ज किए गए. हर साल इसमें लगभग 34 से 35 हजार मामले दर्ज किए गए. हालांकि, 1 लाख से ज्यादा मामलों में लगभग सवा लाख लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, मगर इसमें 11266 लोगों को ही दोषी ठहराया गया. यानी पॉक्सो एक्ट में कन्विक्शन रेट देखें तो लगभग 12 फीसदी का ही है. डेटा कहता है कि हर 10 में से 4 रेप पीड़ित नाबालिग थे और हर 10 में से 1 बच्ची 12 साल से कम उम्र की थी. यहां भी आंकड़ा साफ बताता है कि बच्चियों के रेप के मामले में दोषियों को सज़ा कम मिली है.
यानी 100 दोषियों में से सिर्फ 12 को ही सज़ा मिलती थी और बच्चियों के मामले में ये आंकड़ा 10 ही था. अगर देखा जाए तो फांसी की सज़ा मिलने की स्पीड से लग रहा है कि यकीनन सज़ा मिलने तेज़ी आई है.
3. अब तक सिर्फ एक बलात्कारी को दी गई फांसी से मौत
रेप की गंभीर घटनाओं के सामने आते ही देश में लोगों का खून खौलने लगता है. हर बार कड़े से कड़ा दंड देने की बात होती है, लेकिन हकीकत यह है कि अब तक बलात्कारी फांसी की सजा बचते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह हमारी न्याय व्यवस्था में है. बलात्कारी को बचाव के लिए हर मौके दिए जाते हैं. 2012 के निर्भया कांड के दोषियों को सालभर से कम समय लेकर निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन ये आरोपी बचाव के अलग-अलग रास्ते अपनाकर फांसी के फंदे से बचे हुए हैं. एक नाबालिग आरोपी तो कानून का सहारा लेकर बरी भी हो चुका है.
हालांकि, धनंजय चटर्जी बच नहीं पाया था. 1990 में उसने कोलकाता की सोसायटी में रहने वाली 14 वर्षीय छात्रा की रेप करके हत्या कर दी थी. करीब 14 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद आखिर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने धनंजय की दया याचिका ठुकरा दी थी. और उसे 2004 में पश्चिम बंगाल की अलीपुर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था. स्वतंत्र भारत में किसी बलात्कारी को अब तक दी गई ये पहली और आखिरी फांसी थी.
पर एक अहम सवाल अभी बाकी है..
एक बहुत अहम सवाल अभी बाकी है वो ये कि क्या फांसी की सज़ा सुनाना ही काफी है? सज़ा तो सुना दी जाती है लेकिन फांसी दी नहीं जाती. अपील हो जाती है या फिर दोषी को बेल मिल जाती है या कुछ और, लेकिन फांसी मिलती नहीं है. ये बहुत ही दिलचस्प मामला है. भारत में क्राइम तो बढ़ रहा है, लेकिन सज़ा लगातार कम होती जा रही है. अगर फांसी की सज़ा की बात करें तो भारत में 2018 में 400 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई. 2017 में 109 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई. 2016 में ये आंकड़ा 136 था.
Amnesty International की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से किसी को भी फांसी हुई नहीं. जी हां, इन्हें सिर्फ सज़ा सुनाई गई और ये अभी भी जेल में ही हैं. आखिरी बार भारत में 2015 को फांसी दी गई थी जो याकूब मेमन की फांसी थी. जो मुंबई बम धमाकों का दोषी था.
अब अंदाज़ा लगाइए तीन साल में इतने लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई जिसमें से एक को भी फांसी नहीं हुई.. अब बात करते हैं एक और आंकड़े की. 12 साल से कम उम्र की 1596 बच्चियों के साथ रेप 2016 में हुआ (अब ये आंकड़ा यकीनन बढ़ गया होगा. NCRB का लेटेस्ट डेटा 2016 का है). इस हिसाब से तो हर दिन 4 फांसी देनी चाहिए भारत में. पर Conviction rate की बात करते हैं. जो सिर्फ 12% है. यानी 1596 बलात्कार के मामलों में 191 दोषियों को सज़ा मिली.
फांसी नहीं हुई तो?
वैसे तो फांसी देना या न देना कानूनी प्रक्रिया है और इस मामले में कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा, लेकिन रेप के मामलों में कोई मिसाल जरूरी है. अगर रेपिस्ट में डर ही नहीं होगा कि उन्हें कड़ी सज़ा मिल सकती है तो रेप की संख्या भारत में गिरेगी नहीं. जिन देशों में रेप की कड़ी सज़ा मिलती है वहां इस तरह के मामले बहुत कम होते हैं.
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